
रसूलुल्लाह की दुहाई
हज़रत अबू – मसऊद बदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक रोज़ अपने गुलाम को किसी बात पर मारने लगे। यह गुलाम पिटने लगा तो ब-आवाज़े बुलंद कहने लगा अल्लाह की दुहाई ! अल्लाह की दुहाई! हज़रत अबू मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हाथ न रोका और मारना जारी रखा। गुलाम ने देखा जब अल्लाह की दुहाई से मेरी ख़लासी नहीं होती तो उसने ज़ोर से कहना शुरू किया रसूलुल्लाह की दुहाई! रसूलुल्लाह की दुहाई! रसूलुल्लाह का नाम सुनते ही हज़रत अबू मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़ौरन हाथ रोक लिया और छोड़ दिया। इतने में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ ले आये और अबू- मसऊद से फ़रमायाः ख़ुदा की कसम ! अल्लाह तआला तुझ पर इससे ज़्यादा कादिर है जितना तू इस गुलाम पर क़ादिर है। हज़रत अबू-मसऊद ने यह इरशाद सुनकर फ़ौरन वह गुलाम आज़ाद कर दिया। ( सही मुस्लिम शरीफ़ अल-अम्न वल उला सफा ७७)

