
जाहिर, बातिन और अल्लाह
मेरे मौला अली अलैहिस्सलाम ने, इक दफा खुत्बे के बीच मैं इरशाद फरमाया, “कोई जाहिर उसके अलावा बातिन नहीं हो सकता और कोई बातिन उसके सिवा जाहिरनहीं हो सकता।”
अल्लाहु अकबर कसीरन कसीरा। इल्म, विज्ञान और फिलोसफी की गहराई नापते हुए इस कौल पर अगर सारी दुनिया का इल्म भी कुर्बान कर दिया जाए तो यकीनन वह बहुत कम मालूम होगा।
सोचने वाला ये भी सोच सकता है कि सूरज दिन में जाहिर होता है लेकिन रात में बातिन हो जाता है या चाँद रात में जाहिर होता है और दिन में बातिन हो जाता है लेकिन हकीकत में अगर हम देखें तो पाएँगे कि सूरज और चाँद दोनों जाहिर हैं, एक दिन में दिखता है, दूसरा रात में लेकिन ये छिपते नहीं हैं बल्कि अपनी जगह बदल लेते हैं यानी आपके सामने भले ही जाहिर ना हों पर ठीक उसी वक्त दुनिया के किसी दूसरे कोने में जाहिर होते हैं।
मेरे मौला अली अलैहिस्सलाम, इतनी बड़ी बात फरमा रहे हैं, अगर इस पर तहकीक करो तो आपको मालूम हो जाएगा कि दुनिया में अल्लाह ही है जो जाहिर है और बातिन भी इसके अलावा दुनिया की कोई शय जाहिर और बातिन, एक साथ नहीं हो सकती। ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जिन्हें हम जाहिर ओबातिन दोनों समझते हैं लेकिन गलत हम ही सोच रहे होते हैं।
जब हम किसी शय को बातिन से जाहिर होता देखते हैं तो दरअसल वह दो अलग चीज़ होती हैं लेकिन कम इल्म की वजह से हम उन्हें एक ही समझ रहे होते हैं।
मसलन के तौर पर, मैं कुछ सोच रहा था और मैंने कह दिया, देखने में यूँ लग रहा है जैसे मैंने बातिन को जाहिर कर दिया हो लेकिन हकीकत में मेरी सोच या ख्याल, बातिन है और जब मैंने अपनी जुबान से, किसी भाषा में कुछ कहा तो वह जाहिर है। ये दोनों एक ही शय नहीं हैं, अलगअलग शय हैं, ख़्याल और होता है, किसी भाषा में उसी ख्याल को आवाज़ से कह देना कुछ और होता है।
मौला की बातों को गहराई तक उतरकर समझ पाना तो नामुमकिन है लेकिन हम सबको मेहनत करनी चाहिए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा इल्म हासिल करके हक़ तक पहुँच सकें।