
आप अपने घर में कैसा व्यवहार करते हैं यह इंगित करता है कि बाहर आप का व्यवहार कैसा होगा.
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की ख़ानक़ाह में एक व्यक्ति अक्सर आया करता था. एक दिन उस ने हज़रत से पूछा – सरकार ! जब भी मैं यहाँ आता हूँ तो अभिवादन के बाद मुझे कुछ खाने दिया जाता है, शरबत पिलाते हैं, और तब बात की जाती है. हज़रत ने मुस्कुराकर जवाब दिया कि एक हदीस है जिसका भाव यह है कि अगर आप किसी से मिलने गए और कुछ चखा नहीं, कुछ पीया नहीं तो गोया आप मिले ही नहीं !
यहाँ एक बात और ध्यान देने की है कि सूफ़ी के यहाँ अमल पर ज़ोर दिया जाता है. एक विद्वान इस हदीस को किताबों में ढूंढेगा, एक वहीं एक सूफ़ी कहेगा हमारे यहाँ यह अमल में मिलती है.
उस आदमी की उत्सुकता और बढ़ी – उसने फिर प्रश्न किया – सरकार ! मैंने यहाँ यह अनुभव किया है . आप के ही मित्र हज़रत रुकनुद्दीन सुहरवर्दी (र.अ.) कुछ दिनों से दिल्ली में हैं. मुझे उनके दर्शन का भी सौभाग्य हुआ. पर उनके यहाँ ऐसा कुछ नहीं देखा. ऐसा क्यूँ ?
अब बात एक सूफ़ी के दूसरे सूफ़ी के प्रति व्यवहार की आ गयी.
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने बड़ी मासूमियत से मुस्कुराते हुए फ़रमाया – वह बड़े सूफ़ी हैं. उनके यहाँ बातिनी लुकमा दिया जाता है. हमारे यहाँ ज़ाहिरी लुकमा पेश किया जाता है.
जब बात तुलनात्मक हुई तो अपने आप को छोटा बना कर पेश कर दिया और दूसरे को बड़ा ! यह रीत सूफ़ी ख़ानक़ाहों में ही संभव है जहाँ मानवता को सब से ऊँचे आसन पर रखा जाता है.