
दुश्मन एहले बैत को इबादत काम नहीं आएगी. इमाम तिबरानी व हाकिम हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत हैं कि रसूले पाक ने फरमाया (हदीस का आखरी हिस्सा मुलाहिजा फरमाऐं) :
अगर कोई शख़्स बैतुल्लाह के एक कोने और मुकाम इब्राहीम के दर्मियान कयाम करे नमाज़ पढ़े और रोज़े रखे फिर वह एहले बैत की दुश्मनी पर मर जाए तो वह जहन्नम में जाएगा। (बरकात आल रसूल स. 257, ख़साईसुल कुबरा जि. 2 स. 565 इमाम सीयूती)

सादात का बेअदब कौन ?
इब्ने अदी और इमाम बैहकी “शुभेबुल ईमान” में हज़रत सैयदना अली मुरतजा से रिवायत हैं कि रसूले करीम ने फ़रमाया:
जो शख़्स मेरी इतरते तय्यबा और अंसार किराम को नहीं पहचानता (यानी ताज़ीम नहीं करता) तो उसकी तीन में से कोई एक वजह होगी या वह मुनाफिक है या वल्दुल ज़िना है या जब उसकी माँ हामला हुई होगी तो वह पाक नहीं होगी।” (बरकात आले रसूल 4 258)