
अहले बैत और सहाबा में अंतर.!!
@# गजवा-ए-खंदक (5 हिजरी) में हजरत सलमान फारसी रजि. ने ही हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्ल० को खंदक खोदने का मशविरा दिया था तो इस मशविरा को मुस्तफा सल्ल० ने पसंद किया और मुहम्मद सल्ल० ने लोगों को खंदक खोदने का हुक्म दिया था।
खंदक में हर सहाबी चाहता था कि हज़रत सलमान फारसी रजि. मेरे साथ मिलकर खंदक खोदें और गजवाए खंदक में हज़रत सलमान फारसी रजि. ने बहुत ही मेहनत की और अकेले ही काई लोगों से ज्यादा खंदक खोदी
हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्ल० ने हज़रत सलमान फारसी रजि. की मुहब्बत व लगन को देखकर बहुत खुश हुए और उसी दिन हमारे नबी मुहम्मद मुस्तफा सल्ल० ने सबके सामने कहा कि ‘आज से सलमान मेरे अहले बैत में से है।’
अहले सुन्नत वल जमाआत के नजदीक इस बात पर कोई इख्तिलाफ नहीं है कि मुहम्मद सल्ल० ने ऐलान करके सलमान फारसी रजि को गजवाए खंदक के दिन अपने अहले बैत में शामिल किया।
जो लोग अहले बैत और सहाबा को एक ही लाइन में जबरन खड़ा करते हैं, उनसे पूछता हूं कि अगर सहाबा होना ही बहुत बड़ी अफजलियत है तो क्या खंदक में या खंदक से पहले हजरत सलमान फारसी रजि. सहाबिए रसूल नहीं थे.?? अगर सहाबिए रसूल थे तो फिर हज़रत सलमान फारसी रजि. को सहाबियत से अहले बैत में शामिल करने की क्या जरुरत थी.??
नतीज़ा यही निकलता है कि जब सहाबियत बुलंद होता है तो वो अहले बैत कहलाता है।
ये है सहाबा की सहाबियत और अहले बैत में अंतर…