
एक ईमान अफरोज़
वाकिआ: . डा. सैयद मुहम्मद मज़ाहिर अशरफ अशरफी जीलानी बयान फरमाते हैं कि “आला हज़रत मुजद्दीदे दीन व मिल्लत हज़रते मौलाना इमाम अहमद रज़ा खान कुद्दस सिर्रहू बरैली के जिस मोहल्ले में कयाम पज़ीर थे उसी मोहल्ले में एक सैयद जादे रहते थे, जो शराब नोशी करते थे एक मर्तबा आला हज़रत ने अपने घर पर कोई तक़रीब मुंअकिद फरमाई और इस तक़रीब में मोहल्ले के तमाम लोगों को मदऊ किया लेकिन इस सैयद जादे को मदऊ नहीं किया, तकरीब ख़त्म हो गई और तमाम मेहमान अपने घरों को चले गए, उसी रात आला हज़रत ने ख़्वाब देखा कि एक दरिया के किनारे मेरे और आपके बल्कि सब के आका व मौला सुल्तानुल अंबिया कुछ गुलीज़ कपड़े धो रहे हैं तो आला हज़रत जब क़रीब आ गए और चाहा कि वह गलीज़ कपड़े हुज़ूर से लेकर खुद धो दें तो सरकारे दो आलम ” ने फ़रमाया: अहमद रज़ा! तुम ने मेरी औलाद से किनारा कशी कर ली है और इस तरफ मुंह तक नहीं करते जहाँ वह कुयाम पज़ीर है लिहाजा मैं उसके गंदे कपड़ों से खुद गिलाज़त दूर कर रहा हूँ बस उसी वक्त आला हज़रत की आंख खुल गई और बात तरफ इशारा है, चुनान्चे बगैर किसी
से समझ में आ गई कि यह किस हिचकिचाहट के आला हज़रत उसी वक्त अपने घर से घुटनों और हाथों के बल चल कर उन सैयद जादे के दरवाज़े पर तशरीफ लाए और आला हज़रत ने उनके पाँव पकड़ लिए फिर माफी के तलबगार हुए, सैयद साहब ने आला हजरत को जब इस हाल में देखा तो मुताज्जिब हुए और कहा, मौलाना ! यह क्या हाल है? आपका, और क्यों मुझ गुनहगार को शर्मिंदा करते हैं, तो आला हज़रत ने अपने ख़्वाब का तफ्सील से जिक्र फ़रमाया और फरमाया: “मियाँ साहबजादे! हमारे ईमान और ऐतकाद की बुनियाद ही यह है कि नबी करीम से फ़िदाया न वालिहाना मुहब्बत की जाए, और अगर कोई बदबख़्त मुहब्बते रसूल से आरी है रियाकारी तो वह मुसलमान नहीं रह सकता क्योंकि अल्लाह अपने हबीब मुहब्बत करने का हुक्म देता है और जो अल्लाह के हुक्म की खिलाफ वर्ज़ी करे वह दायरा इस्लाम से खरिज है, और जब मैंने मर्कज़ ईमान व ऐतक़ाद को इसी तरह और फरमाते सुना तो मुझे अपनी माफी मांगने और रसूलुल्लाह की सरकार में सुर्खरू होने की यही एक सूरत नजर आई कि आपकी ख़िदमत में अपनी समझ की गल्ती की माफी मांगू इस तरह हाज़िर हूँ कि आपको माफ करने में कोई उज़र न हो, जब सैयद साहब ने आला हज़रत से उनके ख्वाब का हाल सुना और आला हज़रत की गुफ्तुगू सुनी तो फौरन घर के अन्दर गए और शराब की तमाम बोतलें लाकर आला हज़रत के सामने गली में फैंक दीं और कहा कि जब हमारे नाना जान ने हमारी गिलाजत साफ फरमा दी है तो अब कोई वजह नहीं कि यह उम्मुल खबाईस (शराब) इस घर में रहे और उसी वक्त शराब नोशी से तौबा कर ली, आला हज़रत ॐ जो अभी तक उनके दरवाज़े पर घुटनों के बल खड़े थे उनको उठाया और एक तवील मुआनका किया, (यानी लंबा गले मिले) घर के अंदर ले गए और हस्बे हालत ख़ातिर मदारत की। (सिरातुल तालिबीन फी तुर्कुल हक वालदैन इमाम अहमद रज़ा और एहतराम सादात स. 44,45 मतबुआ अंजुमन जिया तैयबा ) (जैनुल बरकात)