हज़रत सैय्यदना अब्दुल्लाह और सैय्यदा आमिना का निकाह– मक्का की बहुत सी नौजवान और ख़ूबसूरत लड़कियों और औरतों ने आप के हुस्न जमाल से मुतास्सिर होकर आप से शादी करने की बहुत कोशिश किया कुछ ने तो बहुत दौलत की पेशकश भी किया लेकिन आपने सब की पेशकश ठुकरा दिया! कुछ अहले किताब बाज़ निशानियों से पहचान गए थे कि नबी आख़िरुज़्ज़मां का वजूदे गिरामी हज़रत अबदुल्लाह के सुल्ब मे जलवागर है इसलिए वो इनको हलाक करने की नियत से मक्का मे आने लगे! एक दिन हज़रत अब्दुल्लाह जंगल मे किसी काम के गरज़ से तशरीफ़ लेगएं वहां मुल्के शाम के कुछ अहले किताब तल्वारों से आप पर हमलावर हो गए इत्तेफ़ाक़न हज़रत आमिना के वालिद वहब बिन मुनाफ़ भी जंगल मे मौजूद थे वो इन हमलावरों को देख कर फिक़्रमंद हो गए फिर उन्होंने देखा कि यका यक चंद सवार ग़ैब से नमुदार हुए और उनकी शकल सूरत आम इंसानो जैसी नही थी उन्होंने उन हमलावरों को मार भगाया! वहब बिन मुनाफ़ इस वाक़िये से बहुत मुतास्सिर हुए और उन्होंने ये सोच लिया कि मै अपनी लख़्ते जिगर आमिना का निकाह इनसे करूँगा! आपने अपने दोस्तों से ये पैग़ाम हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के पास भिजवाया जनाब अब्दुल मुत्तलिब जब इस बात से आगाह हुए तो वो बहुत खुश हुए और इस रिश्ते को ख़ुशि-ख़ुशि तस्लीम कर लिया और हज़रत अब्दुल्लाह का निकाह हज़रत आमिना से हो गया!
फिर वो हुआ जिससे सारी कायनात का निज़ाम बदलने वाला था, जिससे तमाम आलम को रौनक़ मिलने वाली थी, जिससे ज़िन्दगी को शऊर मिलने वाला था, जिससे फूलो को ख़ुशबू और कलियों को तबस्सुम मिलने वाला था, जिससे बहार को ताज़गी मिलने वाली थी, जिससे हवा को मौज और दरिया को रवानगी मिलने वाली थी, जिससे मशअले तारीख़ को एक नई रौशनी मिलने वाली थी, गोया पूरे कायनात को वो सब कुछ मिलने वाला था जो इससे क़ब्ल नही मिला था! वो नूर इस दुनिया मे जलवागर होने वाला था कि जिसकी दुआ इब्राहीम अलैहिस्स्लाम ने किया था, कि जिसकी बशारत ईसा अलैहिस्सलाम ने दिया था, कि जिसे जनाब सैय्यदा आमिना ख़ातून ने ख़्वाब मे देखा था! “ दुआए ख़लील बशारते मसीहा हुआ आमिना के पहलू से हुवैदा“
हुज़ूर पुर नूर सरवरे कायनात जनाब मोहम्मदे अरबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम –यूँ तो किसी क़लम मे ये क़ूवत नही कि जो आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सीरत मुत्ताहिरा पर कुछ बयान करे, क्योंकि आप की सीरत मुत्ताहिरा का शाहिद तो पूरा क़ुरआन मजीद है! लेकिन आपके शाने करीमा का बयान हर अहम किताब के लिये बाईसे फख्र है तो मुसन्निफ यहाँ आपसे मुत्तालिक़ उन पहलुओं पर रौशनी डालेगा जो इस किताब के लिये बहुत ज़रूरी है!
हमारे पैग़म्बर हुज़ूर पाक सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम 12 रबिउल अव्वल सन् 571 ईसवी को मक्का मे पैदा हुए ! आप रूहे ज़मीं के सबसे आला और बुज़ुर्ग ख़ानदान बनि हाशिम मे जलवागर हुए कि जैसा की अहदीसे मुबारिका से साबित है- हज़रत अबु हुरैरा रज़िअल्लाह अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- मै हर ज़माने मे बनि आदम के अफज़ल लोग़ों मे मुन्तक़िल किया गया यहाँ तक कि मुझे उन मे मुन्तक़िल किया गया कि जिसमे मै हुआ हूँ!
