

हिजरते फातेमा (स.अ)
10 बेसत जुमे की रात यकुम रबीउल अव्वल को आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने हिजरत फ़रमाई और 16 रबीउल अव्वल जुमे के दिन को दाख़िले मदीना हुए। वहां पहुंचने के बाद आपने ज़ैद बिन हारेसा और अबू राफ़ये को 5 सौ दिरहम और दो ऊंट दे कर मक्का की तरफ़ रवाना किया कि हज़रत फातेमा, फातेमा बिन्ते असद, उम्मुल मोमिनीन सौदा, उम्मे ऐमन वग़ैरा को ले आए। चुनान्चे यह बीबीयां चन्द दिनों के बाद मदीना पहुंच गयीं आप के अक़्द में उस वक़्त सिर्फ़ दो बीबीयां थीं। एक सौदा और दूसरी आयशा । 2 हिजरी में आप ( स.व.व.अ.) ने उम्मे सलमा से अक़्द किया। उम्मे सलमा ने निगहदाश्ते फातेमा (स.अ ) का बीड़ा उठाया और इस अन्दाज़ से ख़िदमत गुज़ारी की कि फातेमा ज़हरा (स.अ) से मां को भुला दिया।
हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) की शादी
पैग़म्बरे इस्लाम (स.व.व.अ.) ने अली अ0 की विलादत के वक़्त अली को ज़बान दे दी थी और बाद में फ़रमाया था कि मेरी बेटी का कफ़ ख़ाना ज़ादे ख़ुदा के कोई नहीं हो सकता। (नूरूल अनवार सहीफ़ाये सज्जादिया) हालात का तक़ाज़ा और नसबी वा ख़ानदानी शराफ़त का मुक़तज़ा यह था कि फातेमा की ख़्वास्तगारी के सिलसिले में अली के सिवा किसी का तज़किरा तक न आता लेकिन किया क्या
जाए कि दुनिया इस एहमियतक को समझने से क़ासिर रही है। यही वजह है कि फातेमा (स.अ) के सिने बुलूग़ तक पहुंचते ही लोगों के पैग़ामात आने लगे। सब से पहले अबू बकर ने फिर हज़रत उमर ने ख़्वास्गारी की और इनके बाद अब्दुर रहमान ने पैग़ाम भेजा। हज़राते शेख़ैन के जवाब में रहमतुल लिल आलेमीन और उनकी तरफ़ से मुंह फेर लिया। (स.व.व.अ.) ग़ज़बनाक हुए
( कन्जुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 113 )
और अब्दुर रहमान से फ़रमाया कि फातेमा की शादी हुक्मे ख़ुदा से होगी तुम जो महर की ज़्यादती का हवाला दिया है वह अफ़सोस नाक है। तुम्हारी दरख्वास्त क़ुबूल नहीं की जा सकती।
( बिहारुल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 14)
इसके बाद हज़रत अली अ0 ने दरख्वास्त की तो आप ( स.व.व.अ.) ने फातेमा (स.अ) की मरज़ी दरयाफ़्त फ़रमाई, वह चुप ही रहीं यह एक तरह का इज़हारे रजामन्दी था।
(सीरतुल अल नबी जिल्द 1 पृष्ठ 26)
बाज़ उलमा ने लिखा है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने ख़ुद अली अ0 से फ़रमाया कि ऐ अली अ० मुझे ख़ुदा ने फ़रमाया है कि अपने लख़्ते जीगर का अक़्द तुम से करूं क्या तुम्हें मनज़ूर है ? अर्ज़ की जी हां ! इसके बाद शादी हो गयी।
(रेयाज़ अल नज़रा जिल्द 2 पृष्ठ 184 प्रकाशित मिस्र)
था। अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि पैग़ाम महमूद नामी एक फ़रिश्ता ले कर आया
(बिहारूल अनवार जिल्द 1 पृष्ठ 35)
बाज़ उलमा ने जिबरील का हवाला दिया है। ग़रज़ हज़रत अली (अ.स) ने 500 दिरहम में अपनी ज़िरह उस्मान गनी के हाथों बेची और इसी को महर क़रार दे कर बातारीख़ 1 ज़िलहिज 2 हिजरी हज़रत फातेमा ज़हरा ( स.अ) के साथ निकाह किया
जनाबे सैय्यदा का जहेज़
निकाह के थोड़े समय बाद 24 ज़िल हिज को हज़रत सैय्यदा की रुख़सती हुई सरवरे कानात ( स.व.व.अ.) ने अपनी इकलौती चहीती बेटी को जो जहेज़ दिया उसकी तफ़सील यह है।
1. एक कमीज़ क़ीमती सात दिरहम,
2. एक मक़ना,
3. एक सियाह कम्बल,
4. एक बिस्तर खजूर के पत्तों का बना हुआ,
5. दो मोटे टाट,
6. चमड़े के चार तकिये,
7. आटा पीसने की चक्की,
8. कपड़ा धोने की लगन,
9. एक मशक,
10. लकड़ी का बादिया,
11. खजूर के पत्तों का बना हुआ एक बरतन,
12. दो मिट्टी के आब खोरे,
13. एक मिट्टी की सुराही,
14. चमड़े का फ़र्श,
15. एक सफ़ेद चादर,
16. एक लोटा ।
यह ज़ाहिर है कि रसूल (स.व.व.अ.) आला दरजे का जहेज़ दे सकते थे मगर अपनी उम्मत के ग़ुरबा के ख़्याल से इसी पर इक़तेफ़ा फ़रमाया।
जुलूसे रुखसत
खाने पीने के बाद जुलूस रवाना हुआ। अशहब नामी नाक़ा पर हज़रत फातेमा (स.अ) सवार थीं। सलमान सारबान थे, अज़वाजे रसूल नाक़े के आगे आगे थीं, बनी हाशिम नंगी तलवारे लिये हुए थे, मस्जिद का तवाफ़ कराया और अली अ०
के घर में फातेमा (स.अ) को उतार दिया इसके बाद आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने फातेमा (स.अ) से एक बरतन में पानी मंगाया और कुछ दुआयें दम कीं और उसे फातेमा और अली के सर सीने और बाज़ू पर छिड़का और बरगाहे अहदीयत में अर्ज़ की बारे इलाह इन्हें और इनकी औलादों को शैतान रजीम से तेरी पनाह में देता हूं।
( सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 84)
इसके बाद फातेमा (स. अ) से कहा देखो अली से बेजा सवाल न करना। यह दुनियां में सब से आला और अफ़ज़ल है लेकिन दौलत मन्द नहीं है। अली से कहा कि यह मेरे जिगर का टुकड़ा है कोई ऐसी बात न करना कि उसे दुख हो ।
तज़किरा ए अलख़्वास सिब्ते इब्ने जौज़ी के पृष्ठ 365 में है कि फातेमा के साथ
जिस वक़्त अली की शादी हुई उन के घर में एक चमड़ा था, रात को बिछाते थे और दिन में उस पर ऊंट को चारा दिया जाता था।



