
ख़ताकार को इनाम
एक दिन हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपने दौलतखान पर चंद लोगों के साथ मिलकर खाना तनावुल फरमा रहे थे कि आपने अपने गुलाम को सालन लाने के लिये इरशाद फरमाया। वह लाया अचानक उसके हाथ से बर्तन गिर पड़ा और टूट गया। सालन का कुछ हिस्सा हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पर भी गिरा। गुलाम यह मंज़र देखकर घबराया। हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अ ने उसकी तरफ देखा तो उसने झट यह आयत पढ़ दी। गुस्सा पीने क आपने फ़रमायाः मैंने गुस्सा पी लिया है। उसने फिर पढ़ा (और लोगों दरगुज़र करने वालो) आपने फरमाया जाओ, मैंने माफ भी कर दिया। उसने फिर पढ़ा और एहसान करने वाले अल्लाह के महबूब है, आपर फ़्रमायाः जाओ मैंने तुम्हें आज़ाद भी कर दिया । (रूहुल ब्यान जिल्द १, सफा ३६४)
सबक़ : अपने मातहतों पर रहम करना चाहिये और गुस्से को पी लेना और खताकार को माफ़ कर देना और उस पर एहसान भी करना यह अल्लाह तआला के महबूबों का काम है। इमाम हसन रज़ियल्ललाहु तआला अन्हु अल्लाह के महबूब थे।

