
ऋग्वेद में औरतों को पर्दा (हिजाब) करने का आदेश…
@ वर्तमान समय में हिंदुत्ववादी संगठनों की ओर से निरंतर इस्लाम के हिजाब को निशाना बनाया जा रहा है..आरोप करने वाले वहीं लोग हैं जो स्वयं को हिंदुत्व-प्रेमी और एकता-समता व उदारवादी दृष्टिकोण की सराहना करते हैं… दरअसल ये लोग राजनीति से प्रेरित होकर दूसरे धर्मों को निशाना बनाते हैं इनका संबंध किंचित मात्र भी धार्मिक अध्ययन या आध्यात्मिकता से नहीं है..इनका उद्देश्य मात्र समाज को धार्मिक ध्रुवीकरण करके और अशांति फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकना मात्र है।
इस शीर्षक पर चर्चा करने से पूर्व यह बताना जरूरी है कि मैं (आकिल खान) इस समय अपने निवास स्थान पर नहीं हूं अतः घर पर वेदों और धार्मिक ग्रंथों की उपलब्धता होने के पश्चात भी संदर्भ पाने में असमर्थ हूं अतः हमें आवश्यकता पड़ने पर पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष तथा भागवत गीता,चार्वाक दर्शन, उपनिषद: कितना सार्थक है आज इनका ज्ञान, क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म, इक्कीसवीं सदी में मनुस्मृति, बुद्ध और शंकर, बाबासाहेब आंबेडकर बनाम मनु व मनुस्मृति के रचयिता डॉ सुरेंद्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ ने हमें संदर्भ भेजा है… जिसके लिए हम उनके आभारी हैं।
ऋग्वेद के अष्टम मंडल (आठवां मंडल) के सूक्त नंबर 33 में श्लोक संख्या 19 में है-
‘अध: पश्यस्व मोपरि सन्तरां पादकौ हर।
मा ते कशप्लकौ दृशन्त्स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ।।’
1) वेदभाष्यकार पंडित ईश्वरचंद्र कन्हैयालाल जोशी ने इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है-
‘(अंतरिक्ष से आते हुए इंद्रदेव ने प्लयोग के पुत्र से, जो स्त्री हो गया था, कहा-) कि हे प्लयोग के पुत्र! आप स्त्री होकर नीचे देखिए (यह स्त्री का धर्म है) ऊपर मत देखिए। अपने पैरों को आप संश्लिष्ट (करीब) रखिए (छितराकर नहीं) तथा आपके मुख और पिंडलियों को पुरुष न देखें (इन्हें ढँककर रखिए) क्योंकि आप पहले ब्राह्मण होकर अब स्त्री बन गयी हैं।’
2) पंडित रामगोविन्द त्रिवेदी, वेदांतशास्त्री ने संबंधित श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है-
‘(इंद्र ने कहा) प्रायोगि, तुम नीचे देखा करो, ऊपर नहीं।
(स्त्रियों का यही धर्म है) पैरों को संकुचित रक्खो (मिलाए रक्खो)।
(इस प्रकार कपड़े पहनों कि) तुम्हारे कश (ओष्ठ प्रान्त) और प्लक (नारी-कटि का निम्न भाग) को कोई देखने नहीं पावे। यह सब इसलिए करो कि तुम स्तोता होकर भी स्त्री हुए हो।’
3) डॉ गंगा सहाय शर्मा ने इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है-
‘इंद्र ने कहा- हे प्रायोगि, तुम नीचे देखो, ऊपर मत देखो। तुम पैरों को आपस में मिलाओ, तुम्हारे होठों एवं कमर को कोई ना देखे, तुम स्तोता होते हुए भी स्त्री हो।’
4) आचार्य वेदांत तीर्थ ने इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार किया है-
‘इंद्र ने कहा है कि, हे प्रायोगिके! तू ऊपर नहीं बल्कि ऊपर की ओर दृष्टि रख। धीरे धीरे चलते समय तेरे दोनों अंग, मुंह एवं पिंडलियां दिखाई ना पड़े। तू शापवश स्त्री बना है।’
5) पंडित हरिशरण सिद्धांतालंकार (आर्यसमाजी विद्वान) ने दिए गए लिंक पर इस श्लोक के अंतर्गत इस प्रकार अर्थ लिखा है- http://www.onlineved.com/rig-ved/?mantra=19&mandal=8&sukt=33
‘गत मंत्र के अनुसार स्त्री का महत्व अधिक है, तो भी उसे नम्र तो होना ही चाहिए। इसी में उसकी प्रतिष्ठा है। मंत्र कहता है कि- नीचे देख, ऊपर नहीं। तेरे मे अकड़ ना हो। तू घर में शासन करने वाली अवश्य है पर तू पाँओं को मिलाकर रखनेवाली हो, असभ्यता में पाँव के फैला के न फिर। इस प्रकार तू वस्त्रों (से) अपने को ठीक प्रकार से आवृत कर जिससे तेरे टखने व निचले अंग नहीं दीखें। वस्त्रों से तू अपने को ठीक प्रकार से आवृत कर जिससे तेरे निचले अंग दिखते न रहें। वस्तुत: इस प्रकार के आचरणवाली स्त्री निश्चय से गृहस्थयज्ञ में ब्रह्म (सर्वमुख्य ऋत्विज) होती है। इसी ने इस यज्ञ को निर्दोष बनाना है।’
कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार इस्लाम ने औरतों को अंग-प्रदर्शन करने से मना किया है और अपने शरीर को पर-पुरुष के सामने ढकने का आदेश दिया है ठीक उसी तरह वैदिक शिक्षाओं के अंतर्गत औरतों को भी उपदेश दिया गया है।
संबंधित श्लोक का अनुवाद लोगों ने भिन्न-भिन्न किया है परंतु सबका भावार्थ समान है कि स्त्री को अपना अंग-प्रदर्शन नहीं करना चाहिए तथा मुंह, होंठ और पिंडलियों को छिपाए।
पर्दा के विषय में यह जानना जरूरी है कि पर्दा (हिजाब) है क्या.?? सरल अर्थों में ‘शारीरिक अंगों विशेषकर गोपनीय या छिपाने योग्य अंगों को वस्त्रादि से छिपाना’ है। कुछ लोगों ने कहा कि हमारे पास अमुक विद्वान का वेद-भाष्य है परंतु इसमें वस्त्रों से ढकने या ओढ़ने का जिक्र नहीं है तो इसका सादा सा और सरल उत्तर में है कि किसी भी विद्वान का भाष्य हो परंतु उसमें वस्त्र शब्द हो या ना हो लेकिन अंग-प्रदर्शन ना करने का आदेश जरुर है कि वो लोगों को अपना होंठ और कमर आदि ना दिखाएं…तो इसके लिए चेहरे पर और शरीर पर वस्त्र आदि डालना ज़रुरी है तभी संभव है कि लोग उसके इन भागों को ना देख पाएं।
ऋग्वेद के अनुसार औरतों को पर्दे में कौन सा भाग छिपाना है इसके लिए मूल मंत्र में ‘कशप्लकौ’ शब्द आया है जिसका अर्थ ‘होंठ और पिंडलियां’ है।
इसी चीज को अल्लाह ने कुरान के सूर्य नूर में आयत नंबर 31 में कहा है कि-
‘और ईमानवाली औरतों से कह दो कि वो अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें और अपने श्रृंगार प्रकट ना करें सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों पर अपने दुपट्टे डाले रखे और अपना श्रृंगार किसी पर प्रकट ना करें।’