
इमाम हसन अ.स. की सुल्ह की शर्तें
इमाम हसन अ.स. ने सुल्ह की इन शर्तों से माविया को पाबंद भी बना दिया था और उसके अपराध और गुनाहों का इक़रार भी ले लिया था, और दूसरा सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि इमाम अली अ.स. के चाहने वालों को इमाम अली अ.स. फ़ज़ाएल फैलाने का मौक़ा मिल गया और जिस तरह कल तक जुमे के ख़ुत्बे में गाली दी जाती थी आज उसी मस्जिद से अज़ान में उनकी विलायत का ऐलान शुरू हो गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि इस्लामी मानसिकता बदलने लगी और इस्लामी सोंच आगे बढ़ने लगी।इमाम हसन अ.स. की सुल्ह की शर्तें
👉- हुकूमत माविया के हाथ में इस शर्त पर दी जाएगी कि वह किताब यानी क़ुरआन और सुन्नत यानी पैग़म्बर स.अ. की सीरत पर अमल करे (इब्ने अबिल हदीद)
ज़ाहिर है किताब और सुन्नत पर अमल न करने की परिस्तिथि मे सुलहनामा के बाक़ी रहने और हुकूमत के लीगल रह जाने का कोई कारण नहीं बचेगा और ऐसी सूरत में माविया नेक हाकिम के बजाए हक़ छीनने वाला हाकिम कहा जाएगा।
👉- माविया के बाद हुकूमत इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. की होगी, माविया किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाएगा। (अल-एसाबह, अल-इमामत वस-सियासत)
👉- पूरे इराक़ में शांति और सुकून का माहौल होगा, किसी को परेशान नहीं किया जाएगा। (मक़ातिलुत-तालेबीन)
👉- माविया अपने आप को अमीरूल मोमेनीन नहीं कहेलवाएगा। (तज़केरतुल ख़वास)
👉- माविया के पास किसी तरह की कोई गवाही नहीं दिलाई जाएगी वह केवल हुकूमत के मामलात की देख रेख करेगा।
👉- इमाम अली अ.स. को बिल्कुल भी बुरा भला नहीं कहा जाएगा और किसी तरह का भी अपमान नहीं किया जाएगा और जहां जहां इमाम अली अ.स. का अपमान हो रहा है उसे तुरंत बंद किया जाएगा। (इब्ने अबिल हदीद)
👉- हर हक़दार को उसका हक़ दिया जाएगा। (अल-फ़ुसूलुल मुहिम्मह, मनाक़िबे इब्ने शहरे आशोब)
👉- शियों और अहलेबैत अ.स. के चाहने वालों की सुरक्षा का विशेष बंदोबस्त किया जाएगा। (तबरी, जिल्द 6, पेज 97)
👉- अहवाज़ शहर से हासिल होने वाला टैक्स सिफ़्फ़ीन और जमल में शहीद होने वालों के परिवार वालों पर ख़र्च किया जाएगा। (अल-इमामत वस-सियासत, तारीख़े इब्ने असाकर)
👉- कूफ़े का बैतुल माल यानी सरकारी पैसा इमाम हसन अ.स. के पास जमा होगा और उन्हीं की मर्ज़ी से ख़र्च होगा। (तारीख़े दोवलुल इस्लाम)
👉- इमाम हसन अ.स. को सालाना 10 लाख दिरहम दिए जाएंगे (जौहरतुल कलाम फ़ी मदहिस-सादतिल आलाम)
👉- इमाम हसन अ.स., इमाम हुसैन अ.स. और दूसरे अहलेबैत अ.स. के घराने के किसी भी शख़्स को किसी भी तरह का कष्ट नहीं पहुंचाया जाएगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 10, पेज 115)
ऊपर बयान की गई शर्तों को पढ़ने और उन पर ध्यान देने के बाद यह बात साफ़ हो जाती है कि इमाम हसन अ.स. ने माविया को ताक़तवर नहीं बनाया और उसके पावर को बढ़ाया नहीं बल्कि उसके बहुत से अधिकारों और उसकी सत्ता के फैलाव और बिखराव को समेट कर रख दिया और कुछ शर्तों से तो उसके हाथ पैर बांध दिए, माविया जैसे इंसान के लिए किताब और सुन्नत पर अमल, आजीवन कारावास से कम नहीं था, उसके बाद अपने किसी भी उत्तराधिकारी का ऐलान न करना बनी उमय्या को अबतर (बे औलाद) बना देने की मुहिम है जिस पर माविया जैसे इंसान के लिए अमल नामुमकिन है।
इमाम अली अ.स. के अपमान पर पाबंदी बनी उमय्या से उनकी ऐतिहासिक चाल का छीन लेना है और उन्हें बिना पर के उड़ने के लिए कहने जैसा है क्योंकि बनी उमय्या की सत्ता की बुनियाद ही झूठे प्रोपैगंडे पर है, अब अगर उसे उनसे छीन लिया जाए और अमीरूल मोमेनीन कहने का हक़ भी न दिया जाए तो माविया की ज़िंदगी का सहारा क्या होगा….।
जिन लोगों का कहना यह है कि सुल्ह से माविया की सत्ता और फैल गई थी वह सुन लें: सुल्ह के बाद माविया की बादशाहत का वही हाल है कि एक इंसान को हाथ पैर बांध कर समंदर में डाल दिया जाए और उससे कहा जाए कि दुनिया के एक चौथाई हिस्से पर सारे बादशाहों की हुकूमत है और बाक़ी दुनिया के तीन चौथाई हिस्से के बादशाह आप हैं, ज़ाहिर है कि ऐसा इंसान डूब कर मर तो सकता है हुकूमत नहीं कर सकता।
इमाम हसन अ.स. ने सुल्ह की इन शर्तों से माविया को पाबंद भी बना दिया था और उसके अपराध और गुनाहों का इक़रार भी ले लिया था, और दूसरा सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि इमाम अली अ.स. के चाहने वालों को इमाम अली अ.स. फ़ज़ाएल फैलाने का मौक़ा मिल गया और जिस तरह कल तक जुमे के ख़ुत्बे में गाली दी जाती थी आज उसी मस्जिद से अज़ान में उनकी विलायत का ऐलान शुरू हो गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि इस्लामी मानसिकता बदलने लगी और इस्लामी सोंच आगे बढ़ने लगी।
यह सही है कि आतंकवाद ने क़ौम को इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. के खुले समर्थन के लिए आगे नहीं आने दिया लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हालात इस हद तक बदल गए कि इमाम हुसैन अ.स. को कर्बला में दीन की मदद के लिए कुछ लोग मिल गए और कर्बला के बाद यज़ीदियत का जनाज़ा निकल गया।
सुल्हे इमाम हसन अ.स. का पैग़ाम यह है कि: आले मोहम्मद अ.स. का मक़सद और लक्ष्य अल्लाह के दीन को बचाना है और उसके तरीक़े हालात को देखते हुए बदल सकते हैं, यह काम कूफ़े में हुकूमत लेकर होता है तो सुल्हे इमाम हसन अ.स. में हुकूमत देकर, बद्र और ओहद में जान लेकर होता है तो कूफ़े की मस्जिद में जान देकर।
लेकिन मुआविया ने कुछ दिन बाद ही इनमे से किसी भी शर्तों को मानने से मना कर दिया और जब इमाम हसन अस ने सुलहनामा की शर्तों को मानने का कहा तो मुआविया ने कुछ दिन बाद इमाम हसन अस को ज़ेहर दिलवाकर शहीद कर दिया।