
अबू जैद हसन
(आठवीं शताब्दी)
अबू जैद हसन आठवीं शताब्दी के मशहूर यात्री गुज़रे हैं। उन्होंने अपने सफ़रनामे में भारत, चीन, जावा और लंका के हालात लिखे। उनके सफ़रनामों की एक विशेषता यह है कि वह सागर विज्ञान और जलवायु के बारे में भी जानकारी देते हैं।
उन्होंने अपनी भारत-चीन यात्रा पर एक पुस्तक लिखी है और उसमें अपने से पहले इन देशों की यात्रा करने वाले व्यापारी सुलेमान और इब्ने वहाब के बारे में भी लिखा है। उनके सफ़रनामे में भारत-चीन की व्यापारिक, सांस्कृतिक राजनैतिक और भूगोलिक परिस्थितियों की जानकारी है। जलपोत में यात्रा के दौरान सागर में होने वाले हालात का वह रोचक वर्णन इस प्रकार करते हैं।
“कभी ऐसा होता है कि हिन्द महासागर के तट पर सफ़ेद बादल से छा जाते हैं, अचानक इन बादलों से एक लम्बी जीभ सी निकलकर पानी को चीरती हुई गुज़र जाती है। जिससे पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है और वहाँ विशाल भंवर बन जाता है। अगर जलपोत इसके चक्कर में फंस जाए तो डूब जाता है। उसके बाद बादल ऊँचाई की ओर उठते हैं और बारिश शुरू हो जाती है। इस बारिश में सागर जल मटियालापन लिए होता है। मैं कह नहीं सकता कि यह जल सागर का ही होता है या किसी और स्थान से आता है और यह वर्षा की बूंदों में कैसे बदल जाता है।” बारिश के अलावा वह सागर में आने वाले तूफ़ानों के बारे में भी लिखते हैं।
“क्योंकि सागर चारों ओर से खुले होते हैं इसलिए उन पर हवा का अधिक प्रभाव पड़ता है। हवा के चलने से सागर में हलचल पैदा होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि सागर आग में उबल रहा है जो वस्तु भी सागर तट पर होती है वह नष्ट हो जाती है या सागर की लहरें उसे तट पर ला पटकती हैं।
महान मुस्लिम वैज्ञानिक
लहरें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि वह बड़े-बड़े पत्थरों को उठाकर तीर की गति से फैंक देती हैं। जब सागर में तूफ़ान आता है तो वह ज्वालामुखी की तरह उमड़ता हुआ लगता है।”
अबू जैद हसन ने चीन के हालात भी लिखे हैं।
“चीन की जिस बंदरगाह पर अरब सौदाकर जाकर ठहरते हैं उसका नाम फ़ांगो है। (इसी बंदरगाह को यूरोपीय यात्री मारको पोलो ने गाम्पटो लिखा है) इस क्षेत्र में अरबों की कोठियां हैं और चीन के सम्राट ने अरबों के स्वागत के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किये हैं। यहाँ अरबों का बड़ा आदर सत्कार किया जाता है। इन्हीं अरब सौदागरों के ज़रिये चीन में इस्लाम का प्रकाश पहुंचा।
*****
