
फांसी
अज़ल और कारह के चंद मुनाफ़िक़ीन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर दस सहाबा किराम को बगर्जे तबलीग़ अपने हमराह ले गये। रास्ते में मकामे रजीअ पर धोखा करके उन दस सहाबा में से आठ को शहीद कर दिया। दो को, जिनका नाम हज़रत खुबैब और हज़रत जैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा था गिरफ्तार करके मक्का ले आये और कुरैश के हाथ फ़ोख़्त कर दिया। हज़रत खुबैब रज़िल्लाहु तआला अन्हु ने जंगे उहुद में हारिस बिन आमिर को क़त्ल किया था इसलिये उनको हारिस के लड़कों ने ख़रीदा ताकि बाप के बदले में क़त्ल करें। चंद रोज़ भूखा प्यासा अपने घर में क़ैद रखा। एक दिन हारिंस का बच्चा तेज़ छुरी से खेलता हुआ खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास पहुंच गया। उन्होंने बच्चे को जानू पर बिठाया । छुरी लेकर रख दी और बच्चे को खिलाने लगे। जब बच्चे की मां ने देखा कि उसका बच्चा छुरी लेकर उस कैदी के पास है जिसे चंद रोज़ से उन्होंने बे आब व दाना रखा था। तो वह कांप उठी | बे-इख़्तेयार चीख़ मारी। खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा क्या तू यह समझती है कि मैं इसे क़त्ल कर दूंगा? क्या तू नहीं जानती कि मुसलमानों का काम ग़दर करना नहीं?
ख़ानदाने हारिस ने चंद रोज़ के बाद खुबैब और ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु दोनों बुजुर्गों को हरम की हद से बाहर ले जाकर कत्ल के इरादे से फांसी के नीचे खड़ा कर दिया और कहा कि इस्लाम छोड़ दो तो जान बख्शी हो सकती है। दोनों बुजुर्गों ने जवाब दिया कि जब इस्लाम ही न रहा तो जान रखकर क्या करेंगे?
कुरैश ने पूछा कि कोई तमन्ना हो तो ब्यान करो। खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने दो रकअत नमाज़ पढ़ने की इजाजत मांगी। क़ातिलों ने मोहलत दे दी। हज़रत खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने नमाज़ अदा की और नमाज़ पढ़कर फरमाया कि देर तक नमाज़ पढ़ने को जी चाहता था लेकिन सोचा कि दुशमन यह न कहें कि मौत से डर गया। इसके बाद कातिलों ने हज़रत खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद कर दिया। हज़रत खुबैब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फांसी पाने से पहले यह शेर पढ़े:“यानी इस्लाम की हालत में मुझे किसी तरह भी मारा जाये मुझे कोई परवाह नहीं।”
इसके बाद हज़रत जैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारी आयी। आपके क़त्ल के वक़्त कुरैश के बड़े बड़े सरदार तमाशा देखने आये थे। एक सदार ने बढ़कर कहा कि सच कहना इस वक्त तुम्हारे मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारी जगह कत्ल किये जाते और तुम बच जाते तो क्या तुम इस बात को अपनी खुशकिस्मती न समझते? हज़रत ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने जवाब दिया
मुझे हो नाज़ किस्मत पर, अगर नामे मुहम्मद पर यह सर कट जाये और तेरा सरेपा उसको ठुकराये यह सब कुछ है गवारा पर यह देखा जा नहीं सकता कि उनके पावं के तलवे में एक कांटा भी चुभ जाये फिर इसके बाद हज़रत जैद को भी शहीद कर दिया गया (तारीखे इस्लाम सफा १८२ ) सबक़ : सहाबए किराम को इस्लाम जान से भी ज्यादा अजीज़ था। उन्होंने अपनी जान इस्लाम पर कुरबान करके हमें सबक दिया है कि मुसलमानों को मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी इस्लाम से मुंह नहीं मोड़ना चाहिये।