चौदह सितारे पार्ट 2

अब्दे मनाफ़

कुसई के छः बेटे थे जिन में अब्दुलदार सब से बड़ा और अब्दुल मुनाफ़ सब से लाएक़ था। उन्होंने मरते समय बड़े बेटे को तमाम मनासिब सिपुर्द किये लेकिन अब्दे मनाफ़ ने अपनी लेआक़त की वजह से सब में शिरकत हासिल कर ली। यह क़ुरैश के मुस्सलेमुससबूत सरदार बन गये। अब्दे मनाफ़ का असली नाम मुग़ैरा और कुन्नियत अबू अब्दे शम्स थी और माँ का नाम हबी बिन्ते ख़लील था । उन्होंने आमका बिन्ते मरह सलेमह बिन हलाल से शादी की। उन्हें हुसनों जमाल की वजह से क़मर कहा जाता था। दियारे बकरी का कहना है कि अब्दे मनाफ़ को मुग़ैरा कहते थे। वह तक़वा व सिलाए रहम की तलक़ीन किया करते थे। बाप और बेटे एक ही अक़ीदे पर थे और उन्होंने कभी बुत परस्ती नहीं की। यह भी अपने बाप कुसई की तरह मनाक़िब बेहद और फ़ज़ाएले बेशुमार के मालिक और नूरे मोहम्मदी के हामिल थे। उन्होंने मुल्के शाम के मक़ाम ग़ज़वे में इन्तेक़ाल किया।

अब्दे मनाफ़ के जीते जी तो कोई झगड़ा डठा नहीं इनके बाद उनकी अवलाद जिनमें हाशिम, मुत्तलिब अब्दे शम्स और नौफ़िल नुमाया हैसियत रखते थे उन्में यह जज़बा उभर पड़ा कि अब्दुलदार की औलाद से वह मनासिब ले लेने चाहिये जिनके वह अहल नहीं चुनान्चे इन लोगों ने बनी अब्दुलदार से मनासिब की वापसी या तकसीम का सवाल किया उन्होने इन्कार कर दिया। इसके बाद जंग का मैदान हमवार हो गया। बिल आख़िर इस बात पर सुलह हो गई कि रेफ़ायदा सकाया की
क़यादत बनी अब्दे मुनाफ़ में है और लवा बरदारी का मनसब बनी अब्दुलदार के पास रहे और दारूल नदवा की सदारत मुश्तरका हो ।

हाशिम

आप का नाम अम्र कुन्नियत अबू नाफ़ला थी। आपके वालिद अब्दे मनाफ़ और वालेदा आतका बिनते मरह अल सलमिया थी। आपको उलू मरतबा की वजह से अम्र अलअला भी कहते थे। आप और अब्दुल शम्स दोनों इस तरह जुड़वाँ पैदा हुए थे के इनके पाँव का पन्जा अब्दुल शम्स की पेशानी से चिपका हुआ था जिसे तलवार के ज़रिये अलाहेदा किया गया और बेइन्तेहा ख़ून बहा जिस की ताबीर नुजूमियों ने बाहमी खूंरेज़ जंग से की जो बिल्कुल सही उतरी और दोनो ख़ानदानों के दरमियान हमेशा जंग मुतावरिस रही। जिसका एख़तेताम 133 हिजरी में हुआ। बनी अब्बास (हाशमी) और बनी उमय्या (शम्सी) में ऐसी ख़ूरेज़ जंग हुई जिसने बनी उमय्या की कुव्वत व ताक़त और बुलन्दीए इक़बाल का चिराग़ हमेशा के लिये गुल कर दिया। आप फ़ितरतन सैर चश्म और फ़य्याज़ थे। दौलत मन्दी में भी बड़ी हैसियत के मालिक थे हुजाज की खिदमत आप की ज़िन्दगी का कारनामा था। मुर्रेख़ीन का कहना है कि आप को हाशिम इस लिये कहते हैं कि आपने एक शदीद क़हत के मौक़े पर अपनी ज़ाती दौलत से शाम जा कर बहुत काफ़ी केक ख़रीदे थे और उसे ला कर तक़सीम करते हुए कहा कि इसे शोरबा में तोड़ कर खा
जाओ। हाशिम के मानी तोड़ने के हैं लेहाज़ा हाशिम कहे जाने लगे। आप ने अपनी शादी अपने ख़ानदान की एक लड़की से की जिससे हज़रत असद पैदा हुए। दूसरी शादी ख़ज़रजियों के एक मशहूर क़बीले बनी अदी इब्ने नजार यसरब (मदीना) की नजीबुत तरफ़ैन दुख़्तर से की। उसी के बतन से एक बा वेकार लड़का पैदा हुआ जो आगे चल कर अब्दुल मुत्तलिब शेबत उल हम्द से पुकारा गया। अब्दुल मुत्तलिब अभी दूध ही पीते थे कि जनाबे हाशिम का इन्तेक़ाल हो गया। आपकी औलाद के मुतअल्लिक़ हज़रत जिबराईल का कहना है कि मैंने मशरिक़ो मग़रिब को छान कर देखा है कि मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.व.व.अ.) से बेहतर कोई नहीं है और बनी हाशिम से बेहतर कोई ख़ानदान नहीं है। जनाबे हाशिम ने 510 ई0 में बामक़ाम ग़ज़वाए शाम में इन्तेक़ाल फ़रमाया ।

जनाबे असद

आप हज़रते हाशिम के बड़े बेटे थे, आपकी विलादत 497 ई0 से क़ब्ल हुई थी। आप में इन्सानी हमदर्दी बहद्दे कमाल पहुँची हुई थी। फ़ख़रुद्दीन राज़ी का बयान है कि जनाबे असद ने एक दिन एक दोस्त को सख़्त भूखा पा कर (जो बनी खज़दम से था) अपनी वालेदा से कहा कि इसके लिये खाने का बन्दोबस्त करो, उन्होंने पनीर और आटा वगैरा काफ़ी मिक़दार में इसके घर भिजवा कर उसे सुकून बख़्शा फिर इस वाकेए से मुताअस्सिर हो कर जनाबे हाशिम ने अहले मक्का को
जमा किया और इनमें तिजारत का जज़बा व शौक़ पैदा किया। असद के मानी शेर के हैं। इब्ने ख़ालविया का यह कहना है कि शेर के पांच सौ नाम हैं जिनमें एक असद भी है। शेर भूख और प्यास पर साबिर होता है। अल्लामा तरीही का कहना है कि शेर की अवलाद कम होती है शायद यही वजह थी कि हज़रते असद के अवलाद कम थी बल्कि अवलादे ज़कूर मफ़कूद और ग़ालेबन सिर्फ़ फातेमा बिन्ते असद ही थीं जो बाद में हज़रत अली (अ.स.) वालेदा गिरामी करार पायीं ।

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