तमाम सहाबा में से सब से ज़्यादा क़ाबिल ए ऐतमाद कौन ?

सय्यिदि रसूलुल्लाह ﷺ के नज़दीक तमाम सहाबा केराम में से सब से बढ़ कर मोतबर और बुलंद मर्तबा मौला अली थे

जनाबे शहजादी ए रसूल सय्यिदा फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा
और हज़रत उम्मुल मोमिनिन सय्यिदा उम्मे सलमा फ़रमाती हैं : ख़ुदा की क़सम सय्यिदना अली पर रसूलुल्लाह को सब से ज़्यादा ऐतमाद था

मुस्नद फ़ातिमतुज़्ज़हरा
जलालुद्दीन सुयूती सफ़ह 107

कौन हैं अल्लाह के दुश्मन और तुम्हारे दुश्मन

कौन हैं अल्लाह के दुश्मन और तुम्हारे दुश्मन
पारा 28 सूरह अलममतहनह में अल्लाह ताला फरमाता है
अ15- या अय्योहा अल्लज़ीना आमनू
ला तत्तख़ेजू अदूव्वी व अदूव्वाकुम
औलीयाअ ०
त- ऐ ईमान वालो मेरे और अपने दुश्मनों से दोस्ती ना करो
जब इंसान को बताया जायेगा कि कौन है अल्लाह के दुश्मन ?
तब वो उसके दुश्मनों से दोस्ती करने से बचेगा ?
अपने दुश्मनों को तो सब जानते हैं पहचानते हैं ?
लेकिन अल्लाह के दुश्मनों को सब नहीं जानते हैं ?
दुनीया दार  उलमाओं ने मुफ्तीयों ने, मोलवीयों ने कारीयों ने हाफिजों ने और पीरों ने अपने मानने जानने वालों को अपने दुश्मनों की पहचान तो कराकर बता दिया और उनसे बहुत दूर रहने का हुक्म भी सुना दिया ?
लेकिन बहुत अफसोस के उन्होंने अपने मानने जानने वालों को अल्लाह के दुश्मनों की पहचान नहीं कराई नहीं बताई ?
और ना उनसे बहुत दूर रहने का हुक्म दिया है।
बहुत ग़ौरो फ़िक्र करने की ज़रूरत है अगर इस बात को समझो ?
किस्त नं 5
जो भी जिस को मानता है और उससे मोहब्बत करता है वो उसकी बात सुनता व पढ़ता है।
तो जो जो भी अल्लाह के महबूब, हबीब इल्म गैब जानने बताने वाले इमामुल अंबीया रहमतललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब स.अ.व.से मोहब्बत करता है और उनकी मानता है।
वो ज़रूर रसूल अल्लाह स.अ.व. की पेशेन गोईयों,हदीस,कौल, बातों को जो रहमतललिल आलमीन ने अपने सहाबा को बताई और क़यामत तक के आने वाले लोगों के लिए सुनाई हैं वो उसे पढ़ेगा सुनेगा।
लेकिन वो मानने के लिए मजबूर नहीं है।
क्यों कि अल्लाह ताला फरमाता है
ला इकराहा फिददीन
कि दीन में कोई जबरदस्ती नहीं है।

माविया बिन अबू सुफ़यान पर जवाज़ ए  लअनत  के शरई दलाइल के
किस्त नं 4 पेज़ 24 से आगे

पेज़ नं- 24-
माविया बिन अबू सुफ़यान पर किन किन हज़रात ने लअनत की है।
(अलिफ) माविया बिन अबू सुफ़यान पर
हुज़ूर सरवर ए काएनात स.अ.व. की लअनत –
पेज़ नं- 25-
पहली हदीस -ऐ परवरदिगार! आप माविया और अम्र बिन आस दोनों को औंधे मुंह फ़ितना में गिरा दे।
ऐ परवरदिगार! आप इन दोनों को दोजख में झोंक दें (मसनद अबू यअला)

