
मस्जिद और अली अलैहिस्सलाम
– पहली हदीस – सिवाय अली के मस्जिद में खुलने वाले सबके दरवाजे बंद कर दिए जाएँ।
रावीयान ए हदीस, मुहम्मद बिन बश्शार, मुहम्मद बिन जाफ़र, औफ़, मैमून अबु अब्दुल्लाह।
हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रजिअल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम के बाज़ सहाबा रज़िअल्लाहु अन्हुमा के घरों के दरवाज़े मस्जिद में खुलते थे, तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि, सिवाय अली अलैहिस्सलाम के दरवाज़े के तमाम दरवाज़े बंद कर दिए जाएँ।
इस पर लोगों ने तनकीद की, तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने खड़े होकर, अल्लाह रब उल इज्जत की हम्द ओ सना बयान करने के बाद फरमाया, “मैंने तुम्हें हुक्म दिया है कि, सिवाय हज़रत अली अलैहिस्सलाम के, इन दरवाजों को बंद कर दो और तुम में से इस पर किसी ने कुछ कहा है। खुदा की कसम, मैं ना दरवाज़ा खोलता हूँ और ना बंद करता हूँ, मगर उसकी इत्तेबा करता हूँ, जो हुक्म मुझे दिया जाता है। मैंने ना उसे दाखिल किया है और ना तुम्हें निकाला है।” खसाइस ए अली
दूसरी हदीस – फरमान ए मुस्तफा, दर शान ए मुर्तजा
रावीयान ए हदीस, मुहम्मद बिन सुलेमान, इब्न ए उऐना, अम बिन दीनार, अबु जाफ़र मुहम्मद बिन अली
हजरत इब्राहीम बिन साद बिन अबी वक्कास रज़िअल्लाहु अन्हो, अपने वालिद गिरामी, हज़रत साद बिन अबी वक्कास रजिअल्लाहु अन्हो से बगैर इनका नाम लिए रिवायत करते हैं कि इन्होंने फरमाया कि, “मैं और कुछ दूसरे लोग, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम की ख़िदमत में बैठे हुए थे कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए, तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने वहाँ पहले से मौजूद सहाबा और लोगों से बाहर जाने के लिए कहा।, वो लोग बाहर आ गए और आपस में एक दूसरे को मलामत करने लगे, “रसूलुल्लाह ने हमें बाहर क्यों किया है और अली को अंदर आने क्यों आने दिया है?”,चुनाँचे वो लोग लौटकर अंदर आ गए तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने इरशाद फरमाया, “खुदा की कसम! ना मैंने अली को दाखिल किया है और ना ही तुम्हें निकाला है।”
अबु अब्दुर रहमान नसाई फरमाते हैं, ये हदीस ज्यादा दुरुस्त है।
तीसरी हदीस – इसका हुक्म अल्लाह ने दिया है
रावीयान ए हदीस, अहमद बिन यहया, अली बिन कादिम, इस्राईल बिन यूनुस, अब्दुल्लाह बिन शरीका
हज़रत अल-हारिस बिन मालिक से रिवायत है कि मैं, मक्का मुअज़’ज़मा में आया और हज़रत सा बिन अबु वक्कास रजिअल्लाहु अन्हो से मुलाकात की और आपकी ख़िदमत में
अर्ज किया कि, आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की मनकबत सुनी है तो हज़रत साद बिन अबी वक्कास रजिअल्लाहु अन्हो ने फरमाया कि, हम सहाबा, रसूलुल्लाह के साथ मस्जिद में थे और हमें दरवाजे बंद करने के लिए कहा गया और कहा के सिवाय रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम की आल और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की आल के अलावा सब लोग, मस्जिद से निकल जाओ यानी अपने दरवाज़े मस्जिद से बाहर बनाओ, पस हम लोग बाहर आ गए।
और जब सुबह हुई तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम के यचा ने आपकी खिदमत में अर्ज किया, “या रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लमा आपर्ने अपने साथियों और चचाओं को मस्जिद से बाहर निकाल दिया और इस लड़के को यहाँ रहने दिया है?”
रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि, “ना तो मैंने तुम्हारे इख़रज का हुक्म दिया है और ना इस लड़के को यहाँ रहने का फरमान दिया है, बेशक इसका हुक्म अल्लाह ने दिया है।” 1″
चौथी हदीस – ना मैंने खोला, ना बंद किया
रावीयान ए हदीस, फित्र बिन अब्दुल्लाह बिन शरीक, अब्दुल्लाह बिन अर-कीम, सादा
हज़रत अब्बास रजिअल्लाहु अन्हो ने, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया, “आपने, हमारे दरवाजे बंद कर दिए हैं मगर अली का दरवाजा बंद नहीं किया। आप सल्लललाहु अलैहे व आलिही व सल्लम ने फरमाया कि, “ना मैंने उसे खोला है और ना मैंने उसे बंद किया है।”
ज़करिया बिन यहया, अब्दुल्लाह बिन उमर, अस्’बात बिन मुहम्मद फित्र बिन खलीफा, अब्दुल्लाह इब्न ए शरीक, अब्दुल्लाह बिन अर्-रकीम, साद की रिवायत से भी एक हदीस मिलती है जिसके अल्फाज़ वो ही हैं जो ऊपर की हदीस में मौजूद हैं।
पाँचवीं हदीस
सब दरवाजे बंद कर दिए हैं
रावीयान ए हदीस, मुहम्मद बिन वहाब, मिस्कीन बिन बुकैर, शुअ’बा, अबु अब’लज, इब्न ए अब्बास।
हज़रत इब्न ए अब्बास रजिअल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे व आलिही वसल्लम ने हुक्म दिया, “मस्जिद में खुलने वाले दरवाजे बंद कर दिए जाएँ, सिवाय हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दरवाज़े के।”
छटवी हदीस
अली जिनबी हालत में भी मस्जिद में आ सकते हैं
रावीयान ए हदीस, मुहम्मद बिन मुसन्ना, यहया बिन हम्माद, अल्-वज़’जाह, यहया, अम बिन मैमून।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हो से रिवायत है कि, “सिवाय अली अलैहिस्सलाम के दरवाज़े के, मस्जिद में खुलने वाले तमाम दरवाज़े बंद कर दिए गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, जिनबी हालत में भी मस्जिद में तशरीफ़ ले आते और आपके घर को सिवाय मस्जिद के कोई दूसरा रास्ता नहीं था।”