मुक़द्दस पानी

मुक़द्दस पानी

एक मक़ाम पर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वुजू फ्रमाया तो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने वुजू से बचा हुआ पानी ले लिया। दीगर (और दूसरे) सहाबए किराम ने जब देखा कि बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वुजू का बचा हुआ पानी है तो वह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की तरफ दौड़े और उस मुक़द्दस पानी को हासिल करने की कोशिश करने लगे। जिस किसी को उस पानी से थोड़ा पानी मिल जाता वह उसे अपने मुंह पर मल लेता और जिस किसी को न मिल सका तो उसने किसी दूसरे के हाथ से तरी ले कर मुंह पर हाथ फेर लिया। (मिश्कात शरीफ सफा ६५)

सहाबए किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हर उस चीज़ से जिसे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई निसबत हासिल हो गयी, मुहब्बत व प्यार था और उसे वाजिबे ताज़ीम समझते थे। उससे बरकत हासिल करते थे। मालूम हुआ कि तबर्रुक कोई नई बात और बिदअत नहीं बल्कि सहाबए किराम का भी मामूल था। यह भी मालूम हुआ कि अपने वुजू के बचे हुए पानी को बतौर तबक लेकर अपने चेहरों पर मल लेने का हुक्म हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नहीं दिया गया मगर सहाबए किराम फिर भी ऐसा करते थे। उनका फेअल मुहब्बत की वजह से था जो ऐन ईमान है। इसी तरह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुलूस, मिलाद, महफिले मिलाद अज़ान में नाम पाक सुनकर अंगूठे चूमने का हुक्म अगर न भी दिया हो तो भी जो शख़्स मुहब्बत की वजह से ऐसा करेगा इंशाअल्लाह सहाबए किराम के सदके में सवाब पाएगा।

Leave a comment