बुग्ज़ ए अली

बुग्ज़ ए अली, ये बात नई नहीं है, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दौर से चली आ रही है और कयामत आने तक चलेगी। हम मुसलमानों के बारह इमाम हैं, ये शिया-सुन्नी के नहीं बल्कि तमाम मोमिनों के इमाम हैं।

पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत पहले ही बयान की जा चुकी है कि किस तरह बुग्ज़ में आपको शहीद किया गया। आख़िरी इमाम यानी मेंहदी अलैहिस्सलाम का अभी जुहूर होना बाकि है।

आपको शायद ये बात भी मालूम होगी कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बाद भी दुश्मनों के अंदर से बुग्ज़ ए अली नहीं निकला और इन्होंने हर दौर में अहलेबैत अलैहिस्सलाम पर जुल्म ढाए।

बुगज़ ए अली में इमामों को शहीद करते रहे और उनकी औलादों को शहीद किया उनके चाहने वालों को शहीद किया।

वक्त के इमामों से इल्म हासिल करने की जगह, उम्मत के कुछ जाहिल लोग, इमामों के कत्ल के मंसूबे बनाते रहे और ये कुछ जाहिल कितने थे, इनकी तादाद, हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम के खिलाफ़ खुली। जब ये चेहरे से मोमिन के नकाब हटाकर, अपने असली चेहरे के साथ सामने आ गए। इमाम के साथ बहत्तर दिखे तो सामने हजारों के लश्कर थे। अफ़सोस की बात तो ये कि वह भी खुद को मुसलमान कहते थे।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बाद, दूसरे इमाम, हज़रत हसन अलैहिस्सलाम को ज़हर देकर शहीद किया गया। ज़हर से आपका जिगर कट गया था और आप इमाम अलैहिस्सलाम अपनों को दुआएँ और नसीहत देते हुए, जाम ए शहादत पीते हुए इस दुनिया से पर्दा कर गए।

इस दुख भरे वक्त के बाद जब हज़रत हुसैन, तीसरे इमाम बने तो आपसे यजीद इब्ने मुआविया ने जबरन जंग करनी चाही और आपको करबला में शहीद किया गया।

पहले आपके हर अपने को शहीद किया गया, आप इमाम अलैहिस्सलाम अपनों के जनाज़े उठाते रहे, अपने बच्चों में जवानों और मासूमों का जनाजा उठाते रहे। आख़िर में आपका सर मुबारक काट लिया गया और नेज़े पर सजाया गया।

इसके बाद भी जालिमों को जब चैन ना आया तो अहलेबैत की बह बेटियों पर जुल्म किए गए, मारा-पीटा भी गया। इस जंग में हज़रत हुसैन अलैहिस्सलाम का एक बेटा बचा था, हज़रत सज्जाद यानी जैनुलआबिदीन, जो हमारे चौथे इमाम बने। आपने करबला के बाद बहुत सखूतियाँ झेली, जिन्हें बयान करना बहुत दर्द भरा काम है। आप बहुत वक्त कैद भी रखे गए।

किसी भी इमाम ने कभी हुकूमत से जंग नहीं की लेकिन ये हुकुमरान भी जानते थे कि इमाम भले ही मुकाबला नहीं करते लेकिन ये हक हैं और बातिल हमेशा हक़ से डरता है लिहाजा आप इमाम अलैहिस्सलाम को भी ज़हर देकर ही शहीद किया गया।

आपके दुनिया से जाने के बाद, आपके बेटे इमाम मुहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम पाँचवे ख़लीफ़ा बने। वक्त के हुकुमरान ने आपको बुग्ज़ की वजह से कैद में डलवा दिया लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि ये तो कैद में रहकर भी दीन और हक़ की बात करते हैं तो उसे डर लगने लगा की इस तरह तो ये लोगों को अपनी तरफ़ कर लेंगे।

लिहाजा उसने आपको आजाद करवाया फिर धोखे से शरबत के ज़रिए ज़हर दिलवाया, इस तरह आप शहीद हो गए। इमाम हसन के पोते हजरत अब्दुल्लाह अल महज़ उनके बेटे हज़रत इमाम नफ्से ज़किया और उनके भाई हज़रत इब्राहीम को शहीद किया और दीगर हसनी और हुसैनी सद्दात को शहीद किया। इमाम ज़ैद इब्ने जैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को भी शहीद किया।

आपके जाने के बाद, आपके बेटे हज़रत जाफ़र सादिक़, छटे इमाम बने, दुश्मनों ने आपके कत्ल की भी साज़िशें कीं, कई बार आपको ज़हर देने की भी कोशिश की गईं लेकिन आप, अल्लाह की मर्जी और करम से बच गए। आख़िर में आपको कैद किया गया और कैद में ही अंगूर के ज़रिए ज़हर दिया गया, जिससे आपकी शहादत वाके हुई।

इमाम जाफ़र सादिक़ के बाद, अबुल हसन यानी इमाम मूसा काज़िम, हमारे सातवे इमाम बने। आपको पहले गिरफ्तार किया गया लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। आप अपने दीन के कामों में मशगूल रहे। कुछ वक्त के बाद जब हुकुमरान को लगा कि कहीं लोग आपकी बैत ना कर लें तो आप पर झूठे इल्जाम लगाकर आपको दोबारा कैद किया गया और आप अलैहिस्सलाम को भी ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

आपके बाद आपके बेटे यानी इमाम अली रजा, आठवे इमाम हैं। आपकी ज़िन्दगी में काफी उतार चढ़ाव आए, हुकुमरानों ने आपसे मुहब्बत और अपनापन भी दिखाया लेकिन आखिरकार आपको भी ज़हर

देकर ही शहीद किया गया।

आप इमाम अली रजा अलैहिस्सलाम के बाद आपके बेटे हज़रत मुहम्मद तकी अलैहिस्सलाम, नौवें इमाम बने। आपको भी हुकुमरान ने बाकि इमामों की तरह ही कैद किया और बाद में ज़हर दिलवाकर, शहीद कर दिया।

आपके बाद, आपके बेटे इमाम अली नकी ने इमामत की। आप दसवे खलीफा बने। आप की सीरत ओ किरदार भी बाकि इमामों की तरह बुलंद थे और आपने भी इमाम के तौर पर दीन की हिफाज़त की लेकिन आपको भी ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

ग्यारहवें इमाम के तौर पर हमें हज़रत हसन असकरी मिले जो इमाम अली रजा के बेटे थे, आपको भी बुग्ज़ ए अली में ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

अगर आप इन शहादतों की तफ्सीर पढ़ो तो आपको मालूम हो जाएगा कि मैंने क्यों सारे इमामों की शहादत को बुग्ज़ ए अली का नतीजा बताया है। अल्लाह, हम सबको इमामों के इल्म को समझकर, हक़ के रास्ते पर चलने वाला बनाए।

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