
जंग ए बद्र में शिकस्त खाने के बाद, मुश-रीकेन ए मक्का निढाल और बेहाल हो गए थे लेकिन उनमें बदले की आग भड़क रही थी। अबुसूफियान ने वरसा पर रोने की पाबंदी लगा दी थी और सब बदला लेने के मंसूबे बना रहे थे।
इस जंग की तफसीर भी आप तारीख़ में देख सकते हैं, मैं मौला अली अलैहिस्सलाम की शुजाअत की बात करूँगा लेकिन साथ ही साथ दोबातें और याद रखने कि हैं वह ये किये ही वह जंग है जिसमें हज़रत हमजा
इसी जंग के पहले रसूलुल्लाह सल्लललाह अलैहे वसल्लम ने अपनी एक तलवार, अबु दुजाना ( दजाना ) अंसारी को दी थी,आप जंग में लड़ते
राज़िअल्लाह शहीद हुए और हिंदा ने उनका कलेजा चबाया ।
हुए हिंदा के करीब जा पहुंचे थे पर तलवार को रोक दिया था क्योंकि वह रसूलुल्लाह की तलवार , औरत पर नहीं चलाना चाहते थे ।
दुश्मन के खेमे में औरतें जोश भरने के लिए अश्शार पढ़ रहीं थीं। मर्द “ऐले हुबल” यानी हुबल का बोल-बाला रहे के नारे बुलंद करते हुए जंग पर उतर चुके थे।
यहाँ से हज़रत अली, हज़रत हम्जा और इनके साथियों ने अल्लाहु अकबर के नारे के साथ वार किए . तलहा बिन उस्मान, फिर उस्मान बिन अबु तल्हा और देखते ही देखते, दुश्मन खेमे के आठ अलमदार ढेर हो
हज़रत अली जिस सिम्त जाते, शेर की तरह दुश्मन पर हमला करते और दुश्मन भेड़ बकरियों की तरह इधर उधर भागने लगते। बची हुई कसर हज़रत हम्जा के हमले कर रहे थे। अंसार और हज़रत अली के साथियों ने दुश्मनों को भागने पर मजबूर कर दिया।
फौजों को भगते देखकर लोग अपनी-अपनी जगह छोड़कर माल ए गनीमत लूटने के लिए दौड़ पड़े, अब्दुल्लाह बिन जबीर के दस्ते ने भी दौड़ लगा दी , आपने अल्लाह और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैह वसल्लम के फरमान याद दिलाकर, रोकने की कोशिश की लेकिन किसीने एक ना सुनी।
रसूलुल्लाह की फौज़ को अपनी जगह से हटा देखकर, खालिद बिन वलीद और अकरमा बिन अबु जहल ने लश्कर के साथ दोबारा हमला बोल दिया। अचानक हए हमले से मुसलमान घबरा गए और होश हवास खोए हुए ढंग से जंग ही ना कर सके।
कुछ ही देर में सभी, हजूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम को छोड़कर भागने लगे, आप सल्लललाहु अलैहे वसल्लम, आवाज़ देकर बुलाते रहे, आप अल्लाह के बंदों को पुकारते रहे लेकिन
लोग आपको तन्हा छोड़करभाग रहे थे ।
मैं किसी का नाम नहीं लूँगा वरना आप शायद मुझे भी फिरकों से जोड़कर देखने लगें। बाकि हदीसों और कुरआन की सूरः तौबा की आयतों की तफसीर में आपको भागने वालों और रुकने वालों, दोनों के नाम मिल जाएंगे।
जिस वक्त सब पहाड़ों की तरफ़ भाग रहे थे, इसी बीच तीन बातें और पेश आईं, हज़रत हम्जा को वहशी ने शहीद कर दिया, दूसरी बात ये कि किसी ने रसूलुल्लाह की शहादत की भी अफवाह उड़ा दी। तीसरी बात ये कि अल्लाह के वली, शेर ए खुदा अली, अपनी जगह से इधर-उधर ना
इस जंग में इंतिकाम लेते हुए तकरीबन ७० मुसलमान शहीद कर दिए गए थे लेकिन जालिमों ने लाशों से बेहुर्मती करनी शुरू कर दी। एक औरत का हज़रत हम्जा का कलेजा चबाना इस बात का इशारा है कि जिस फौज़ की औरत इतनी वहशी हो तो उस फौज़ का वहशी कितना वहशी रहा होगा।
वैसे तो मैं मौला अली की बात कर रहा हूँ लेकिन मौला खुद फरमाते है कि अगर कोई इज्जत के लायक हो तो उसे इज्जत दो, अगर तुम ऐसा
नहीं करते तो उसका हक़ खाने वालों में शुमार हो जाओगे। एक तरफ़ जब सारे मर्द भाग रहे थे तब वहाँ दो औरत भी मौजूद थीं जो पानी देने, मरहम देने का काम करती थीं । इनमें से एक का नाम था उम्मे अमारा नसीबा बिन्ते काब , इनके शौहर और बेटे भी इसी जंग में शहीद हए थे लेकिन कुर्बान जाऊँ आपकी मुहब्बत ए रसूल पर, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम पर तीर चलते देख आपने अपने आपको रसूलुल्लाह के आगे कर लिया और सारे तीर अपने सीने पर खा लिए । दूसरी खातून थीं , उम्मे ऐमन , जो भाग रहे लोगों से कहतीं कि तुझमें लड़ने का कलेजा नहीं है तो कम से कम अपनी तलवार मुझे देता जा । याद रखें औरतों का मुकाम भी इस्लाम में ज़र्रा बराबर भी कम नहीं है। जहाँ कुछ मर्द भागते दिखे हैं, वहाँ कुछ औरतें हक़ बचाती भी दिखी हैं। आख़िरकार रसूलुल्लाह की फौज, रसूलुल्लाह का हुक्म ना मानने की वजह से शिकस्त खा गई लेकिन यहाँ भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी ताकत और वफा के दम पर शर्मनाक हार से बचा लिया । आप जिस साबित कदमी और वफादारी से रसूलुल्लाह के साथ खड़े रहे, वह भुलाया नहीं जा सकता । आपने रसूलुल्लाह के साथ साथ, दीन को भी बचा लिया। आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जिस्म पर तलवार की सोलह ज़र्ब ली और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की पेशानी मुबारक पर चोट लगी, इसी जंग में आपप्यारे आका सल्लललाहु अलैहे वसल्लम के दो दाँत मुबारक भी शहीद हो गए थे। एक मौके पर रसूलुल्लाह बीच में खड़े थे, हर सिम्त से हमले हो रहे थे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम आपके चारों तरफ़ घोड़ा दौड़ाकर, हर वार रोक रहे थे। जब कभी इस मंज़र को तसव्वुर में लाता हूँ तो दिल से