दूसरी हदीस – ला अशबअ अल्लाह बतनह ” अल्लाह माविया का पेट कभी ना भरे
(सही मुस्लिम व सनन नेसाई)

तीसरी हदीस – इज़ा रएयतुम मआविया अला मिनबरी फ़ा क़तालू •
जब तुम माविया को मेरे मिम्बर देखो तो उसे क़त्ल कर डालो
( फ़िरदौस दैलमी व कनूज़ अलहक़ाइक़)

चौथी हदीस –
अल्लाह पाक अबू सुफ़यान उसके बेटे के बेटे यज़ीद इब्न अबू सुफियान और माविया पर लअनत कर
(तजकेरह खवास अलअमतह अल अल्लामा सिब्त इब्न जौज़ी)

पांचवी हदीस – परवरदिगार! जो अली से दुश्मनी रखे उसे औंधे मुंह ज़हन्नम में ढकेल दे       (बिन अलनजार)
पेज़ नं- 26-
छटी हदीस – अली बाब ए हित्ता के मिस्ल है पस जो इस बाब से दाखिल हुआ वो मोमिन था ।और जो उस बाब से ख़ारिज हुआ वो काफिर था ।
(अलअफ़राद अज़ अल्लामा दार कितनी)

सातवीं हदीस – ऐ अली मोमिन तुमसे अदावत नहीं रखेगा और मुनाफ़िक तुमको दोस्त नहीं रखेगा
( मोतअदद कुतब अलहदीस)

आठवीं हदीस – अली पर जो सख्स ख़ुरूज़ या चढ़ाई करेगा वो काफिर और दोज़ख़ी है
( मोवददत अलक़ुरबा)

नौवीं हदीस – जिस शख्स ने मेरे बाद अली की ख़िलाफत में झगड़ा किया वो काफिर है और उसने खुदा और रसूल से जंग की
(किताब अलमनाक़िब अज़ इब्न मग़ाज़ली शाफ़ई)

पेज़ नं- 27-
दसवीं हदीस – जिसने अली को दुश्मन रखा उसने मुझको दुश्मन रखा और जिसने अली को अज़ीयत तकलीफ़ दी उसने मुझे अज़ीयत तकलीफ़ दी

ग्यारहवीं हदीस – इस्लाम में पहला रुखना अली की मुखालफत है
( मोवददत अलक़ुरबा अज़ सैयद अली हमदानी)

बारहवीं हदीस – मेरे बाद अंकरीब ही फ़ितना बरपा होगा पस जबके ऐसा हो तो तुम अली की पैरवी करो और उन्ही का साथ दो
(केफ़ायत अलतालिब अज़ हाफिज़ अब्दुल्लाह मोहम्मद इब्न युसुफ शाफ़ई)

तेरहवीं हदीस –
पेज़ नं- 28
ए अली जिसने तुमको गाली दी उसने मुझको गाली दी यानी उसने अल्लाह को गाली दी और जिसने अल्लाह को गाली दी उसको अल्लाह पाक औंधे मुंह दोज़ख में डाल देगा
(केफ़ायत अलतालिब अज़ हाफिज़ अब्दुल्लाह मोहम्मद इब्न युसुफ शाफ़ई)

चौदहवीं हदीस – तमाम क़बाइल या तमाम लोगों में रसूल अल्लाह के सबसे बड़े दुश्मन बनी उमय्या हैं
(अल मुस्तदरक अज़ अल्लामा हाकिम)

पंद्रहवीं हदीस – हर उम्मत के लिए एक आफ़त है और इस उम्मत की आफ़त बनी उमय्या हैं
(किताब अलफ़तन अज़ अल्लामा नईम इब्न हमाद)

सोलहवीं हदीस – आगाह हो जाओ के तमाम फ़ितनों में मेरे नज़दीक सबसे ज्यादा ख़ौफनाक फ़ितना बनी उमय्या का फ़ितना है
और वो फ़ितना तारीक़ और घटा टोप है
(किताब अलफ़तन अज़ अल्लामा नईम इब्न हमाद)

