चौदह सितारे पार्ट 13

आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की मेराजे जिस्मानी 12

बेअसत 27 रजब बेअसत की रात को ख़ुदा वन्दे आलम ने जिब्राईल को भेज कर बुराक़ के ज़रिये आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को काबा कौसैन की मंज़िल पर बुलाया और वह अली बिन अबी तालिब (अ.स.) की खिलाफ़त व इमामत के बारे में हिदायत दीं। (तफसीरे कुम्मी) इसी मुबारक सफ़र और ऊरूज को (मेराज ) कहा जाता है। यह सफ़र उम्मे हानी के घर से शुरू हुआ था। पलहे आप बैतुल मुक़द्दस तशरीफ़ ले गये फिर वहां से आसमान की तरफ़ रवाना हुए। मंज़िले आसमानी को तय करते हुये एक ऐसी मंज़िल पर पहुँचे जिसके आगे जिब्राईल का जाना ना मुम्किन हो गया। जिब्राईल ने अर्ज़ की हुज़ूर लौदनूत लता लाहतरक़ता अब अगर एक उंगल भी आगे भढूगां तो जल जाऊगां ।

फिर आप बुराक़ पर सवार हो कर आगे बढ़े एक मुक़ाम पर बुराक़ रूक गया और आप रफ़रफ़ पर बैठ कर आगे रवाना हो गये। यह एक नूरी तख़्त था जो नूर के दरिया में जा रहा था यहां तक कि मंज़िले मक़सूद पर आप पहुँच गये। आप जिस्म समेत गये और फ़ौरन वापस आये। कुरान मजीद में असरा बे अब्देही आया है। अब्दा का इतलाक़ जिस्म और रूह दोनों पर होता है। वह लोग जो मेराजे रूहानी के क़ायल हैं गल्ती पर हैं। (शरए अक़ाएदे नस्फ़ी पृष्ठ 68) मेराज का इक़रार और उसका एतक़ाद जुरूरियाते दीन से है। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि जो मेराज का मुन्किर हो उसका हम से कोई ताअल्लुक़ नहीं । (सफ़ीनतुल बिहार जिल्द 2 पृष्ठ 174 ) एक रवायत में है कि पहले सिर्फ़ दो नमाज़ें वाजिब थीं। मेराज के बाद पांच वक़्त की नमाज़े मुक़र्रर हुई।

1. यसरब यानी मदीने में ओस व ख़ज़रज दो अरब क़बीले रहते थे दोनों एक बाप की औलाद थे इनका मसकने क़दीम ( निवास स्थान ) पुराना यमन था । रसूले करीम (स.व.व.अ.) जब तक मदीने नहीं पहुँचे यह शहर यसरब के नाम से मशहूर था ज्योंही रसूले करीम ( स.व.व.अ.) वहां तशरीफ़ ले गये उसका नाम मदीनातुल रसूल हो गया। फिर बाद में मदीना कहलाने लगा। यह शहर मक्का के शुमाल (उत्तर) की तरफ़ 270 मील की दूरी पर स्थित है।

बैअते उक़बा ऊला

इसी सन् 12 बेअसत के हज के ज़माने में उन 6 आदमियों में से जो पिछले साल मुसलमान हो कर मदीने वापस गये थे पांच आदमियों के साथ सात 7 आदमी मदीने वालों में से और आकर मुर्शरफ़ ब इस्लाम हुए। हज़रत की हिमायत का अहद किया। यह बैअत भी उसी उक़बा के मकान में हुई जो मक्के से थोड़े फ़ासले पर उत्तर की ओर स्थित है। मोअरिख़ अबुल फ़िदा लिखता है कि इस अहद पर बैअत हुई कि ख़ुदा का कोई शरीक न करो, चोरी न करो, बलात्कार न करो, अपनी औलाद को क़त्ल न करो जब वह बैअत कर चुके तो हज़रत ने मुसअब बिन उमैर बिन हाशिम बन अब्दे मनाफ़ इब्ने अब्द अल अला को तालीमे क़ुरान और तरीक़ा इस्लाम बताने के लिये नियुक्त किया।

( तारीख़ अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 52 )

बैअते उक़बा (दूसरी)

13 बेअसत के ज़िल्हिज्जा के महीने में मुसअब बिन उमैर 13 मर्द और दो औरतों को मदीने से ले कर मक्के आये और उन्होंने मक़ामे उक़बा पर रसूले करीम (स.व.व.अ.) की खिदमत में उन लोगों को पेश किया वह मुसलमान हो चुके थे उन्होंने भी हज़रत की हिमायत का अहद किया और आपके दस्ते मुबारक पर बैअत की, उनमें (ओस और ख़ज़रज ) दोनों के लोग शामिल थे।

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