
शहजादों की वापसी
सुलतान ने सलतनत के मुआमलात को संवारा, मुल्की ख़ज़ाने में
पैसा जमा किया, फिर सुलह की शर्त के मुताबिक उसने अंग्रेजों को तावाने जंग की बाकी रकम दो करोड़ रुपय अदा कर दी, अंग्रेजों ने दोनों शहज़ादे सुलतान के हवाले कर दिए। शहज़ादों की वापसी पर श्रीरंगापटनम के लोगों ने खुशियां मनाई, क्योंकि वे उनके बहादुर बादशह के बेटे थे। शहज़ादों की जुदाई में शाही महल पर जो उदासी छाई हुई थी, उनके वापस आने पर दूर हो गई और वहां फिर से खुशी का माहौल हो गया।
अंग्रेजों के नए नियम
ब्रिटिश हुकूमत ने हिन्दुस्तान के अंग्रेज़ गवर्नर जनरल को तबदील ने करके लार्ड वेलेस्ले को नया गर्वनर जनरल बनाकर भेजा। लार्ड वेलेस्ले बहुत चालाक और साज़िशी जेहन का मालिक था। उसने वहां आकर ऐसे नियम बनाए जो ज़ाहिरी तौरपर तो हिन्दुस्तान वालों के लिए फ़ायदेमन्द नज़र आते थे, लेकिन हकीकत में उनकी आज़ादी को ख़त्म करने वाले थे। उन नियमों के तहत हिन्दुस्तान की हर रियासत के हुकुमरान को मजबूर किया जाता था कि वह अपनी रियासत की हिफाजत के लिए अंग्रेज़ फ़ौज रखे और फ़ौज की तनख्वाह और सारे खर्चे रियासत के ख़ज़ाने से पूरे किए जाएं। जो रियासत अंग्रेजों की इस मांग को स्वीकार न करती उसके साथ अंग्रेज़ जंग शुरू कर देते। न
अंग्रेजों ने इस कानून के तहत सबसे पहले निज़ाम हैदराबाद को मजबूर किया, लेकिन उसने इनकार किया। तब अंग्रेजों ने अचानक अपनी फ़ौज हैदराबाद में दाखिल कर दी। चुनांचे निज़ाम हैदराबाद को अपनी हुकूमत बचाने के लिए निम्नलिखित शर्ते कबूल करना पड़ी:
1. हैदराबाद का हुकुमरान तोपखाने से लैस 6 हजार अंग्रेज़ फौज
हैदराबाद में रखेगा। इस फ़ौज के अफ़सर भी अंग्रेज़ होंगे।
2. फ़ौज के तमाम ख़र्च निज़ाम हैदराबाद के जिम्मे होंगे और वह अंग्रेजों के सिवा किसी और यूरोपी (जैसे फ्रांसीसी) को आइन्दा अपनी हुकूमत में नौकर की हैसियत से नहीं रखेगा।
अंग्रेज़ों के इस कानून को हिन्दुस्तान के कुछ दूसरे हुकुमरानों और राजाओं ने खुशी से स्वीकार किया और कुछ को अंग्रेजों ने ताकत इस्तेमाल करके इस कानून को स्वीकार करने पर मजबूर किया। अलबत्ता मरहटों के सदरार और मज़हबी पेशवा नाना फ़रनुवैस ने इस कानून को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और वादा किया कि वह अंग्रेजों से दोस्ती के पुराने समझौतों पर कायम रहेंगे। लार्ड वेलेस्ले ने मरहटों की बात मान ली। उसका असल मकसद यही था कि इस कानून से हिन्दुस्तान के हुकुमरानों को इतना पाबन्द कर दिया जाए कि वे सुलतान टीपू की कभी मदद न कर सकें और सुलतान तनहा रह जाए ताकि अंग्रेज़ आसानी से उसकी रियासत पर कब्जा कर सकें।
जंग का बहाना
लार्ड वेलेस्ले ने एक तरफ़ तो सुलतान के वज़ीरों, सलाहकारों को रिश्वतें देकर उन्हें सुलतान से गद्दारी पर आमादा करने की कोशिशें शुरू कर दी। दूसरी तरफ़ वह टीपू सुलतान से जंग छेड़ने का बहाना तलाश कर रहा था। उसने बहुत जल्द सुलतान के ऐसे गद्दारों की खिदमात हासिल कर लीं जो उसे पल-पल की खबरें पहुंचाने लगे। उन गद्दारों के सरगना पुरनया, बदरुज्जमां नायता और मीर सादिक सुलतान के अमीर थे। लेकिन सुलतान उन नमकहरामों और उनकी साज़िशों से बेख़बर था। लार्ड वेलेस्ले को सुलतान पर हमला करने का