पेज़ नं- 29-
सत्रहवीं हदीस – मेरे बाद कुछ ऐसे इमाम होंगे।के अगर तुम उनकी एताअत करोगे तो वो तुम को काफिर बनाएंगे। और अगर तुम उनकी नाफरमानी करोगे। तो वो तुम्हें क़त्ल करेंगे। और वो कुफ़्र के पेशवा और ज़लालत की जड़ हैं (अलऔसत़ अज़ अल्लामा तिबरानी)

अठारहवीं हदीस – अंक़रीब मेरे बाद तुम पर ऐसे लोग हाकिम होंगे जो तुम्हें ग़ैर मारुफ़ कामों का हुक्म देंगे और वो खुद अफ़आल मुनकेरह पर अमल करेंगे और वो लोग दरहकीकत तुम्हारे इमाम नहीं हैं
(अलऔसत़ अज़ अल्लामा तिबरानी)

उन्नीसवीं हदीस
पेज़ 30
उन्नीसवीं हदीस – मेरे अहले बैत मेरे बाद मेरी उम्मत के हाथों क़त्ल किए जायेंगें और दर बदर फिराऐ जाएंगे हमारी क़ौम में सबसे ज्यादा हमारे दुश्मन बनी उमय्या मोगीरह और बनी मख़जूम हैं
(अल मुस्तदरक अज़ अल्लामा हाकिम)

बीसवीं हदीस – सबसे पहला वो आदमी जो मेरी सुननत को उलट पलट कर देगा वो बनी उमय्या का ही आदमी होगा
(तिरमिजी,निसाई,इब्न माजह, अबू दाऊद)

इक्कीसवीं हदीस – मेरी उम्मत के मामलात अदल व इंसाफ पर काइम रहेंगे यहां तक के एक शख्स उस अदल इंसाफ को तोड़ देगा और वो बनी उमय्या से होगा
( मसनद अबू यअला)

बाइसवीं हदीस – ए परवरदिगार! फलां पर यानी माविया पर लअनत फ़रमा और उसके क़ल्ब को परागंदा कर और उसके सीने में ज़हन्नम की आग भरदे
(फ़िरदौस दैलमी)

पेज़ 31-
तेईसवीं हदीस – अंक़रीब मेरे बाद तुम में ऐसे लोग हाकिम होंगे जो मिम्बरों पर तो हिकमतों का वाज़ कहेंगे लेकिन जब मिम्बरों से नीचे उतरेंगे तो वो हिकमत उनसे सलब कर ली जाएगी और उनके दिल मुरदार से भी ज्यादा बदबूदार होंगे पस जो उनके कज़्ब, झूठ की तस्दीक और उनके ज़ुल्म में उनकी मदद करेगा।
वो मुझसे नहीं है और ना मैं उसका हूं।
नेज़ ये के वो हौज़ ए कौसर पर मेरे पास नहीं आ सकेगा।
और जो उनके कज़्ब,झूठ की तस्दीक ना करेगा और उनके ज़ुल्म में उनका नासिर और मोईन (मददगार) ना होगा।
पस वो मेरा है और मैं उसका हूं।
और अंक़रीब मेरे पास वो हौज़ ए कौसर पर वारिद (आएगा) होगा।
(अलअफ़राद अज़ अल्लामा तिबरानी)

चौबीसवीं हदीस –  अरबी मतन
पेज़ नं- 32-
हुज़ूर सरवर ए काएनात ने बनी उमय्या को मिम्बरों पर ख़्वाब में देखा।
तो हुज़ूर को ये अम्र ग़ेरां गुज़रा।
पस अल्लाह ने हुज़ूर की तरफ़ वही भेजी
के: ये सिर्फ दुनिया है जो उन्हें दी गई है ‌। तब हुज़ूर की आंख़ें ठंडी हुयीं
( दलाइल बयहक़ी व मुस्तदरक व इब्न असाकर)

