
जंगली दरिन्दा –
एक शख़्स ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से अर्ज़ किया कि जनाब मेरा इरादा सफ़र का है। मगर मैं जंगली दरिन्दों से डरता हूं। आपने उसे एक अंगूठी देकर फरमायाः जब तेरे नज़दीक कोई ख़ौफ़नाक जानवर आये तो फ़ौरन कह देना कि यह अली इब्ने तालिब की अंगूठी है । इसके बाद उस शख़्स ने सफ़र किया और इत्तिफाक से राह में एक जंगली दरिन्दा उस पर हमला करने दौड़ा। उसने पुकार कर कहाः ऐ दरिन्दे ! यह देख मेरे पास अली इब्ने तालिब की अंगूठी है। दरिन्दे ने जब हज़रत अली की अंगूठी देखी तो अपना सिर आसमान की तरफ़ उठाया और फिर वहां से दौड़ता हुआ कहीं चला गया। यह मुसाफिर जब सफ़र से वापस आया तो इसने सारा किस्सा हज़रत अली को सुनाया तो आपने फ़रमायाः उस दरिन्दे ने आसमान की तरफ मुंह करके यह कसम खाई थी और कहा था कि मुझे रब की क़सम ! मैं इस इलाके में बिल्कुल हरगिज़ न रहूंगा जिसमें लोग अली इब्ने तालिब के सामने मेरी शिकायत करें ।
( नुज़हतुल मजालिस जिल्द २, सफा ३५१) सबक : शेरे खुदा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का रोब व दबदबा जंगली शेरों और दरिन्दों पर भी था ।