
सैयद से मिसाली मुहब्बत
आशिके रसूल मौलाना गुलाम रसूले आलम पुरी जिला होशियार पुर (इण्डिया) के दुरवेश और साहिबे तसानीफ बुजुर्ग थे। 1892 को इंतिक़ाल किया और वहीं आलमपुर में मदफन हैं। उनके मुतअल्लिक एक वाक्या है किः मौलाना नाले के एक किनारे पर खड़े थे दूसरे किनारे पर एक लड़का खड़ा था। आपने आवाज़ देकर उसे पूछा। लड़के पानी कितना गहरा है? वह न बोले । शायद उसने सुना नहीं था।
आपने फिर आवाज़ दी। लड़के तू कौन है, बोलते क्यों नहीं।” उसने कहा: “मैं सैयद हूँ।” आप जार ज़ार रोने लगे कि सख़्त बेअदबी हो गई। अब इस सैयद जादे से इसरार करने लगे कि तुम मुझे कहो “ओ गूजर कितना पानी है।” लेकिन वह न कहते थे। आप ज़ार ज़ार रो रहे थे और कह रहे थे कि तुम मुझे ओ गूजर कहो । आखिर लोग जमा हो गए और सैयद जादे को मजबूर किया सैयद जादे ने कहा “ओ गूजर कितना पानी है। ” मौलाना ने जवाब दिया: हुज़ूर पार कर के बताता हूँ।” चुनान्चे आप पानी से गुज़र कर दूसरी जानिब गए और साहबजादे को कंधों पर उठा कर नाले की उस जानिब ले आए। वह साहबजादा यतीम था। आपने उसे पढ़ाया, अपने पास रखा और बाद में मोज़ा मालवे में उसे पटवारी की नौकरी दिलवा दी। उसकी शादी भी करा दी। (औलियाए जालंधर स. 101 )