
महबूब के क़दमों में
मैदाने उहुद में हज़रत अम्मार बिन ज़्याद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दिल में एक काफ़िर का तीर आ लगा। हज़रत अम्मार लड़खड़ा कर गिर गये। दिल पर हाथ रखकर अल्लाह से अर्ज़ की कि या इलाही! मुझे अपने महबूब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़्यारत कर लेने दे। फिर मेरी जान निकले । चुनांचे ज़मीन पर गिरते ही आपने अपनी नज़रों से हुजूर की तलाश शुरू की और आपने देखा कि हुजूर थोड़ी दूर तशरीफ़ फ़रमा हैं। चुनांचे आप ज़मीन पर घिसटते हुए आहिस्ता-आहिस्ता हुजूर तक पहुंच गये। फिर अपना मुंह हुजूर के कदमों पर रख दिया और अपने रुख़सार (गाल) हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तलवों पर मलते जाते और यह कहते जाते थे
रब्बे काबा की क़सम मैं अपनी मुराद को पहुंच गया। रब्बे काबा की क़सम! मैं अपनी मुराद को पहुंच गया। फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों ही में जाने शहादत नोश फरमा लिया। (तारीख़ इस्लाम सफा १७२) सबक़ : सहाबाए किराम की सबसे बड़ी मुराद यह थी कि महबूबे किब्रिया अहमदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दमों पर जान निकले।