कर्बला से सबक – इज़्ज़त का मयार

इज़्ज़त की तलब इन्सान की कमज़ोरी है. अपनी तारीफ सुनना हर किसी को अच्छा लगता है. इसी इज़्ज़त की खातिर इन्सान झूठी शान, शेखी, तकब्बुर जैसे मर्ज़ का शिकार हो जाता है.
हुकूमत भी इन्सान ही चलाते है और जो लोग आला मंसब, ओहदे, शान और इज़्ज़त के तलबगार होते है, तो वो हुक्मरान की झूठी तारीफ, चापलूसी, चमचागिरी के ज़रिये अपना मफाद हासिल करते रहते है. हुक्मरान की गलती को भी खूबी बताना, उनके आगे-पीछे हाथ जोड़कर रहना, यहाँ तक की राजा-महाराजाओ के दौर में उनके आगे सर बा-सजूद होने की ज़िल्लत को भी वो अपनी इज़्ज़त का मयार समझते रहे.

कुरआन में हमारे रब ने हमारी रहनुमाई इस तरह की है,
“ जो ईमानवालो को छोड़कर अल्लाह के हुक्म के इन्कारीयों को दोस्त बनाते है, क्या ये उनके यहाँ इज़्ज़त हासिल करना चाहते है? तो इज़्ज़त तो सब अल्लाह ही की है. ” (सूर: निसा “ आयत 139)
साथ ही अल्लाह ने फ़रमाया कि, इस ज़िल्लत भरी इज़्ज़त से कभी लोगो के दिलो में ऐसे झूठे, चापलूसों के लिये इज़्ज़त नहीं पैदा होती, बल्कि
“ जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक अमल किये, अल्लाह उनकी मुहब्बत (लोगो के दिलो में) पैदा कर देगा .” (सूर: मरयम : आयत 96)

इमाम हुसैन ने, हक की हिमायत के लिये हुक्मरान की रज़ा, ख़ुशी, झूठी इज़्ज़त की परवाह नहीं की और सिर्फ अपने रब की रज़ा की खातिर, अपनी शहादत को हमेशा के लिये एक रोशन मिनारा बना दिया. तारीख गवाह है कि अल्लाह ने इमाम हुसैन की कैसी मोहब्बत और इज़्ज़त लोगो के दिलो में पैदा की और अपने कलाम को सच कर दिखाया.
समाज में झूठी इज़्ज़त की खातिर, हक की हिमायत में ज़ुबान को खामोश नहीं रखना चाहिये और ना ही बातिल के आगे झुकना चाहिये। ये सबक हमे वाकिया ए कर्बला से मिलता है.
ज़मीं से उठ के जो नोके नेज़ा पर आ गया है, वो सर नही है, वो इक मिनारा है रौशनी का.हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद हुसैन जिन्दाबाद🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