चौदह सितारे पार्ट 8

ख़ाना ए काबा में हजरे असवद को नब करने में आं हज़रत (.व.व.अ.स) की हिकमते अमली

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि बेअसते पैग़म्बर से पहले क़ुरैश ने यह फ़ैसला किया था कि ख़ाना ए काबा को ढा कर फिर से इसकी तामीर की जाये और उसे बलन्द कर दिया जाये। चुनान्चे इसे गिरा कर उसकी तामीर शुरू कर दी गई फिर जब इमारते हजरे असवद के नस्ब करने की जगह तक पहुँची और उसके नम्ब करने का सवाल पैदा हुआ तो क़ुरैश में शदीद इख़्तेलाफ़ पैदा हो गया हर क़बीले का सरदार यह चाहता था कि इस शरफ़ को वह हासिल करें आखिरकार बहुत कोशिश के बाद यह तय पाया कि कल जो सब से पहले हरम में दाखिल हो उसे हकम (फैसला करने वाला) बना कर इस झगड़े को ख़त्म किया जाये, वह नस्बे हजर के बारे में जो फ़ैसला दे दे उसकी पाबन्दी हर एक को करना होगी। ग़रज़ कि जब सुबह हुई तो हज़रत रसूले करीम ( स.व.व.अ.) सब से पहले हरम में दाखिल हुए लिहाज़ा उन्हीं को हकम बना दिया गया। हज़रत ने फ़रमाया कि एक मज़बूत चादर लाई जाए और उसमें हजरे असवद को रखा जाए और चादर के गोशों को हर क़बीले का सरदार पकड़ कर उसे उठाए और मुक़ामे हजर तक लाए, चुनान्चे ऐसा ही किया गया।

फिर जब हजरे असवद बैतुल्लाह के क़रीब आ गया तो हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.व.व.अ.) ने अपने हाथों से उठा कर उसे नस्ब कर दिया । हुज़ूर (स.व.व.अ.) की इस हिकमते अमली से फ़ितनाए अज़ीम का सद्दे बाब हो गया। (तारीख़ अबुल फ़िदा, जिल्द 2 पृष्ठ 26 वा याक़ूबी जिल्द 2 पृष्ठ 14)

जनाबे ख़दीजा (.व.व.अ.स) के साथ आपकी शादी ख़ाना आबादी

जब आपकी उम्र 25 साल की हुई और आपके हुस्ने सीरत, आपकी रास्त बाज़ी (सत्यता) और दयानत की आम शोहरत हो गई और आपको सादिक़ और अमीन का खिताब दिया जा चुका तो जनाबे ख़दीजा ( स.व.व.अ.) बिन्ते ख़ुवेलद ने जो बहुत ही पाकीज़ा नफ़्स, ख़ुश इख़लाक़ और ख़ानदाने क़ुरैश में सब से ज़्यादा दौलत मन्द थीं ऐसे हाल में अपनी शादी का पैग़ाम पहुँचाया जब कि उनकी उम्र 40 साल की थी। शादी का पैग़ाम मंज़ूर हुआ और हज़रत अबू तालिब (अ.स.) ने पढ़ा। (तलख़ीस सीरतून नबी अल्लामा शिब्ली पृष्ठ 99 लाहौर 1965 ई0) मुवर्रेख़ीन इब्ने वाज़ेह अलमतूफ़ी 292 ई0 का बयान है कि हज़रत अबू तालिब ने जो ख़ुतबा ए निकाह पढ़ा था उसकी शुरूआत इस तरह थी ।

अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी जाअल्ना मिन ज़रा इब्राहीम व ज़ुर्रियते इस्माईल तमाम तारीफ़ें उस एक ख़ुदा के लिये हैं जिसने हमें नस्ले इब्राहीम और ज़ुर्रियते इस्माईल से क़रार दिया है। (अल याक़ूबी जिल्द दो पृष्ठ 16 मुद्रित नजफ़े अशरफ़ )

