
सैय्यदना मारूफ साहब वारसी का कथन है कि एक बार हाजी वारिस पाक लखनऊ में आगा मीर की डयोढ़ी को शैदा मियाँ वारसी के मकान पर जा रहे थे। मैं भी साथ था। सड़क के किनारे दो पादरी भाषण दे रहे थे। सैकड़ो हिन्दू-मुसलमान वहाँ एकत्र थे। पादरियों के भाषण से हिन्दू तथा मुसलमान उत्तेजित हो गए और बाढ़ यहाँ तक बढ़ी कि झगड़े की नौबत आ गयी। पादरी लोगों ने हुजूर को आते देखकर उच्च स्वर से पुकारा और कहा हाजी साहब मेरी सहायता कीजिये । हुजूर पाक ने सैय्यद मारूफ शाह साहब को आदेश दिया जल्दी देखो, क्या मामला है? सैय्यद साहब तेजी से दौड़कर भीड़ को सम्हालने लगे तब तक हुजूर पाक भी पधारे। पूछने पर लोगों ने कहा कि दोनों पादरी रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सम्बन्ध में अनुचित शब्दों का प्रयोग कर रहे थे। सिर्फ स्वयं को तौहीद पर वरीयता देते थे। एक पादरी ने हुजूर से कहा कि हम तो केवल अपने धर्म की सत्यता व्यान कर रहे थे। आप ही इन्साफ करें। मानव स्वभाव की यह विशेषता है कि बिन बाप के बच्चा पैद नहीं हो सकता है। क़ुरआन शरीफ में भी ईसा मसीह बिना बाप के हैं। उनके बाप का नाम या बात किसी आसमानी किताब में नहीं है। अतः सभी नबियों (अवतारों) पर उनकी बुजुर्गी अथवा गौरव प्रभावित है। हुजूर पाक ने कहा ‘पादरी साहब अगर मान भी लिया जाय कि ईसा मसीह अल्लाह के बेटे हैं तो भी उनको दूसरे नबियों पर वरियता नहीं है।’ पेदरम सुल्तान बुदे (मेरा बाप बादशाह था) से कुछ नहीं होता जब तक यह निश्चित न हो जाये कि बाप के बाद लड़का उत्तराधिकारी होगा। फिर उखुव की मौत ही नहीं है जो ईसा मसीह को राजगद्दी नसीब होगी।’ आपके इस कथन से पादरी लोग मूर्तिवत हो गये और लोगों का हल्ला-गुल्ला ठण्डा हो गया। लोगों ने अपने-अपने घरों की राह ली।
सरकार वारिस पाक का वक्तव्य जो बाहरी बातों से सम्बन्धित है उसमें भी विशेष मर्यादा झलकती थी। आपकी बातें तथा लोगों के प्रति उत्तर इस कदर समुचित और यथोचित होते थे जिससे सम्बन्धि बात होती थी। वह अपने मन में स्थित हो जाता था। अत: विदित है कि हुजूर पाक हकीकत पर आधारित बात करते और प्रश्नों के मूल पर दृष्टि होती थी। आप अन्य छोटी बातों पर नहीं सोचते थे। आपके कुछ ज्ञानवर्धक और रहस्यमयी उत्तर इतने गुणार्थ लिये होते थे कि ज्ञान वालों को भी बहुत उलझन में डाल देते थे। लोगों को वास्तविक अर्थ तक पहुंचने में अधिक समय लगता था। इसके सबूत में निम्न घटना प्रस्तुत की जाती है:” एक बार शाह ज़हूर अशरफ साहब वारसी के पास उनके एक मित्र का पत्र मिला जिसमें लिखा था यहाँ दो मौलवी आपस में इस बात पर लड़ रहे हैं कि. हजरत ईसा मसीह की माता का क्या नाम था ? शाह ज़हूर अशरफ साहब वारसी ने शैदा मियां से कहा कि आप हुजूर पाक से पूछें। सुअवसर देखकर एक दिन शैदा मियां वारसी ने पूछा। हुजूर ने उत्तर दिया “बिन्ते अरबी” यह सुनकर सबको आश्चर्य हुआ और लोगों ने पूछा यह नाम किसी अन्य पुस्तक में भी है। आपने पुनः कहा क़ुरआन में देखो। किन्तु देखने पर भी नहीं मिला। आपने फिर कहा ‘हमारे क़ुरआन में देखो। इस पर कुछ लोगों को और अचम्भा