सही मुस्लिम मे है कि हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया हक़ तआला ने औलादे इस्माईल अलैहिस्सलाम से कनाना को बर्गुज़ीदा फ़रमाया कनाना से क़ुरैश को क़ुरैश से बनि हाशिम को और बनि हाशिम से मुझको बर्गुज़ीदा फ़रमाया!
और एक हदीसे पाक मे है कि अल्लाह तआला ने अपने तमाम मख़लूक़ से इन्तख़ाब फ़रमाया तो औलादे आदम को बर्गुज़ीदा किया फिर बनि आदम से अरब को और फिर अरब से मुझे बर्गुज़ीदा किया, खूब ग़ौर से सुन लो जो अरब से मुहब्बत रखता है तो वो मुझसे मुहब्बत रखने कि वजह से और जो अरब से दुश्मनी रखता है तो मुझसे दुश्मनी रखने कि वजह से (मदारिजिंनबूवत)
हज़रत सैय्यदा आऐशा सिद्दिक़ा रज़िअल्लाह तआला अन्हा ने हुज़ूर पाक से जिब्रील अलैहिस्सलाम का क़ौल सुना कि जिब्रील अमीन ने हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाया कि मैने मशारिक़ से मग़ारिब को देखा है लेकिन किसी शख़्स को आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से ज़्यादा अफ़ज़ल नही पाया और ना किसी औलाद को बनि हाशिम से अफ़ज़ल पाया है!
हज़रत अनस रज़िअल्लाह तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आएते मुबारिक़ा तिलावत फ़रमाया –”لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِّنْ أَنفُسِكُمْ”
यानी फ़ा को ज़बर से पढ़ा और फ़रमाया मै नसब ससराल और हसब मे तुम सबसे नफ़ीस तरीन हूँ और मेरे आबओ अजदाद मे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम तक कोई सफ़ाह नही बल्कि वो सब निकाह से हैं!
हज़रत अली करमअल्लाह तआला वजहुल करीम से मरवी है कि हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया मेरे आबओ अजदाद निकाह से हैं सफ़ाहे जाहिलियत से नही हज़रत आदम अलैहिस्सलाम तक कोई इस बुराई के क़रीब तक न गया!
हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाह तआला अन्हु आयते मुबारिका- وتا كلل باكا فسساجدين की तफ़्सीर मे फ़रमाते है कि नूरे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हमेशा अस्लाबे तय्यबा से अरहामे ताहिरा की तरफ़ मुन्तक़िल होता रहा है यहाँ तक कि हज़रत सैय्यदा आमिना खातून रज़िअल्लाह तआला अन्हा के यहाँ आप कि विलादत बासआदत हो गई!
ज़िक्र विलादत मुबारक– हज़रत आमिना खातून रज़िअल्लाह तआला अन्हा इरशाद फ़रमाती है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की विलादत बा सआदत के वक़्त मै घर मे अकेले थी हज़रत अब्दुल मुत्तलिब तवाफ़े काबा मे मसरूफ़ थे मैने लेटे-लेटे जो हि ऊपर को देखा तो देखा कोई बड़ी शय छ्त के रास्ते से घर मे आ रही है इससे मुझ पर हैबत छा गई फिर मुझे यूँ मालूम हुआ कि एक सफेद रंग के परिंदे ने अपने पर मेरे जिस्म पर मले हों जिससे वो खौफ़ जाता रहा फिर वो दूध की तरह कोई चीज़ मुझे पीने को दे गए जिससे मुझे मज़ीद सुकून और क़रार मिल गया फिर मैने दराज़ क़ामद और खूबसूरत औरतें देखा जो कि अब्दे मुनाफ़ की बेटियों से मिलती जुलती थी मेरे इर्द गिर्द जमा हो गयीं और मेरा हाल पूछने लगी मुझे बहुत ताज्जुब हुआ मैने उन से पूछा कि आप लोग कौन हैं और कहाँ से तशरीफ़ लायीं हैं उन्होंने फ़रमाया हम आसिया बिन्त मज़ाहिम (फ़िरऔन की बीवी जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लायीं थी) व मरियम बिन्त इमरान (वालिदा माजिदा हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम) हैं और ये सब औरतें जन्नत की हूरें हैं! फिर मैने एक सफेद रंग की चादर देखी जिसे ज़मीन से लेकर आसमान तक आवेज़ा कर दिया गया! फिर मैने देखा कि मेरा कमरा बहुत खुशनुमा परिंदो से भर गया इनकी चोंच याक़ूत और पर ज़मुर्रद के तरह मालूम हो रहे थे फिर यकायक