
🎋#फ़ितरूस_का_वाक़ेया :-🎋
“अल्लामा मज़कूर बाहवालाए हज़रत शेख़ मुफ़ीद अल रहमा रक़म तराज़ हैं…
कि इसी तहनियत के सिलसिले में जनाबे जिब्राईल बे शुमार फ़रिश्तों के साथ ज़मीन की तरफ़ आ रहे थे। नागाह उनकी नज़र ज़मीन के एक ग़ैर मारूफ़ तबक़े पर पड़ी!
देखा कि एक फ़रिश्ता ज़मीन पर पड़ा हुआ ज़ारो क़तार रो रहा है।
आप उसके क़रीब गए और आपने उससे माजरा पूछा। उसने कहा ऐ जिब्राईल मैं वही फ़रिश्ता हूँ जो पहले आसमान पर सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की क़यादत करता था। मेरा नाम फ़ितरूस है।
जिब्राईल (अ.) ने पूछा तुझे यह किस जुर्म की सज़ा मिली है ?
उसने अर्ज़ की… मरज़ीए माबूद के समझने में एक पल की देरी की थी,
जिसकी यह सज़ा भुगत रहा हूँ। बालो पर जल गए हैं, यहां कुंजे तन्हाई में पड़ा हूँ।
ऐ जिब्राईल ख़ुदारा मेरी कुछ मद्द करो।
अभी जिब्राईल जवाब न देने पाये थे कि उसने सवाल किया, ऐ रूहुल अमीन आप कहां जा रहे हैं ?
उन्होंने फ़रमाया कि नबी आख़ेरूज़ ज़मां हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) के यहां एक फ़रज़न्द पैदा हुआ है जिसका नाम #हुसैन है।
मैं ख़ुदा की तरफ़ से उसकी अदाए तहनियत के लिये जा रहा हूँ।
फ़ितरूस ने अर्ज़ कि ऐ जिब्राईल ख़ुदा के लिये मुझे अपने हमराह लेते चलो,
मुझे इसी दर से शिफ़ा और नजात मिल सकती है।
जिब्राईल उसे साथ ले कर हुज़ूर की खि़दमत में उस वक़्त पहुँचे जब कि इमाम हुसैन (अ.स.) आग़ोशे रसूल (स.अ.) में जलवा फ़रमा रहे थे।
जिब्राईल ने अर्ज़े हाल किया। सरवरे कायनात (स.अ.) ने फ़रमाया कि फ़ितरूस के जिस्म को हुसैन (अ.स.) के जिस्म से मस कर दो, शिफ़ा हो जायेगी।
जिब्राईल ने ऐसा किया और फ़ितरूस के बालो पर उसी तरह रोईदा हो गये जिस तरह पहले थे। वह सेहत पाने के बाद फ़ख़्रो मुबाहात करता हुआ अपनी मंज़िले असली आसमाने सेयुम पर जा पहुँचा और मिसले साबिक़ सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की क़यादत करने लगा।
बाद अज़ शहादते हुसैन (अ.स.) चूँ बरां क़ज़िया मतला शुद”
यहां तक कि वह ज़माना आया जिसमें इमाम हुसैन (अ.स.) ने शहादत पाई और इसे हालात से आगाही हुई तो उसने बारगाहे अहदियत में अर्ज़ कि …
“मालिक मुझे इजाज़त दी जाय कि मैं ज़मीन पर जा कर दुश्मनाने हुसैन (अ.स.) से जंग करूं।
इरशाद हुआ कि जंग की कोई ज़रूरत नहीं अलबत्ता तू सत्तर हज़ार फ़रिश्ते ले कर ज़मीन पर चला जा और उनकी क़ब्रे मुबारक पर सुबह व शाम गिरया ओ मातम किया कर और इसका जो सवाब हो उसे उनके रोने वालों पर हिबा कर दे।
चुनान्चे फ़ितरूस ज़मीने करबला पर जा पहुँचा और ता क़याम क़यामत शबो रोज़ रोता रहेगा।
(📒रौज़तुल शोहदा अज़ 236 ता सफ़ा 238 तबा बम्बई 1385 हिजरी व ग़नीमतुल तालेबीन शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी)