
हज़रत अली की नुसरत
हदीस
रावीयान ए हदीस, युसुफ़ बिन ईसा, अल्- फज़ल बिन मूसा, अल्-अमश, अबु इस्हाक़ ।
हज़रत सईद बिन वहाब रज़िअल्लाहु अन्हो बयान करते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने लोगों की एक जमा’ अत से मुखातिब होकर फरमाया, “मैं उस शख्स को अल्लाह तआला का वास्ता देता हूँ जिस ने ग़दीर ए खुम के रोज़, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम को ये फरमाते हुए सुना है कि, “अल्लाह तआला मेरा वली है और मैं मोमिनों का वली हूँ और जिसका मैं वली हूँ, उसका ये (हज़रत अली) वली है। ऐ अल्लाह जो इस से मुहब्बत रखता है, उससे मुहब्बत रख और जो इससे दुश्मनी रखता है, उससे दुश्मनी रख और जो इसकी नुसरत करता है उसकी मदद फरमा।
सईद कहते हैं कि मेरे पहलू से छह आदमी उठे और हारिस बिन मुज़र्रिब कहते हैं कि छह शख्स खडे हुए और ज़ैद बिन यसी भी फरमाते हैं कि मेरे पास से छह आदमी उठ खड़े हुए और अली अलैहिस्सलाम की बात की गवाही दी और अम्र सो मुर्र ये भी कहते हैं कि रसूलुल्लाह ने ये भी फरमाया था कि जो इससे मुहब्बत रखे, उससे मुहब्बत रखो और जो इससे बुग्ज़ रखे उससे बुग्ज़ रखो।