बहाना भी मिल गया। उन दिनों फ्रांस हुकूमत और सुलतान के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत फ्रांस ने ज़रूरत के वक्त सुलतान की फौजी मदद करने का वादा किया। लार्ड वेलेस्ले ने उनके इस रक्षा समझौता को बहाना बनाकर सुलतान को पैगाम भेजा कि चूंकि आपने हमारे दुश्मन फ्रांस से समझौता किया है, इसलिए मैजर डूट्टन को भेज रहा हूं। उसे इख़्तियार है कि अंग्रेज़ों की हिफ़ाज़त के लिए आपके कुछ इलाके आपसे मांगे।
फिर मैजर डूट्टन ने सुलतान से जो इलाके मांगे, वे लिए बहुत अहम थे। इसलिए सुलतान ने वे इलाके अंग्रेजों के हवाले करने से इनकार कर दिया। सुलतान टीपू का इनकार लार्ड वेलेस्ले के लिए जंग का बहाना बन गया और अंग्रेज़ फ़ौज ने निज़ाम हैदराबाद की फ़ौज की मदद से 23 फ़रवरी 1799 को मैसूर पर हमला कर दिया। सुलतान के
गद्दार जरनेल
अंग्रेजों ने मैसूर पर हमला किया तो रास्ते में कहीं भी उन्हें रोकने की ख़ास कोशिश नहीं की गई। सुलतान के धोखेबाज़ किलादारों और दरबारियों को अंग्रेज़ पहले ही ख़रीद चुके थे। इसलिए वे किसी रुकावट के बगैर मैसूर के अन्दर बढ़ते चले गए। सुलतान टीपू को इस हमले की ख़बर न हो सकी। गद्दार मीर सादिक और पुरनया ने सुलतान तक । कोई खबर पहुंचने हो न दी। मगर जब सुलतान को किसी तरह ख़बर हो गई तो उसने हिम्मत से काम लिया और अपना लश्कर लेकर तेजी से अंग्रेज़ फ़ौज की तरफ बढ़ा। कुछ जगहों पर अंग्रेज़ फ़ौज से जंग हुई। लेकिन सुलतान के लश्कर के अकसर जरनेल अंग्रेजों से मिले सुलतान टीपू शहीद
– हुए थे और उन्होंने कहीं भी सच्ची नियत से अंग्रेजों का मुकाबला न किया और जान-बूझ कर अपनी ही फ़ौज को नुकसान पहुंचाया। गुलशनाबाद के मैदान-ए-जंग में अंग्रेज़ हार कर भागने ही वाले थे कि एक जरनेल कमरुद्दीन की गद्दारी से जीती हुई जंग सुलतान की हार में बदल गई।
कमरुद्दीन उस वक्त जबकि सुलतान की फ़ौज को जीत हासिल हो रही थी, सुलतानी फ़ौज को जानबूझ कर अंग्रेज़ी तोपों की जद में ले आया और कुछ लमहों में ही सुलतान के बेशुमार सिपाही मारे गए। सुलतानी फ़ौज हारकर मैदान से भाग गई।
श्रीरंगापटनम का मुहासिरा
सुलतान के सलतनत के सरदारों और जरनेलों की गद्दारी के सबब कुछ और जगहों पर भी सुलतानी फ़ौज को हार का सामना करना पड़ा और अंग्रेज़ी फ़ौज कामयाबियां हासिल करती हुई श्रीरंगापटनम के करीब पहुंच गई। सुलतान टीपू को भी श्रीरंगापटनम पहुंचना पड़ा ताकि अंग्रेज़ों का मुकाबला कर के श्रीरंगापटनम को बचाने की कोशिश की जाए। यहां भी अंग्रेजों ने सुलतान के गद्दारों की तरफ़ से दी गई मालूमात से फायदा उठाया और श्रीरंगापटनम का मुहासिरा करके किले पर गोलाबारी शुरू कर दी। सुलतानी फ़ौज ने किले की दीवार पर से अंग्रेज़ी फ़ौज पर हम्ले किए, लेकिन फ़ौजी अफ़सरों और जरनेलों की गद्दारी के सबब नुकसान सुलतानी फौज को ही हुआ और वे कामयाब नहीं हो पाए। अंग्रेजों ने सुलतानी फ़ौज के कई अहम मोरचों पर कब्जा कर लिया और मजबूर होकर सुलतान की फौज को पीछे हट
जाना पड़ा। सुलतान टीपू बेबसी महसूस करने लगा। उसे अपने सरदारों और जरनेलों की गद्दारी का अभी तक पता नहीं चला था।