
अमीरुल-मोमिनीन हज़रत फारूके आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने ग़ज़्वे रोम के मौके पर हज़रत मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मशवरा तलब फ़रमाया कि इस ग़ज्वा में बजाते खुद शिरकत करूं या न करूं । हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह मशवरा दिया
“अल्लाह तआला इस दीन वालों को ग़ालिब फ्रमाने का ज़ामिन (गवाह) है। अल्लाह वह है जिसने मुसलमानों की उस वक़्त भी मदद फ़रमाई थी जबकि वह थोड़े थे और दूसरा कोई उनका मददगार न था। ऐ उमर ! अगर आप बजाते खुद चलेंगे। दुशमनों से मुकाबला हुआ और आपको कोई तकलीफ पहुंची तो फिर मुसलमानों की कोई जगह पनाह की न रहेगी। क्योंकि मुसलमानों के लिये सिवाये आपके और कोई पनाह की जगह नहीं। इसलिये आप किसी और को भेज दें और खुद न जायें ।” (नहजुल बलागः सफा २७१ )

