बू-ए-करबला


बू-ए-करबला

एक रोज़ हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में तशरीफ़ फ़रमा थे। हज़रत उम्मे फज़ल भी पास बैठीं। उम्मे फज़्ल ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ देखा कि आपकी दोनों चश्माने मुबारक से आंसू बह रहे थे। उम्मे फज़्ल ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! यह आंसू कैसे हैं? तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि दोएम वसल्लम ने फरमाया कि जिब्रईल ने मुझे ख़बर दी है कि मेरे इस बच्चे को मेरी उम्मत क़त्ल कर देगी। जिब्रईल ने मुझे उस सरज़मीन की जहां यह बच्चा शहीद होगा सुर्ख़ मिट्टी लाकर दी है।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मिट्टी को सूंघा और फ्रमायाः इस मिट्टी से मुझे बू-ए- करबला आती है फिर वह मिट्टी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा को दे दी और फ़रमायाः उम्मे सलमा इस मिट्टी को अपने पास रखो जब यह मिट्टी ख़ून बन जाये तो समझ लेना मेरा बेटा शहीद हो गया । हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने उस मिट्टी को एक शीशी में बंद कर लिया। फिर जिस दिन हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु करबला में शहीद हुए उसी रोज़ यह मिट्टी बंद शीशी में ख़ून बन गयी ।

(मिश्कात शरीफ़ सफा ५६४, हुज्जतुल्लाहु अलल-आलमीन सफा ४७७)

सबक: हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने लख़्ते जिगर इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत का इल्म था। उस सरज़मीन का भी जहां यह वाक़िया होना था। उस सरज़मीन का नाम भी मालूम था। आपसे कोई बात छुपी नहीं थी । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह भी इल्म था कि हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु तआला ļ अन्हा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु ताअला अन्हु की शहादत के बाद तक ज़िन्दा रहेंगी। जभी तो आपने हज़रत उम्मे सलमा से फ़रमायाः इस मिट्टी को अपने पास रखो। जब यह ख़ून बन जाये तो समझ लेना कि । मेरा बेटा शहीद हो गया। बावजूद इसके फिर भी अगर कोई हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इल्म ग़ैब में शक करे तो गौर कर लीजिये कि वह किस कद्र जाहिल है।

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