चौदह सितारे पार्ट 3

जनाबे अब्दुल मुत्तलिब

आप हज़रत हाशिम के नेहायत जलीलउल क़द्र साहबजादे थे। 497 ई0 में पैदा हुए वालिद का इन्तेक़ाल बचपने में ही हो चुका था। परवरिश के फ़राएज़ आपके चचा मुत्तलिब के कनारे आतफ़त में अदा हुए और ख़ुश क़िस्मती से आखिर में अरब के सब से बड़े सरदार क़रार पाए । आपके वालिद ही की तरह आपकी वालेदा भी ( जिनका नाम सलमा था) शराफ़त व अज़मत में इन्तेहाई बुलन्दी की मालिक थीं। इब्ने हाशिम का कहना है कि वह वेक़ारे ख़ानदानी की वजह से अपने निकाह को इस शर्त से मशरूत करती थीं कि तौलीद के मौके पर अपने मैके में रहूगीं। जनाबे अब्दुल मुत्तलिब का एक नाम शेबातुल हम्द भी था क्यों कि आप की विलादत के वक़्त आपके सर पर सफ़ेद बाल थे और शेब सफ़ेद सर को कहते हैं । हम्द से उसे मुज़ाफ़ इस लिये किया कि आगे चल कर बे इन्तेहा मम्दूह होने की इनमें अलामतें देखी जा रही थीं। आप सिने शऊर तक पहुँचते ही जनाबे हाशिम की तरह नामवर और मशहूर हो गये। आपने अपने आबाओ अजदाद की तरह अपने ऊपर शराब हराम कर रखी थी और ग़ारे हिरा में बैठ कर इबादत करते थे। आपका दस्तर ख़्वान इतना वसी था कि इन्सानों के अलावा परिन्दों को भी खाना खिलाया जाता था। मुसीबत ज़दों की इमदाद और अपाहिजों की ख़बर गीरी इनका ख़ास शेवा था। आप ने बाज़ ऐसे तरीक़े राएज किये जो बाद में मज़हबी नुकताए नज़र से इन्सानी ज़िन्दगी के उसूल बन गये। मसलत इफ़ाए नज़र निकाह मेहरम से इजतेनाब, दुख़्तर कशी की मुमानियत ख़मरो ज़िना की हुरमत और क़ित दे सारिक़ के अब्दुल मुत्तलिब का यह अज़ीम कारनामा है कि उन्होंने चाहे ज़मज़म को जो मरूर ज़माने से बन्द हो चुका था फिर ख़ुदवा कर जारी किया।