हुआ कि हमारे और आपके क़ुरआन में भी कुछ फर्क है। पुनः शैदा मियां को ख्याल हुआ कि हुज़ूर पाक की तिलावत में जो क़ुरआन शरीफ है उसमें तफसीर हुसेनी भी किनारे पर अंकित है। उसमें देखा गया। बाइसवें अध्याय में इब्रानी भाषा का शब्द ‘खुयल्द’ निकला। इस पर भी लोग अचम्भे में पड़े। चूँकि किसी की हिम्मत नहीं होती कि उनसे बार-बार प्रश्न करें। इसलिए शैदा साहब ने मौलवी फखरूद्दीन साहब देवा शरीफ के पुस्तकालय में जाकर इब्रानी भाषा के शब्दकोष में मिला जिसका अरबी अनुवाद ‘बिन्ते अरबी’ मिला। फिर हम लोगों के समझ में बात आई कि हुजूर ने हम लोगों की जानकारी के अनुसार अरबी भाषा में बतलाया था। –
मुंशी अब्दुल गनी साहब महुवना रईसपुर और अब्दुल गनी खाँ साहब राय बरेली के हैं, इन लोगों ने मुस्तकीम शाह साहिबा वारसिया का उर्ग करना चाहा। इस पर एक बुजुर्ग जो आलिम भी थे उन्होंने कहा कि औरतों को उस नहीं करना चाहिए। जायज़ नहीं है। जब उक्त आलिम महोदय हुजूर पाक से मिले तो आपने कहा ‘मौलवी साहब आपको मालूम है कि रूह (आत्मा) को मौत नहीं है। जब पैदा होने वाली दुनिया का यह आलम है तो अवलिया अल्लाह (अल्लाह के दोस्त के) की क्या बात है। उनकी शान में क़ुरआन साक्षी है ‘इन्नमल औलिया अल्लाह लायमूतूना” यकीन जानो कि अल्लाह के दोस्त अथवा मित्र नहीं मरते हैं। जो कुछ औलिया के लिए होता है सब जीवित के प्रति भेंट है अथवा सौगात है। मौलवी साहब आप ही बताइये।’ मुस्तकीम शाह ने मौला की खोज में सिर खोला या दुनिया की तलाश में अथवा आखिरत की खोज में मौलाना ने इतना सुनकर मान लिया कि इनके उर्स है कोई दोष नहीं है।
हुजूर पाक का छोटा सा उत्तर हकीकत का सारांश होता था। मौलाना चूंकि अध्यात्म के पात्र और सम्बन्ध वाले थे। इसलिए आप ने उन्हीं के शैक्षिक स्तर पर,उनको समझाया ।
– श्री हुसेन बक्श व मुहम्मद बक्श दोनों सिलसिला नकशबन्द सम्प्रदाय के धार्मिक चेले थे जो जोगीपुरा निकट हाथरस, जिला – अलीगढ़ के निवासी थे। लिखते हैं कि हुजूर पाक हाथरस में मौलवी रूक्ने आलम साहब के मकान पर थे। बहुत से लोग एकत्र थे। हम लोग भी उसी में थे। आपकी सेवा में चार विख्यात पण्डित उपस्थित हुए। उनमें एक का नाम लीलाधर और दूसरे का बावन जी था। वह इस गरज़ से आए थे कि हुजूर का दरबार दानी है। कुछ नकदी जरूर हाथ लगेगी। हुजूर पाक के समक्ष हाजिर होकर श्लोक सुनाने लगे। जितने श्लोक वे सुनाते थे हुजूर उसके दूने सुनाते थे। आपकी जानकारी से वह परेशान हो गए और चलने को तैयार हुए तब हुजूर ने कहा ‘ जिसके लिए आए हो वह तो लिए जाओ’ रुक़नुद्दीन साहब ने चारों को अलग-अलग कुछ रूपया दिया और ये आपकी जानकारी से प्रभावित होकर चले गए ।
