
सवाल 6:- ईद मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दिन जुलूस क्यों निकालते हैं?
जवाब 6:– आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिये जुलूस निकालना कोई नई बात नहीं है बल्कि सहाबा केराम रदियल्लाहु अन्हुम ने भी जुलूस निकाला है। सहीह मुस्लिम की हदीस में है कि जब आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हिजरत करके मदीना तशरीफ़ ले गए तो लोगों ने खूब जश्न मनाया, तो मर्द व औरत अपने घरों की छत पर चढ़ गए और नौजवान लड़के, गुलाम व खुद्दाम रास्तों में फिरते थे और नार-ए-रिसालत लगाते और कहते या मुहम्मद या रसूलल्लाह! या मुहम्मद या रसूलल्लाह! (सहीह मुस्लिम, हदीसः 7707)
एक रिवायत में आता है कि हिजरते मदीना के मौके पर जब हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना के करीब पहुंचे तो बुरैदा असलमी अपने सत्तर साथियों के साथ दामने इस्लाम से वाबस्ता हुए और अर्ज़ किया कि हुजूर मदीना शरीफ में आपका दाखिला झण्डा के साथ होना चाहिये, फिर उन्होंने अपने अमामे को नेज़ा पर डाल कर झण्डा बनाया और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगे आगे रवाना हुए। (वफ़ाउल-वफ़ा, हिस्साः 1, पेजः 243)
यहाँ ये बात भी याद रखने की है कि जुलूस निकालना सकाफ़त (culture) का हिस्सा है। दुनिया के हर खित्ते में जुलूस निकाला जाता है, कहीं स्कूल व कॉलेज के मा-तहत, तो कहीं सियासी जमाअत के मा-तहत जुलूस निकाला जाता है। कुछ दिन पहले डन्मार्क के एक कार्टूनिस्ट ने नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शान में गुस्ताखी की तो पूरे आलमे इस्लाम में जुलूस निकाला गया और एहतिजाज (प्रदर्शन) किया गया। इसी तरह ईद मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मौके पर पूरे आलमे इस्लाम में मुसलमान जुलूस निकालते हैं और आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुहब्बत का इजहार करते हैं।

सवाल 7:- इस्लाम में दो ही ईदें हैं, ये तीसरी ईद कहाँ से आई?
जवाब 7:- ये कहना कि इस्लाम में सिर्फ दो ईदें हैं सरासर जहालत है। अहादीसे करीमा से साबित है कि जुमा भी ईद है। अब जुमा ईद क्यों है? वो भी जान लीजिये ।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमायाः “बेशक ये ईद का दिन है जिसे अल्लाह तआला ने मुसलमानों के लिये (बरकत वाला) बनाया है, पस जो कोई जुमा की नमाज़ के लिये आए तो गुस्ल करके आए और अगर हो सके तो खुशबू लगा कर आए और तुम पर मिस्वाक करना ज़रूरी है।” (इब्ने माजा, हिस्साः 1, हदीसः 1098, तिबरानी, हिस्साः 7, हदीस 7355)
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमायाः “बेशक जुमा का दिन ईद का दिन है, पस तुम अपने ईद के दिन को यौमे सियाम (रोज़ा का दिन) मत बनाओ मगर ये कि तुम उसके पहले या उसके बाद के दिन का रोज़ा रखो।” (सहीह इब्ने खुजैमा, हदीस 1980, सहीह इब्ने हिब्बान, हदीसः 3680)
हदीस में है: “जुमा का दिन तमाम दिनों का सरदार है और अल्लाह के यहाँ तमाम दिनों से अज़ीम है और ये अल्लाह के यहाँ ईदुल अजहा और ईदुल फित्र दोनों से अफ़ज़ल है। (अल-मोजमुल कबीरः तिबरानी, हदीसः 4387)
अब सवाल ये है कि आखिर क्या वजह है कि जुमा का दिन ईद भी है, सब दिनों से अफ़ज़ल भी है बल्कि ईदुल अजहा और ईदुल फित्र से भी अफ़ज़ल है?
इसका जवाब भी हदीसे पाक से मुलाहज़ा करें:
हज़रत औस बिन औस रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमायाः “तुम्हारे दिनों में सबसे अफ़ज़ल दिन जुमा का दिन है। इस दिन हज़रत आदम की विलादत हुई, इसी रोज़ उनकी रूह कब्ज की गई और इसी रोज़ सूर फूंका जाएगा। पस इस रोज़ कसरत से मुझ पर दुरूद भेजा करो, बेशक तुम्हारा दुरूद मुझ पर पेश किया जाता है। (सुनने इब्ने माजा, हृदीसः 1138, सुनने अबू दाऊद, हृदीसः 1049, सुनने नसई, हदीसः 1385) जिक्र की गई हदीसों से मालूम हुआ कि जुमा का दिन
आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश का दिन है इसलिये ये ईद का दिन है। तो भला जिस दिन दोनों जहाँ के सरदार, दोनों जहाँ की रहमत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मीलाद
रोशनी में (पैदाइश) हो, वो ईद का दिन क्यों न हो? बल्कि ये तो ईदों की ईद है कि हमें सारी ईदें इसी ईद की वजह से मिली हैं | इन हदीसों से ये भी मालूम हुआ कि मुसलमान साल में दो ईदें नहीं बल्कि 50 से ज्यादा ईदें मनाता है। अल-हम्दु लिल्लाह इसके
अलावा कुरआन पाक में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ नक्ल है तर्जमाः ऐ हमारे रब हम पर आसमान से नेमतों का दस्तरख्वान नाज़िल फरमा कि वो हमारे लिये ईद करार पाए और वो तेरी तरफ से निशानी बने और बेहतर रिज्क अता फरमाने वाला है। (सूर-ए-माइदा, आयतः 114)
गौर फ़रमाएँ! कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम दस्तरख्वान नाज़िल होने के दिन को ईद करार दे रहे हैं। अब आप खुद फैसला करें कि जिस दिन फख्ने मौजूदात, दुनिया की पैदाइश का सबब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जलवागर हों वो दिन क्यों न ईद करार पाए?