आपके अहद का एक अहम वाक़ेया काबा ए मोअज्ज़मा पर लश्कर कशी है। मुर्रेख़ीन का कहना है कि अबरहातुल अशरम का ईसाई बादशाह था। उसमें मज़हबी ताअस्सुब बेहद था। ख़ाना ए काबा की अज़मत व हुरमत देख कर आतिशे हसद से भड़क उठा और इसके वेकार को घटाने के लिये मक़ामे सनआ में एक अज़ीमुश्शान गिरजा बनवाया । मगर इसकी लोगों की नज़र में ख़ाना ए काबा वाली अज़मत न पैदा हो सकी तो इसने काबे को ढाने का फ़ैसला किया और असवद बिन मक़सूद हबशी की ज़ेरे सर करदगी में एक अज़ीम लशकर मक्के की तरफ़ रवाना कर दिया। क़ुरैश, कनाना, ख़ज़ाओ और हज़ील पहले तो लड़ने के लिये
तैय्यार हुए लेकिन लशकर की कसरत देख कर हिम्मत हार बैठे और मक्के की पहाड़ियों में अहलो अयाल समेत जा छिपे । अल बत्ता अब्दुल मुत्तलिब अपने चन्द साथियों समेत ख़ाना ए काबा के दरवाज़े में जा खड़े हुए और कहा ! मालिक यह तेरा घर है और सिर्फ़ तू ही बचाने वाला है। इसी दौरान में लशकर के सरदार ने मक्के वालों के खेत से मवेशी पकड़े जिनमें अब्दुल मुत्तलिब के 200 ऊँट भी थे। अलग़रज़ अबराहा ने हनाते हमीरी को मक्के वालों के पास भेजा और कहा के हम तुम से लड़ने नहीं आये हमारा इरादा सिर्फ़ काबा ढाने का है। अब्दुल मुत्तलिब ने पैग़ाम का जवाब यह दिया कि हमें भी लड़ने से कोई ग़रज़ नहीं और इसके बाद अब्दुल मुत्तलिब ने अबराहा से मिलने की दरख्वास्त की। उसने इजाज़त दी यह दाखिले दरबार हुए। अबराहा ने पुर तपाक ख़ैर मक़दम किया और इनके हमराह तख़्त से उतर कर फ़र्श पर बैठा। अब्दुल मुत्तलिब ने दौनाने गुफ्तगू में अपने ऊँटों की रेहाई और वापसी का सवाल किया। उसने कहा तुम ने अपने आबाई मकान काबे के लिये कुछ नहीं कहा। उन्होंने जवाब दिया अना रब्बिल अब्ल वलिल बैत रब्बुन समीनाह मैं ऊँटों का मालिक हूँ अपने ऊँट मांगता हूँ जो काबे का मालिक है अपने घर को ख़ुद बचाऐगा। अब्दुल मुत्तलिब के ऊँट उन को मिल गये और वह वापस आ गये और क़ुरैश को पहाड़ियों पर भेज कर ख़ुद वहीं ठहर गये। ग़रज़ कि अबराहा अजीमुश्शान लश्कर ले कर ख़ाना ए काबा की तरफ़ बढ़ा और जब इसकी दीवारे नज़र आने लगीं तो धावा बोल देने का हुक्म दिया। ख़ुदा का करना देखिए
कि जैसे ही गुस्ताख़ व बेबाक लशकर ने क़दम बढ़ाया मक्के के ग़रबी सिमत से ख़ुदा वन्दे आलम का हवाई लशकर अबा बील की सूरत में नमूदार हुआ। इन परिन्दों की चोंच और पन्जों में एक एक कंकरी थी। उन्होंने यह कंकरियां अबराहा के लशकर पर बरसाना शुरू कीं। छोटी छोटी कंकरयों ने बड़ी बड़ी गोलियों का काम कर के सारे लशकर का काम तमाम कर दिया। अबराहा जो महमूद नामी सुखर् हाथी पर सवार था ज़ख़्मी हो कर यमन की तरफ़ भागा लेकिन रास्ते ही में वासिले जहन्नम हो गया। यह वाक़ेया 570 ई0 का है।

1. सना यमन का दारूल हुकूमत है। उसे क़दीम ज़माने में उज़ाली भी कहते थे। तमाम अरब में सब से उम्दा और ख़ूब सूरत शहर है। अदन से 260 मील के फ़ासले पर एक ज़रखेज़ वादी में वाक़े है इसकी आबो हवा मोतादिल और ख़ुश गवार है। इसके जुनूब मशरिक़ में तीन दिन की मसाफ़त पर शहर क़रीब है जिसको सबा भी कहते हैं सना के शुमाल मग़रिब में 60 फ़रसख़ पर सुरह है यहां का चमड़ा दूर दराज मुल्कों में तिजारत को जाता है। सना के मग़रिब में बहरे कुल्जुम से एक मन्ज़िल की मसाफ़त पर शहर जुबैद वाक़े है जहां से तिजारत के वास्ते कहवा अंतराफ़ में जाता है। ज़ुबैद से 4 मन्ज़िल और सना से 6 मन्ज़िल पर बैतुल फ़क़ीह वाक़े है। जुबैद के शुमाल मशरिक़ में शहर मोहजिम है सना से 6 मन्ज़िल के फ़ासले पर ज़ुबैद के जुनूब में क़िला ए तज़ है। सना के शुमाल में 10 मन्ज़िल की मुसाफ़त पर नज़रान है।

चूकि अबराहा हाथी पर सवार था और अरबों ने इस से पहले हाथी न देखा था नीज़ इस लिये कि बड़े बड़े हाथियों को छोटे छोटे परिन्दों की नन्हीं नन्हीं कंकरियों से बा हुक्मे ख़ुदा तबाह कर के ख़ुदा के घर को बचा लिया इस लिये इस वाकये को हाथी की तरफ़ से मन्सूब किया गया और इसी से सने आमूल फ़ील कहा गया। मेंहदी का खिजाब अब्दुल मुत्तलिब ने ईजाद किया है । इब्ने नदीम का कहना है कि आपके हाथ का लिखा हुआ एक ख़त मामून रशीद के कुतुब ख़ाने में मौजूद था। अल्लामा मजलिसी और मौलवी शिब्ली का कहना है कि आपने 82 साल की उम्र में वफ़ात पाई और मक़ामे हुज़ून में दफ़्न हुए। मेरे नज़दीक आपका सने वफ़ात 578 ईसवी है।

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