क़िला ज़मीन में धंस गया

क़िला ज़मीन में धंस गया

मुसलमानों का लशकर शहर असकंद्रिया पर हमला आवर था। असकंद्र का बादशाह खुद भी इस जंग में मौजूद था और बड़े ज़ोर व शोर से लड़ाई का इंतज़ाम कर रहा था । काफ़िर लोग एक बहुत बड़े मज़बूत किले में थे। मुसलमान क़िले के सामने मैदान में पड़े हुए थे। बहुत रोज़ तक बाहम जंग होती रही मगर कुफ़्फ़ार किले में होने की वजह से बचे रहे। उन्हें न ज़्यादा नुक़सान हुआ और न उन्हें कुछ नुक़सान पहुंचा। एक दिन शरजील बिन हसना रज़ियल्लाहु तआला अन्हु सहाबी ने काफ़िरों से यह फ्रमाया कि ऐ काफ़िरो! हमारे अंदर इस वक़्त ऐसे अल्लाह के प्यारे बंदे भी मौजूद हैं कि अगर इस क़िले की दीवार से कहें कि ज़मीन में धंस जा तो फ़ौरन यह किला ज़मीन में धंस जायेगा। यह फरमाकर आपने अपना हाथ क़िले की तरफ उठाया और मुंह से नारा अल्लाहु अकबर का मारा | हाथ से किले की फ़सील को ज़मीन में धंस जाने का इशारा किया । फ़ौरन ही सारा किला जो बड़ा मज़बूत और संगीन था ज़मीन में उतर गया । सारे काफ़िर जो किले के अंदर थे आकर एक खुले मैदान में खड़े हो गये। असकंद्रिया के बादशाह ने यह वाकिया देखा तो होश उड़ गये। शहर छोड़कर बादशाह और उसकी फ़ौज सब भाग गयी और शहर मुसलमानों के हाथ आ गया। 2

( तारीखे वाक़दी व सीरतुलस सालिहीन सफा २२ ) सबक़ : सहाबाए किराम को हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत और उनकी इत्तेबा की बदौलत काइनात पर तसर्रुफ हासिल था । वह खुदा के हो चुके थे और ख़ुदा उनका हामी व मददगार था। आज हम भी ख़ुदा के हो जायें तो सारी खुदाई अपनी है ।

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