
1:- क्या आप कुरआन मजीद से रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आमद पर खुशी मनाने की दलील दे सकते हैं?
जवाब 1:- जी हाँ! अल्लाह तआला कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है: तर्जमाः “ऐ हबीब आप फ़रमा दीजिये कि अल्लाह के फज्ल और उसकी रहमत मिलने पर मुसलमानों को चाहिये कि खुशियाँ मनाएँ।” (सूर-ए-यूनुस, आयतः 58)
इस आयत में ये हुक्म दिया गया कि जब अल्लाह का फल और उसकी रहमत नाज़िल हो तो मोमिनों को उस पर खुशियाँ मनानी चाहिये। अब किसी जह्न में ये सवाल आ सकता है कि क्या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की रहमत हैं? जो हम उनकी आमद पर खुशियाँ मनाएँ। इसका जवाब भी खुद कुरआन दे रहा है। मुलाहज़ा करें: yasy .; “हमने तुम्हें नहीं भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिये ।” (सूर-ए-अम्बिया, आयतः 107)
अल–हम्दु लिल्लाह रसूले अरबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इस दुनिया में तशरीफ़ लाना रहमत है और पहली आयत में अल्लाह तआला हमें रहमत मिलने पर खुशियाँ मनाने का हुक्म दे रहा है। अब बताओ मुसलमानो! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ाते मुबारक से बढ़ के रहमत कौन हो सकता है! तो मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर खुशियाँ क्यों न मनाया जाए? अल-हम्दु लिल्लाह कुरआन की इन आयतों से आमदे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर खुशियाँ मनाना साबित हुआ।

2:- क्या आप साबित कर सकते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी मीलाद मनाई? जवाब
2:- जी हाँ! हदीस मुलाहज़ा फ़रमाएँ: हज़रत अबू क़तादा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पीर (सोमवार) के दिन रोज़ा रखने के बारे में पूछा गया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “इसी रोज़ मेरी विलादत हुई, इसी रोज़ मेरी बिअसत हुई और इसी रोज़ मेरे ऊपर कुरआन नाज़िल किया गया।” (सहीह मुस्लिम, हदीस: 2807, सुनने अबू दाऊद, हदीसः 2428, मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, हदीस 23215) इस हदीस से साबित हुआ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर पीर के दिन रोजा रख कर अपनी मीलाद का खुद एहतेमाम किया है। लिहाजा साबित हुआ कि दिन मुकर्रर करके यादगार मनाना सुन्नत है। अल-हम्दु लिल्लाह

सवाल 3:- क्या सहाबा केराम रिदवानुल्लाहि अन्हुम ने भी कभी मीलाद की महफ़िल मुन्अकिद की है?
जवाब 3:- जी हाँ! इमाम बुखारी के उस्ताद इमाम अहमद बिन हम्बल लिखते हैं: सय्यिदुना अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: एक रोज़ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अपने असहाब के हलके से गुज़र हुआ, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः क्यों बैठे हो? उन्होंने कहाः हम अल्लाह तआला का जिक्र करने और उसने हमें जो इस्लाम की हिदायत अता फरमाई उस पर हम्द व सना (तारीफ़) बयान करने और उसने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेज कर हम पर जो एहसान किया है उसका शुक्र अदा करने के लिये बैठे थे। आपने फ़रमायाः अल्लाह की कसम! क्या तुम इसी के लिये बैठे थे? सहाबा ने अर्ज़ कियाः अल्लाह की कसम! हम सब इसी के लिये बैठे थे। इस पर आप
ईद मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सवाल व जवाब की रोशनी में सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः अभी मेरे पास जिबरईल अलैहिस्सलाम आए थे, उन्होंने कहा कि अल्लाह तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फख्र कर रहा है। (सुनने नसई, हदीस: 5443, अल-मोजमुल कबीरः तिबरानी, हदीस: 16057)
इस हदीस से साबित हुआ कि सहाबा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मीलाद (पैदाइश) पर शुक्र अदा करते थे। यहाँ ये बात भी काबिले ज़िक्र है कि जो लोग हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मीलाद की महफिल सजाते हैं और उसमें शरीक होते हैं, अल्लाह ऐसे बन्दों पर फ़रिश्तों की जमाअत में फख्र फ़रमाता है और हाँ! हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जिक्र अल्लाह ही का ज़िक्र है इस पर कुरआन और हुजूर की हदीसें गवाह हैं।