मेरे निगाहों के सामने से हिजाबात को उठा लिया गया और मैने ज़मीन के मशारिक व मग़ारिब को देख लिया फिर मैने देखा कि तीन झण्डे लहरा रहें है इनमे से एक मशरिक़ मे है और दूसरा मग़रिब मे जब की तीसरा ख़ाना काबा के छत पर नस्ब है बाद अज़ान बहुत सी औरतें मेरे इर्द गिर्द जमा हो गयीं इसी दौरान हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की विलादत बा सआदत हुई! सैय्यदा आमिना रज़िअल्लाह तआला अन्हा फ़रमाती है कि विलादत के बाद आपने अपना सर सजदे मे रखा और अंगुश्ते मुक़द्दस आसमान के तरफ उठाई! विलादत बा सआदत के वक़्त आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बदने मुक़द्दस पर कोई क़िस्म की आलाईश ना थी यूँ महसूस होता था कि अभी अभी ग़ुस्ल मुबारक फ़रमाया है जिस्म अनवर से निहायत पाकीज़ा और नफ़ीस तरीन ख़ुश्बू आ रही थी नाफ़ मुबारक कटी हुई थी और ख़त्ना किये हुए थे रूए अनवर चौधवी रात के चाँद के तरह रौशन और आँखे ख़ुदरती तौर पर सुर्मां लगी हुई थी दोनों शानों के दरमियान मोहरे नबूवत शरीफ़ा थी!
आपके विलादत बा सआदत के वक़्त हज़रत उस्मान बिन अबिलआस रज़िअल्लाह तआला अन्हु की वालिदा सैय्यदा आमिना ख़ातून के घर पर मौजूद थीं वो फ़रमाती है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के विलादत के वक़्त सितारे आसमान से ज़मीन के तरफ झुक गए इस वाक़िए से मै डर गई मुझे ऐसा महसूस हुआ कि ये हम पर गिर पड़ेंगे!
आपके विलादत के रोज़ बादशाहे ईरान कसरा के महेल मे एक बड़ा ज़लज़ला आया जिससे उसके महेल के चौदह कंगूरे गिर गए कसरा महेल के लरज़ने और कंगूरों के गिरने से ख़ौफ़ज़दा होगया हरचंद कि वो अपने ख़ौफ़ को छुपाता था लेकिन इतमिनान ख़ातिर जाता रहा! सुबह हुई तो तख़्त पर बैठते ही उसने अपने ख़ास वज़ीरों और दानाओं को हालते गुज़िश्ता से आगाह किया अभी उसकी बात तमाम ना हुई थी कि उसे आतिश कदा ईरान के बुझने की खबर मिल गई जो तक़रीबन एक हज़ार साल से मुसलसल जल रहा था!
चूँकि अहले फारस आतिश परस्त थे इसलिए उन्होंने इस आतिश कदा को कभी बुझने नही दिया इसलिए इसके अचानक बुझने से बादशाह मज़ीद ख़ौफ़ज़दा हो गया!
ख़रायती और अब्ने असाकिर अरवाह से रिवायत करते है कि क़ुरैश के कुछ अफ़राद जिनमे वरक़ा बिन नौफ़िल, ज़ैद बिन अमरू, उबैदउल्लाह हजश, और उस्मान बिन अल हुवैरस शामिल थे एक शब बुतख़ाना के तरफ़ आए तो देखा कि बड़ा बुत मुँह के बल गिरा पड़ा है इन लोगों ने बुत के इस हालत को मुनासिब न जाना और उसे सीधा कर दिया, लेकिन वो फिर धड़ाम से गिर पडा, इन्होने फिर सीधा किया, लेकिन तीसरी बार फिर गिर गया, तो उस्मान बिन हुवैरस बोला आज ज़रूर कोई न कोई अहम बात हुई है, और ये वही शब थी कि जिस शब के सुबह विलादत बा सआदत हुई, इस मौक़े पर उस्मान बिन हुवैरस ने कुछ अशआर कहे जिसका तर्जुमा ये है- ऐ सनम तेरे पास दूर दराज़ से सरदाराने अरब जमा है और तू उलटा गिरा है, बता तो क्या बात है, क्या तू खेल रहा है, अगर हमसे कोई गुनाह हुआ है, तो हम अपने ख़ता का इक़रार करते है, और आईन्दा ना करने का वाएदा करते है और अगर तू ज़लील व मग़लूब हो कर झुक गया है तो फिर आज से तू न बुतो का सरदार है और ना ही हमारा रब, ये कह कर बुत को फिर खड़ा कर दिया तो उसमे से आवाज़ आई – ये सनम तबाह हो गया उस नौ मौलूद के वजह से जिसके नूर से सारी दुनिया रौशन हो गई सारे सनम इसके आमद पर गिर पड़े और बादशाहों के दिल इसकी हैबत से कांपने लगे, नारे फारस बुझ गया जिसकी वजह से शाहे फारस ग़म से भर गया, काहिनो से उनके जिन भाग गए, अब उन्हे झूटी सच्ची कहानी सुनाने वाला ना रहा, ऐ क़ुस्सई की औलादों अपनी गुमराही से बाज़ आजाओ और इस्लाम के कुशादह दामन मे पनाह ले लो!