पच्चीसवीं हदीस – एक ऐसा ख़लीफा होगा के वो और उसकी औलाद सब ज़हन्नमी हैं
(मोहददिस हाफिज हयषमी)

छब्बीसवीं हदीस – दिनों और रातों का खात्मा ना होगा। के इस उम्मत का अम्र हुकूमत एक ऐसे शख्स पर जा ठहरेगा।
जिसके पाख़ाना की जगह लम्बी चौड़ी होंगी। जिसका मुंह मोटा और होंठ चपटा होगा और जो खाता जाएगा मगर उसका पेट नहीं भरेगा।
(किताब अलफ़तन अज़ अल्लामा नईम इब्न हमाद)

पेज़ नं- 33-
सत्ताईसवीं हदीस – जब तुम देखो के मुल्क शाम की हुकूमत अबू सुफियान के बेटे पर क़ाइम हो गई तो मक्का जाकर पनाह लेना।
(किताब अलफ़तन अज़ अल्लामा नईम इब्न हमाद)

अठ्ठाइसवीं हदीस – अरबी मतन
पेज़ नं- 34-
हुज़ूर सरवर ए काएनात ने हज़रत अली मुर्तज़ा को दरयाफ़्त, पूछा फिर अपना सर मुबारक एक ख़ौफ़ जदह आदमी की तरह ऊपर उठा कर आप से यानी अली मुर्तजा से फरमाया के उस ख़बीस ने अपनी तलवार से मेरा दरवाजा खटखटाया है।
और फिर आपको हुक्म दिया के ए अबुल हसन जाओ और उसे इसी तरह ख़ीचकर लाओ जिस तरह बकरी अपने दूध दोहने वाले के पास ख़ीचकर लाई जाती है।
पस हज़रत अली मुर्तज़ा गए और उसके कान और जबड़े पकड़े हुए लाए।
यहां तक के वो हुज़ूर के सामने आकर खड़ा हुआ। पस हुज़ूर ने उस पर तीन बार लअनत भेजी। और मौला से फरमाया के इसको एक तरफ ले जाकर बैठादो।
ता वक़तिया (थोड़ी देर में) कुछ लोग मोहाजरीन और अंसार से खिदमत ए नबवी में हाज़िर हुए तब हुज़ूर ने उसे बुलवाकर फ़रमाया: ये शख्स अल्लाह की किताब और अल्लाह के नबी की सुन्नत की मुखालफत करेगा । और इसके सुल्ब से वो शख्स पैदा होगा। जिसके फ़ितने का धुआं इस क़द्र बुलंद होगा के वो सारे जहान पर छा जाएगा।
उस वक्त एक शख़्स ने मुसलमानों में से कहा के अल्लाह और उसके रसूल सच्चे हैं ।
मगर इसकी क्या हस्ती है के ये ऐसा कर सके।
हुज़ूर ने फ़रमाया हां यही होगा और उस दिन तुम में से बाज़ लोग उसकी पैरवी करेंगे
(मरूयात अल्लामा हैशमी)

पेज़ नं- 35-
उनतीसवीं हदीस – और ये सही है के हुज़ूर ने हज़रत कआब इब्न अजरह से फरमाया के अल्लाह तुझे बदकारों और अहमक़ों की हुकूमत से अपनी पनाह में रखे। और फिर फ़रमाया मेरे बाद ऐसे हुक्काम होंगे ।
जो मेरे हिदायत के पैरू, पैरवी और मेरी सुन्नत पर आमिल ना होंगे।

तीसवीं हदीस – और हुज़ूर के ये अल्फाज़ भी सबूत और सेहत को पहुंच चुके हैं के मेरी उम्मत को हलाकत सुफ़हाऐ क़ुरैश के चंद छोकरों के हाथ होगी ।
आगे किस्त नं 5 में