
मुहम्मद बिन मूसा अलखवारज़मी (780 ई० 850 ई.)
मध्य एशिया का एक क्षेत्र खवारज़म कहलाता था। आज इसका नाम खिव है। इसी शहर में इस्लामी युग के प्रसिद्ध गणित शास्त्री मुहम्मद मूसा अलखवारज़मी 780 ई० में पैदा हुए।
मुहम्मद बिन ममा अलखबारजी उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने देश में ही प्राप्त की। उस ज़माने के मशहूर विद्वान आपके गुरु रहे और आपकी विद्या की चर्चा दूर तक होने लगी। अब्बासी खलीफ़ा मामून रशीद ने जब विद्या और ज्ञान की उन्नति के लिए एक संस्था बैतुल हिकमत स्थापित की तो उसका नाम सुनकर खवारज़मी बग़दाद आ गये। यहाँ उन्होंने खगोल विद्या पर एक पुस्तक लिखी। इस अनुसंधानात्मक पुस्तक को बहुत पसंद किया गया और उन्हें इस संस्था का सदस्य बना लिया गया।
गणित शास्त्र पर उनकी दो पुस्तकें गणित और अलजबरा पर अद्वितीय पुस्तकें हैं। यूरोपीय शोधकर्ताओं ने उनकी इन पुस्तकों से बहुत कुछ सीखा। ख़वारज़मी पहले विद्वान हैं जिन्होंने गणना के लिए रोमनविधि के बजाए अरबी विधि का प्रयोग किया और जोड़ना, घटाना, गुणा करना व भाग देना आसान हो गया। गिनती की यही विधि आज पूरे संसार में प्रचलित है। यूरोप वाले शताब्दियों से इस विधि को अरबी विधि कहते हैं।
अलजबरा पर मुहम्मद बिन मूसा ख़वारज़मी की पुस्तक ‘अलजबरो अलमुक़ाबला’ अपने विषय पर संसार की प्रथम पुस्तक है। उन्होंने ट्रिग्नोमैट्री (त्रिकोणमिति) पर भी कई पुस्तकें लिखीं। एक पुस्तिका धप घड़ी पर लिखी। उनके अलजबरा की एक विशेषता यह है किउसमें अलजबरा के कई प्रश्नों को ज्योमेटरी की रेखाओं से बनी आकृति की सहायता से हल किया गया है।
खवारज़मी की अलजबरे का सबसे पहले लातीनी भाषा में अनुवाद हुआ उसके बाद एक व्यक्ति रोज़न ने 1831 ई० में उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया।