

शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक़ इनआम हैं अबु तालिब हरीम में वही में इल्हाम हैं अबु तालिब हरम के अजूम का एहराम हैं अबु तालिब
ये चुनकर लाए जो गुंचा वो फूल हो जाए फिर इनकी गोद में पलकर रसूल हो जाए रसूल ए रब के निगाहबान हैं अबु तालिब नबी हैं दीन तो ईमान हैं अबु तालिब
शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक़ इनाम हैं अबु तालिब
नुजूल ए वही का उन्वान हैं अबु तालिब बगैर लफ्जों का कुरआन हैं अबु तालिब इन्हीं के दम से हुई इब्तिदा ए बिस्मिल्लाह इन्हीं ने नुक्ता दिया ज़ेर ए बा ए बिस्मिल्लाह
पयम्बरी की बलाओं का रद अबु तालिब मदद खुदा की है शक्ल ए मदद अबु तालिब नबी की ढाल, दम ए गिर्द ओ क़द अबु तालिब निशाना ख़त्म ए रसूल और ज़द अबुतालिब
जिहाद इनका है पस ए मन्ज़र ए जिहाद ए अली अली हैं बाद में इनके ये पहले नाद ए अली शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक़ इनआम हैं अबु तालिब
कहाँ हैं तंग नज़र हमसे भी तो आँख मिला है इनके कुफ्र का दावा तो कुछ सबूत भी ला कोई तो रस्म ज़हालत की इनके घर में दिखा बुतों के आगे झुका इनका सर, सर अपना झुका खुदा के नूर पेओ खाक डालने वाले ये बुत शिकन को हैं गोदी में पालने वाले
रसूल इनका बड़ा ऐहतराम करते हैं सवाब ए दीद से तंजीम ए आम करते हैं सहर को उठते ही अव्वल ये काम करते हैं इन्हें नमाज़ से पहले सलाम करते हैं नबी अगर किसी काफ़िर को यूँ सलामी है तो फिर ज़रूर नबूवत में कोई खामी है
- शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक इनआम हैं अबु तालिब
इन्हीं के घर में है खैरुल अनाम सल्ले अला पिसर नबी का है कायम मुकाम सल्ले अला किसे नसीब है ये एहतराम सल्ले अला
के इनके खुर्द हैं सारे इमाम सल्ले अला खता मुआफ़ हो ये भी अगर नहीं मोमिन तो फिर जहान में कोई बशर नहीं मोमिन
शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक इनआम हैं अबु तालिब
ना जाँचिए ये रिवायत ना सीरत ओ किरदार नबी की आँख से अब इनको देखिए एक बार ये बारगाह ए रिसालत में आपका था वकार पछाइ खा के इन्हें रोए अहमद ए मुख़्तार वो आम ए हुजून बना इनका जब विसाल हुआ ये गम रसूल की उम्मत में एक साल हुआ
शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबू तालिब नबी को हक़ का इक़ इनआम हैं अबु तालिब
ये मरने वाला गर ईमान ही ना लाया था तो क्या रसूल ने काफ़िर का ग़म मनाया था
जबाँपे व अबता बार बार आया था
वो खुद भी रोए थे औरों को भी रुलाया था जता दिया था कि जो मोहसिन ए रिसालत है तो उसको रोना रुलाना नबी की सुन्नत है
शरीक ए दावत ए इस्लाम हैं अबूतालिब नबी को हक का इक इनआम हैं अबु तालिब