हकीम महमूद वली साहब वारसी, हकीम याकूब बेग साहब का कथन लिखते हैं कि एक बार में हुजूर वारिस पाक की सेवा में हाजिर था । एक बहुत बड़े पण्डित जो वेद विद्या के अतिरिक्त ज्योतिष विद्या के भी ज्ञाता थे, आपके पास आए। आपने उनसे कहा ‘पण्डित जी ! आपको तो अपनी विद्या का अच्छा ज्ञान है। यह तो बताइए कि प्रहलाद ने जिस समय ईश्वर आशक्त होकर अपनी शोक और प्रेम में ब्रह्म अर्थात वास्तविक ईश्वर का नाम रटना आरम्भ किया। उसके पिता हिरण्यकश्यप ने इस कार्य से क्रोधित हो अपने योग्य एवं होनहार बेटे से कहने लगा ‘सावधान ! मेरे सामने राम का नाम कदापि न लेना, नहीं तो इस तलवार से तेरा सर उड़ा दूंगा।’ प्रह्लाद ने जब पिता का यह अनुचित विरोध सुना तो उसे भी जोश आ गया तथा उसने ईश्वर विलीनता की दशा में अपने पिता से कहा ‘मुझमें राम तुझ में राम, खड्ग, खम्भ सब में राम’ अर्थात मुझ में, तुम में, खड्ग और खम्भे सबमें उस एक ईश्वर का प्रकाश प्रकाशमान है। उसके कहते ही खम्भा फट गया तथा ब्रह्म का रूप शेर के चोले में प्रकट हुआ जिसने हिरण्यकश्यप को टुकड़े-टुकड़े कर डाला। प्रश्न यह होता है कि प्रह्लाद ने मुझ में, तुम में, खड्ग और खम्भे चार वस्तुओं में ईश्वर के प्रकाश का वर्णन किया। किन्तु ब्रह्म का रूप खम्भे से प्रकट हुआ। शेष तीन वस्तुओं में से अन्य किसी से प्रकट नहीं हुआ। इन वस्तुओं में खम्भे की क्या विशेषता थी ? पंडित जी ! इस भगवान के पहचान के प्रश्न से परेशान हो गए। आपकी ओर देखते रह गए। असमर्थ होकर प्रार्थना किए कि आप ही फरमाऐं। इस हकीकत को मैं –
ब्यान नहीं कर सकता। मेरी अधूरी समझ इस उच्च विषय को समझने में असमर्थ है। तदुपरान्त आप ने कहा, ‘सुनो, सुनो, पंडित ! प्रह्लाद ने मुझ में, तुम में, खड्ग और खम्भे चार वस्तुओं पर आकर रूक गया। ईश्वर वहीं से प्रकट हो गया। मनुष्य जिस वस्तु को दृढ़ता से पकड़ ले और उसी पर रूक जाए वहीं ख़ुदा है। पंडित जी इन वचनों पर आत्मविभोर हो गए और पैरों पर गिर गए तथा प्रार्थना करने लगे कि जैसा मैंने आपके सम्बन्ध में सुना था उससे हज़ार गुना अधिक पाया। आपके एक उपदेश (नसीहत) ने मेरे जीवन भर के ज्ञान की वास्तविकता खोल दी। वास्तव में यह ज्ञान, ज्ञान है। इसके समक्ष सभी ज्ञान तुच्छ हैं। यह कहकर पंडित जी आत्म विभोर हो झूमने लगे। वास्तव में इस कथन का उद्देश्य पंडित जी को ज्ञान देना था। आए दिन इस प्रकार की घटनाएं उपस्थित होती रहती थी। अच्छे-अच्छे ज्ञानी और विज्ञानी इनके यश से उपकृत होते रहते थे
जब आप मौज में होते थे तो ऐसे नुक़ते और बारीकियाँ शब्दों में प्रकट कर देते थे जिनका वाह्य ज्ञान द्वारा जानना और समझना असम्भव था। एक बार की बात है कि मौलाना शाह सैय्यद अली अशरफी अलजीलानी गद्दीनशीन किछौछा, अपने धार्मिक चेलों के साथ सैदनपुर में मिलने आये तो दो-चार मिनट बाद आप ने कहा, ‘ अच्छा अब फिर मुलाकात होगी।’ और विदा करने के लिए खड़े हो गए। हाथ मिलाया । पुनः उपस्थित गण से कहा, जरा सब बाहर जाएं।’ उक्त मौलाना खते हैं कि उस समय हुजूर पाक ने अद्वैत्य भाव के रहस्य से सम्बन्धित कुछ कहा, प्रत्येक जीवधारी की मृत्यु निश्चित है और प्राण या आत्मा की मृत्यु नहीं है ईश्वर क़ुरआन में कहता है ‘कुल्लो नफसिन जायएकतुल मौत (प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है) किन्तु ये नहीं कहा है कि, ‘कुल्लो रूहीन जायएकतुल मौत’ (आत्मा की मृत्यु भी है)। मैंने कहा उचित है। इसके पश्चात् सरकार ने ऐसी बातों का वर्णन किया जो आत्मा के भेदों से सम्बन्धित