
पुल-सिरात की राहदारी
एक दिन सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रत मौला अली की तरफ़ देखकर मुस्कुराए । मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने दर्याप्त कियाः जनाब मुझे देखकर आप मुस्कुराए क्यों? सिद्दीके अकबर ने फ़रमाया ऐ अली! मुबारक हो मुझसे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जब तक अली किसी को पुल-सिरात से गुज़रने की छुट्टी न देगा तब तक वह पुल-सिरात से गुज़र न सकेगा। इस पर हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु भी मुस्कुरा पड़े और फ़रमायाः ऐ ख़लीफ़तुल मुस्लिमीन! आपको भी मुबारक हो । मुहासे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः कि ऐ अली! तुम उस शख्स को पुल-सिरात की राहदारी (परवाना) हरगिज न देना जिसके दिल में अबू-बक्र की अदावत हो बल्कि उसी को देना जो अबू बक़ का मुहिब्ब (मुहब्बत करने वाला) हो ।
(नुजहतुल मजालिस जिल्द २, सफा ३०६). सबक : हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत व गुलामी से कुछ फायदा जब ही हासिल हो सकता है जबकि सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत दिल में हो वरना बराए नाम मुहब्बते अली किसी
काम की नहीं।