दूध पिलाने का शर्फ़– हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को आठ औरतों ने दूध पिलाने का शर्फ़ हासिल किया है जिनमे उनकी वालिदा के अलावा ख़ौला बिंत मन्ज़र, उम्मे ऐमन, क़बीला अवा की तीन औरतों ने, हज़रत हलीमा सादिया और एक सादिया नामी दूसरी ख़ातून ने और अबु लहेब की लौंडी सूबिया शामिल हैं!
हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का ख़्वाब– हदीस पाक मे है कि अबु लहेब के मरने के बाद हज़रत अब्बास रज़िअल्लाह तआला अन्हु ने इसे ख़्वाब मे देखा तो पूछा- ‘ऐ दुश्मनाने खुदा और रसूल तेरा क्या हाल है, तो उसने कहा तुमसे जुदा होकर मुझे सुकून ना मिला, सख्त अज़ाब मे गिरफ्तार हूँ, अलबत्ता सूबिया को आज़ाद करते वक़्त जिस उंगली से इशारा किया था हर पीर के दिन उस उंगली से मीठा और ठंडा पानी मिल जाता है जिसकी वजह से इस दिन के अज़ाब मे तख़फ़ीफ़ महसूस करता हूँ (सोचने की बात है कि अबु लहब काफ़िर था और इसकी मज़म्मत क़ुरान मजीद मे नाज़िल हो चुकि है लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मिलाद कि खुशी मे अपनी बांदी सूबिया को दूध पिलाने के ख़ातिर आज़ाद कर दिया तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के तरफ़ से हक़ तआला ने इसे इसका बदला इनायत फ़रमा दिया, अब मेरा उन भाईयों से सवाल है जो ये कहते है कि मिलाद मनाना बिदअत है (अल्लाह उन्हे हिदायत दे) तो मुझको ये जवाब दें कि जब एक काफ़िर को जिसने अपने ज़िन्दगी मे ख़ुदा और रसूल की बेहुर्मती किया लेकिन महबूब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मिलाद की खुशी मे अपनी लौंडी को आज़ाद कर देने के सबब अल्लाह ने उसको इतना अज्र अता किया, तो जो ईमान के साथ हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मोहब्बत मे मुब्तिला है और जो अपने आक़ा की ख़ुशनूदी के लिए वो सब करता है जिसे आप बिदअत का नाम दे देते हैं तो उनको क़ब्र और हश्र मे कितना बड़ा अज्र हासिल होगा इसका अन्दाज़ा ईमान वाले बख़ूबी लगा सकते हैं) अल्लाह तआला हम सबको इबलीस के मक्र फ़रेब से महफूज़ रखे आमीन!
This grave, located in Abwa, close to Madinah is of Bibi Aminah (may Allah be pleased with her), the mother of the Prophet (ﷺ). She passed away returning from Madinah to Makkah when the Prophet (ﷺ) was just six years old.
आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हालातो वाक़्यात– आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्र शरीफ़ जब छ: बरस की हुई तो आपकी वालिदा माजिदा सैय्यदा आमिना खातून रज़िअल्लाह तआला अन्हा का विसाल हो गया और आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की कफ़ालत व ख़िदमतगुज़ारी कि ज़िम्मेदारी हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने बतरीक़े हसन पूरी फ़रमाई, और जब आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आठ बरस की उम्र मे क़दम रखा तो आपके दादाजान इस जहाने फ़ानी से रुख़सत हो गएं, तब आपके ख़िदमत की ज़िम्मेदारी जनाब अबु तालिब ने बख़ूबी सरअन्जाम दिया!