
*بِسْمِ اللٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ*
ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने फ़रमाया:
“जब भी तुम किसी मज़दूर को उजरत पर रखना चाहो तो उस को (पॅहले ही से) उस की उजरत से आगाह कर दो।”
[नसाई, अस्सुनन, रक़म: 385]
ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने फ़रमाया:
“जिस शख़्स़ ने किसी मज़दूर को उजरत पर रखा उसे चाहिये कि उस की उजरत पॅहले बताए।”
[अबू ह़नीफ़ा, अल मुस्नद, 1: 89]
ह़ज़रत अबू सई़द رضی اللہ عنہ रिवायत करते हैं:
“ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने किसी भी मज़दूर से मज़दूरी लेने से मन्अ़ फ़रमाया ह़त्ता कि उस को उजरत बता दी जाए।”
[अह़मद बिन ह़न्बल, अल मुस्नद, 11582]
ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने फ़रमाया:
“मज़दूर की मज़दूरी उस का पसीना ख़ुश्क होने से पॅहले अदा किया करो।”
[इब्ने माजह, अस्सुनन, रक़म: 2443]
ह़ुज़ूर नबिय्ये अकरम ﷺ ने फ़रमाया:
“अल्लाह ﷻ का इर्शाद है तीन क़िस्म के इन्सान हैं जिन से क़ियामत के दिन झगड़ा करूँगा….. (उन में से) एक वोह शख़्स़ होगा जो मज़दूर से काम तो पूरी त़रह़ लेता होगा उजरत पूरी न देता हो”
[बुख़ारी, अस़्स़ह़ीह़, रक़म: 2150]