
अनपढ़ सैयद अफज़ल है या गैर सैयद आलिम
खातिमुल मुहक्किीन इमाम शैख इब्ने हज्र अस्कूलानी (852 हि०) के फतावा में है, उनसे पूछा गया कि अनपढ़ सैयद अफज़ल है या गैर सैयद आलिम ? और अगर यह दोनों किसी जगह इकट्ठे मौजूद हों तो उनमें से ज़्यादा इज्ज़त और एहतराम का मुस्तहिक पहले किसको समझा जाए? मसलन अगर ऐसी मेहफिल में चाय, काफी या कोई और चीज़ पेश करनी हो तो पहले किस से की जाए? या ऐसी मेहफिल में कोई शख़्स अगर हाथ चूमना चाहता है या पेशानी को
बोसा देना चाहता है तो आगाज किससे किया जाए? इमाम इब्ने हजर असकलानी जवाब में फरमाते हैं: इन दोनों को अल्लाह तआला ने बहुत बड़ी फजीलत बख़्शी है मगर सैयद में क्योंकि लायक तकरीम गोशा-ए-रसूलुल्लाह के खून की निस्बत है जिसकी बराबरी दुनिया की कोई चीज़ नहीं कर सकती इसी लिहाज़ से बाज़ उलमा किराम ने कहा है:
“हम जिगर गोश-ए-रसूलुल्लाह चीज़ से भी बराबरी की निस्बत नहीं दे सकते । ” को दुनिया की किसी
बाकी रहा बाअमल आलिमे दीन का किस्सा तो चूंकि उसकी जात मुसलमानों के लिए नफा बख़्श, गुमराहों के लिए राहे हिदायत है और यह कि उलमा-ए-इस्लाम रसूले अकरम के नाइब व जानशीन और उनके उलूम व मआरिफ के वारिस और इल्मबर्दार हैं इसलिए अल्लाह तआला की तरफ से तौफीक याफ्ता लोगों से हमें यह तवक्को है कि वह सादात किराम और उलमाए किराम की इज्ज़त एहतराम और ताज़ीम करने में उनकी हक तलफ़ी नहीं करेंगे।
ऐसी महफ़िलों में मजकूरा बाला लायके एहतराम हस्तियों के यक्जा होने पर किसी चीज़ के देने या ताजीम के आदाब बजा लाने के सिलसिले में आगाज़ करने के लिए हमें नबी अकरम के इस क़ौल मुबारक को पेशे नज़र रखना चाहिए कि (इज्ज़त व एहतराम और मेहमान नवाज़ी वगैरा में एहले कुरैश को मुकद्दम रखिए) और फिर मजकूर बाला सूरत में तो एक शख़्स को जिगर गोशा -ए-रसूलुल्लाह की निस्बत भी हासिल है।” (जैनुल बरकात)