मुर्रेख़ीन का बयान है कि हज़रत ख़दीजा ( स.व.व.अ.) का महर 12 औंस सोना और 25 ऊँट मुक़र्रर हुआ जिसे हज़रत अबू तालिब ने उसे समय अदा कर दिया । ( मुसलमानाने आलम पृष्ठ 38 प्रकाशित लाहौर) तवारीख़ में है कि जनाबे ख़दीजा (स.व.व.अ.) की तरफ़ से अक़द पढ़ने वाले उनके चचा अम्र बिन असद और हज़रते रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) की तरफ़ से हज़रत अबू तालिब (अ. स.) थे। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 2 पृष्ठ 87 मुद्रित लाहौर 1962 ई0)

एक रवायत में है कि शादी के समय जनाबे ख़दीजा बाकरा थीं, यह वाक़िया निकाह 595 ई0 का है। मुनाक़िब इब्ने शहरे आशोब में है कि रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) के साथ ख़दीजा का यह पहला अक़द था। सीरते इब्ने हशशाम जिल्द 1 पृष्ठ 119 में है जब तक ख़दीजा ज़िन्दा रहीं रसूले करीम ( स.व.व.अ.) ने कोई अद नहीं किया ।
कोहे हिरा में आं हज़रत ( . व. व.अ.स) की इबादत गुज़ारी

तारीख़ में है कि आपने 38 साल की उम्र में (कोहे हिरा) जिसे जबले सौर भी कहते हैं को अपनी इबादत गुज़ारी की मंज़िल क़रार दिया और उसके एक ग़ार में बैठ कर जिसकी लम्बाई 4 हाथ और चौढ़ाई डेढ़ हाथ थी इबादत करते और ख़ाना ए काबा को देख कर लज़्ज़त महसूस करते थे। यू तो दो दो, चार चार शबाना रोज़ वहां रहा करते थे लेकिन माहे रमज़ान सारे का सारा वहीं गुज़ारते थे।

