

हुनैन बिन इसहाक़ (Johannititus )
(809 ई० – 873 ई०)
हुनैन बिन इसहाक़ इराक़ के शहर अलहिरा के रहने वाले थे। उनका परिवार बनू अल-इबादी कहलाता था। इसी कारण पूरा नाम हुनैन बिन इसहाक़ मरानी अल-इबादी है। यूरोप में आपको जॉहन्नीटीटस के नाम से याद किया जाता है।
हुनैन बिन इसहाक़ एक निपुण चिकित्सक ही नहीं एक अच्छे अनुवादक भी थे।
सर्जरी के उपकरण
हुनैन लड़कपन में ही रोज़गार के लिए शाहपुर आये और वहाँ के प्रसिद्ध चिकित्सक यूहन्ना बिन मासूया के क्लीनिक पर दवा बनाने का काम करने लगे।। यूहन्ना मरीजों को देखकर छात्रों को आयुर्विज्ञान पढ़ाता था। अत: जब वह छात्रों को पढ़ाता तो हुनैन ध्यानपूर्वक उसकी बातें सुनते। लेकिन यूहन्ना को यह बात पसन्द नहीं थी। उसने उन्हें टोका तो वह यूनान फिर मिस्र चले गये। वहाँ उन्होंने सिरयानी भाषा सीखी और बग़दाद आ गये। उस समय मामून रशीद का शासनकाल था जो ज्ञानियों का बड़ा आदर करता था। हुनैन उसकी स्थापित की हुई संस्था बैतुल हिकमत में अनुवाद का कार्य करने लगे। अपनी लगन और परिश्रम के कारण वह पदोन्नति करते-करते अनुवाद विभाग के अध्यक्ष बन गये। उन्होंने पुस्तकों के शानदार अनुवाद किये। मामून रशीद उनके काम की बड़ी क़दर करता था। वह पगार के अलावा हर अनुवादित पुस्तक के बराबर उन्हें सोना देता था। मामून रशीद की मृत्यु के चालीस साल बाद भी हुनैन जीवित रहे और अनुवाद व पुस्तक लेखन के
काम में व्यस्त रहे। हुनैन ने नेत्रविज्ञान (Ophthalmology) पर दस पुस्तकें लिखीं। पहली बार इनमें नेत्र रोगों की चिकित्सा को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। वह अच्छे चिकित्सक ही नहीं बल्कि धार्मिक और साहसी इंसान भी थे।
कहा अब्बासी ख़लीफ़ा मुतवक्किल ने उन्हें अपना निजी चिकित्सक बनाने के लिए उनकी परीक्षा लेनी चाही। ख़लीफ़ा ने उन्हें बुलाया और राज़दारी से “मैं अपने एक शत्रु को चुपचाप मौत की नींद सुलाना चाहता हूँ। तुम मुझे दवा में ऐसा विष मिलाकर दे दो कि किसी को पता न चले।” लेकिन हुनैन ने साफ़ उत्तर दिया, “मुझे केवल प्राण बचाने वाली दवाओं का पता है। मेरा काम इंसानों को बचाना है न कि उनकी हत्या करना।” यह सुनकर खलीफ़ा ने पहले इनाम का लालच दिया फिर जान से मारने की धमकी दी लेकिन वह अपनी बात पर जमे रहे। इस पर ख़लीफ़ा ने नाराज होकर उन्हें कारागार में भेज दिया। एक साल बाद उन्हें ख़लीफ़ा के सामने लाया गया। ख़लीफ़ा ने एक तरफ़ तलवार रखी हुई थी और दूसरी ओर सोना चाँदी। जब सिपाही उन्हें ख़लीफ़ा के सामने लाये तो उसने कहा, “एक साल जेल में रहकर तुम्हारा दिमाग़ ठीक हो गया होगा। अभी अवसर है कि मेरे शत्रु के लिए विषैली दवाई तैयार करो और यह सारा सोना-चाँदी ले लो। वर्ना यह तलवार तुम्हारा सिर उड़ा देगी।” हुनैन ने ख़लीफ़ा की आँखों में आँखें डालकर कहा मेरा जवाब आज भी वही है। मैं अपने व्यवसाय का दुरुपयोग किसी के प्राण लेने के लिए नहीं कर सकता, चाहे आप मेरी जान ले लें। यह साहस देखकर ख़लीफ़ा आगे बढ़ा और उसने तलवार हुनैन की पीठ पर बाँध कर उन्हें गले लगा लिया। उसने कहा, “मैं आपको राज चिकित्सक बनाना चाहता हूँ। इसलिए आपकी परीक्षा ले रहा था। मैंने जेल में डालकर वर्ष भर तुम पर नज़र रखी तुम अपनी परीक्षा में पूरे उतरे। अतः आज से तुम राज चिकित्सक हो। इस घटना से पता चलता है कि हुनैन एक निपुण चिकित्सक होने के साथ-साथ एक सुचरित्र और सत्यनिष्ठ इंसान भी थे। उनका अनुवाद किया। सिर्फ़ यूनानी
उन्होंने नब्बे पुस्तकें लिखीं या
हकीम जालीनूस की सोलह पुस्तकों का सरल अरबी में अनुवाद किया। । उसके अलावा यूनानी दर्शनशास्त्री बुकरात की सात पुस्तकों का भी अरबी भाषा में अनुवाद किया।
उन्होंने ज्वार-भाटा, इन्द्रधनुष और उल्का पिंडों पर भी पुस्तकें लिखीं। एक व्यस्त चिकित्सक होते हुए भी उन्होंने दूसरे क्षेत्रों में शोध किये। निसंदेह वह अपने समय के महान शोधकर्ता और वैज्ञानिक थे।
*****