थी । उक्त मौलाना चूंकि अरबी के महाविद्वानों में से हैं, इसलिए हुजूर ने अपनी योग्यतानुसार उनसे बात किया। इससे विदित है कि हुजूर वारिस पाक के निकट जो आता था आप उनके ज्ञान और योग्यता के अनुसार कोई एक बात ऐसी बता देते थे जो उनके ज्ञान का मूल होता था। कला विशेषज्ञों को आप ऐसी बारीकियां समझाते थे कि वे लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। आप ईश्वरीय ज्ञान के अतिरिक्त ज्ञान-विज्ञान और कला को व्यर्थ समझते थे। आपका फ्थ अनुराग और मुहब्बत पर निर्भर था। इसी को आप वास्तविक ज्ञान समझते थे। यह विदित है कि ईश्वरीय ज्ञान वाह्य ज्ञान का
आश्रित नहीं है। इन सबके होते हुए भी यदि इसे ईश्वरीय चमत्कार कहा जाए तो अनुचित न होगा कि आप को पूर्ण रूप से प्रत्येक प्रकार के सांसारिक ज्ञान तथा उनकी वास्तविकता पर इतनी गहरी नजर होती थी, जो माध्यम पुरुष को शान्त और आनन्द विभोर कर देती थी। हुजूर वारिस पाक का व्यक्तित्व ईश्वरीय प्रतिबिम्ब था जिसके द्वारा प्रत्येक कला और ज्ञान दिखायी देते रहते थे।
काव्य रूचि
काव्य, कविता तथा शेर व शायरी से आप आनन्दित होते थे। लोग आप से लाभान्वित होते थे। काव्य की विशेषताओं को भली-भांति जानते थे। प्रत्येक गुणों से सम्पन्न होना ईश्वर प्रदत्त था। आपका काव्य, कविताओं, छन्दों से विशेष सम्बन्ध था। आपका स्वर अति सुन्दर था। जब मौज में आते थे क़ुरआन मीठे स्वर से पढ़ते थे | गज़लें भी सुन्दर लय से पढ़ते थे। आपका स्वर दिलों को पिघला देता था और एक जलन सी पैदा कर देता था। यद्यपि आप कविता पसन्द करते थे किन्तु कभी अपने मुख से कोई कविता अथवा पद की रचना नहीं किया है। अधिकांश लोगों ने कविता कर के आप के नाम से सम्बन्धित कर दिया। जब इस प्रकार रची गयीं कविताएं आपके सम्मुख पढ़ी गयीं तो आपने ऐसा करने वालों को रोक दिया और कहा कि ऐसा नहीं करना चाहिए। किसी भाषा की कविता आप स्वरूचि सुनते थे और उनके गुढ़-अर्थों को खोलकर समझाते थे जिससे यह ज्ञान होता था कि आप काव्य रचना के विशेषज्ञ हैं। आपके पास एक डायरी थी जिसमें आप चुने हुए पद्य लिखते थे और जब काव्य से रूचि रखने वाले व्यक्ति एकत्रित होते थे तो आप उनको पढ़कर सुनाते थे। कविताएं और पद्य आपको अधिक मात्रा में कंठस्थ थे, अन्ताक्षरी से आप बहुत आनन्दित होते थे, कभी कभार आप स्वयं सम्मिलित हो जाते और दस व्यक्तियों को एक ओर करके अकेले हरा देते थे। देखा गया है कि एक ही अक्षर पर समाप्त होने वाले पचासों पद आप क्रमशः सुना जाते थे जिसमें दूसरे लोग थक जाते थे। हज़रत अमीर खुसरो महोदय का कलाम आपके मन को बहुत भाता था। बड़ाई करते और कहते की शिष्य को ऐसा होना चाहिए। पीर (धर्मगुरू) को खुश करने के लिए अमीर खुसरो ऐसा कह करते थे। इसके साथ ही हाफिज शीराजी की गजलें भी आपको याद थीं। मसनवी शायक लगभग पूरी आपको कंठस्थ थी। हुजूर वारिस पाक इश्क मोहब्बत की मूर्ति थे और आशिकाना भावों से सम्बन्धित पद्य आपको प्रसन्द थे | आप से सम्बन्धित बहुत सी पुस्तकें छपी हैं जिनमें अधिकतर कविता की हैं। गद्य में भी पुस्तकें लिखी गयी हैं किन्तु कम ।