आपकी बेअसत

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) इसी आलमे तनहाई में मशगूले इबादत थे कि आपके कानों में आवाज़ आई या मोहम्मद (स.व.व.अ.) आपने इधर उधर देखा कोई दिखाई न दिया, फिर आवाज़ आई फिर आपने इधर उधर देखा, नागाह आपकी नज़र एक नूरानी मखलूक़ पर पड़ी वह जनाबे जिब्राईल थे उन्होंने कहा इक़रा पढ़ो, हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया माइक़रा क्या पढूं? उन्होनें अर्ज़ की इक़रा बइस्मे रब्बेकल लज़ी ख़लक़ फिर आपने सब कुछ पढ़ दिया क्यो कि आपको इल्में कुरआन पहले से हासिल था। जिब्राईल (अ.स.) के इस तहरीके इक़रा का मक़सद यह था कि नुज़ूले कुरआन की इब्तेदा हो जाए। उस वक़्त आपकी उम्र 40 साल 1 दिन की थी। उसके बाद जिब्राईल ने वज़ू और नमाज़ की
तरफ़ इशारा किया व अरकात की तादाद की तरफ़ भी हुज़ूर को मुतवज्जे किया चुनान्चे हुज़ूरे आला ने वज़ू किया और नमाज़ पढ़ी आपने सब से पहले जो नमाज़ पढ़ी वह जोहर की थी। फिर हज़रत वहां से अपने घर तशरीफ़ लाये और ख़दीजातुल कुबरा और अली बिन अबी तालिब से वाक़िया बयान फ़रमाया। इन दोनों ने इज़हारे ईमान किया और नमाज़े अस्र इन दोनों ने ब जमाअत अदा की। यह इस्लाम की पहली नमाज़े जमाअत थी जिसमें रसूले करीम (स.व.व.अ.) इमाम और ख़दीजा ( स.व.व.अ.) और अली (अ.स.) मासूम थे। आप दरजाए नबूवत पर बदोफ़ितरत ही से फ़ायज़ थे। 27 रजब को मबऊसे रिसालत हुए। (हयातूल कुलूब, किताब अलमुनतक़ा, मवाहिबुल दुनिया ) इसी तारीख़ के नुज़ूले कुरआन की इब्तेदा हुई। हाशिया हज़रत अली बिन अबी तालिब के साबेकुल इस्लाम होने के बारे में इतनी ज़्या रवायत व शवाहिद मौजूद है कि अगर उन्हें जमा किया जाय तो एक किताब बन सकती है। हज़रते रसूले करीम (स.व.व.अ.) ने खुद इसकी तसदीक फ़रमाई है चुनान्चे दार क़त्नी ने अबू सईद हजरी से इमाम अहमद ने हज़रत उमर से हाकिम ने माअज़ से अक़्ली ने हज़रत आयशा से रवायत की है कि हज़रत रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) ने अपनी ज़बाने मुबारक से इरशाद फ़रमाया है कि मुझ पर ईमान लाने वालों में सब से पहले अली (अ.स.) हैं। हज़रत अली (अ.स.) खुद इरशाद फ़रमाते हैं :-
मैंने तुम सब से पहले इस्लाम की तरफ़ बढ़ कर उसका ख़ैर मक़दम किया है। यह वाक़िया है उस वक़्त का जब कि मैं बालिग़ भी न हुआ था। शैख़ अल इस्लाम हाफ़िज़ इब्ने हजर असकलानी, तकरीब अल तहज़ीब मुद्रित देहली के पृष्ठ 84 पर कुछ अक़वाल लिखने के बाद लिखते हैं अलमरजाअनहा अव्वलीन असलम तरजीह उसी को है कि आपने सब से पहले इस्लाम ज़ाहिर किया । अल्लामा अब्दुल रहमान इब्ने खल्दून लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा के बाद हज़रत अली इब्ने अबी तालिब ईमान लाये। (तारीख़ इब्ने खल्दून पृष्ठ 295 मुद्रित लाहौर) मुवर्रीख़ अबुल फ़िदा लिखते हैं कि जनाबे ख़दीजा के अव्वल ईमान लाने में और मुसलमान होने में किसी को इख़्तेलाफ़ नहीं, मगर इख़्तिलाफ़ उनके बाद में है कि बीबी ख़दीजा ( स.व.व.अ.) के बाद कौन पहले ईमान लाया। साहेबे सीरत और बहुत से अहले इल्म बयान करते हैं कि मर्दों मे सब से पहले हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ. स.) 9, 10 या 11 बरस की उम्र में सब से पहले मुसलमान हुए। अफ़ीक़ कन्दी की रवायत से भी इसी की तस्दीक़ होती है जिसमें उन्होंने चश्मदीद गवाह की हैसियत से वज़ाहत की है कि मैंने रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) को नमाज़ पढ़ते हुए बेअसत के फ़ौरन बाद इस आलम में देखा कि उनके पीछे जनाबे ख़दीजा और हज़रत अली (अ.स.) खड़े थे उस वक़्त कोई ईमान न लाया था। इस रवायत को अल्लामा बिन अब्दुल जज़री क़रतबी ने इस्तेयाब जिल्द 2 पृष्ठ 225 मुद्रित हैदराबाद दकन में अल्लामा इब्ने असीर जरज़ी ने असद उलग़ाबा जिल्द 3 पृष्ठ 414 मुद्रित मिस्र में अल्लामा

इब्ने जरीर तबरी ने तारीख़े क़दीर जिल्द 2 पृष्ठ 212 मुद्रित मिस्र में अल्लामा इब्ने असीर ने तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 20 में दर्ज किया है।

साहेबे तफ़रीह अल अज़किया ने सबीहतुल महफ़िल से नक़्ल किया है कि दोशम्बे को रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) मबऊसे रिसालत हुए हैं और उसी दिन आखिरे वक़्त हज़रत अली (अ.स.) मुशर्रफ़ बा इस्लाम हुए हैं। यही कुछ रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 83 में भी है। अल्लामा अब्दुल बर ने दावा किया है कि बिल इत्तेफ़ाक़ साबित है कि ख़दीजा के बाद सब से पहले हज़रत अली (अ.स.) मुशर्रफ़ ब इस्लाम हुए हैं। अल्लामा इक़बाल कहते है।

मुस्लिम अव्वल शहे मर्दाने अली — इश्क़ रा सरमायाए ईमाने अली वाज़े हो कि हज़रत अली (अ.स.) अज़ल से ही मुसलमान और मोमिन थे, उनके लिये इस्लाम लाने का जुम्ला मुनासिब नहीं है लेहाज़ा जहां कहीं भी तारीख़ में उनके बारे में इस्लाम या ईमान लाने का जुम्ला है इससे इज़हारे इस्लाम वा ईमान समझना चाहिए।



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