चौदह सितारे पार्ट 10

हिजरते हब्शा 5 बेअसत

ऐलाने नबूवत के बाद अरब की ज़मीन और अरब के आसमान यानी अपने पराये सब दुश्मन हो गये। उन दुश्मनों में अबू सुफ़ियान, अबू जेहल और अबू लहब ख़ास थे। उन लोगों ने आप पर गंदगी डालना और आपको जादूगर और मजनून (पागल) कह कर सताना अपना तरीक़ा बना लिया था। बाज़ मुवर्रेख़ीन का कहना है कि दुश्मनों ने एक दफ़ा कम्बल उढ़ा कर मार डालने का इरादा कर लिया था। इस तरह के मसाएब और ज़ुल्म से जब आं हज़रत ( स.व.व.अ.) और आपके पैरव परेशान हुए और आपने महसूस कर लिया कि मुसलमान की हैसियत से मक्के में ज़िन्दगी के दिन गुज़ारना मुश्किल है तो हिजरते हब्शा का फ़ैसला कर के अपने असहाब को हिकमत का हुक्म दिया चुनान्चे 5 बेअसत में 100 सौ मर्द, औरतों ने हिजरत की और हबश पहुंच गये। हबश का बादशाह नजाशी (1) था जो नस्तूरी फ़िरक़े का ईसाई था। उसने इन लोगों की आओ भगत की और इनका ख़ैर मक़दम किया मगर दुश्मनों ने वहां पहुँच कर कोशिश की कि यह लोग ठहरने न पाएं लेकिन वह कामयाब न हुये ।

मुर्रेख़ीन का बयान है कि इन हिजरत करने वालों में जाफ़रे तय्यार भी थे जो उनमें सरबराह की हैसियत रखते थे। यह लोग 7 हिजरी तक वहीं क़याम करते रहे और फ़तेह ख़ैबर के मौके पर वापस आये, उनकी वापसी पर रसूले करीम (स.व.व.अ.) ने फ़रमाया था कि मैं हैरान हूँ कि दो ख़ुशियों में से किस को तरजीह दूँ। मैं फ़तेह ख़ैबर की ख़ुशी को अहम समझं या जाफ़रे तय्यार वग़ैरा की वापसी को अहमियत दूं। हूँ

अल ग़रज़ हिजरते हब्शा के सिलसिले में कुफ़्फ़ारे मक्का को जब मालूम हुआ कि यहां के वह बाशिन्दे जो मुसलमान होते हैं चुपके से हबशा चले जाते हैं और वहां आराम से बसर करते हैं तो उनकी दुश्मनी और ज़िद व क़द और बढ़ गयी और उन्होंने बारवायते इब्ने असीर अब्दुल्लाह बिन उमय्या को उमरे आस (2) के साथ नजाशी और अराकीने सलतनत के वास्ते हदिया व तहायफ़ रवाना किया, इन दोनों ने हबशा पहुँच कर नजाशी को मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से भड़काना चाहा मग रवह न भड़का और मुसलमानों की हिमायत करता रहा आखिरकार यह लोग ख़ायब व ख़ासिर वापस आये ।
हज़रते रसूले करीम (.व.व.अ.स) दारूल अरक़म में 6 बेअसत

मुवरिख़ ज़ाकिर हुसैन बा हवाला सीरत इब्ने हश्शाम कहते हैं कि जब मुसलमान हबशा की तरफ़ महाजेरत कर गये तो भी रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) बराबर वाअज़ फ़रमाते रहे और नये नये लोग दीने इस्लाम में दाखिल होते रहे, कुफ़्फ़ार ने यह देख कर आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को और ज़्यादा सताना शुरू कर दिया नाचार आं हज़रत (स.व.व.अ.) अपने बचे हुये असहाब को साथ ले कर अरक़म बिन अबी अरक़म बिन अब्दे मनाफ़ बिन असद के मकान में एक महीने तक रहे। यह मकान कोहे पृष्ठ के ऊपर वाक़े था। आप वहां लोगों को इस्लाम की तरफ़ दावत देते थे। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 2 पृष्ठ 52 )


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