
हज़रत सैय्यदा जैनब ने मदीना मुनव्वरा में क्याम करके अज़्मे मुसम्मम के साथ अपने जिहाद के सिलसिले जारी रखा और अपने पैगाम की इशाअत, अपने मक्सद की तबलीग में मरूफ लोगों के दिलों में इंतिकामे हुसैन का जज़्बा पैदा करती रहीं।
मदीने का गवर्नर डरा कि कहीं आपके मदीना में रहने से मक्का व मदीना दोनों शहरों में बगावत न फूट पड़े। कहीं यह चिंगारी भड़कती हुई आग न बन जाए। यज़ीद का हुक्म पहुंचा कि जनाब जैनब को मदीना से कहीं और मुन्तकिल कर दिया जाए। चुनांचे जनाब जैनब को मदीने में न रहने पर मज्बूर कर दिया गया।
आप अपने शौहर के हमराह दमिश्क तशरीफ ले गई। बाकी ज़िन्दगी के तमाम अय्याम हज़रत सैय्यदा जैनब ने दमिश्क में गुज़ारे और वहीं इंतिकाल फरमाया। दमिश्क में आपका रौज़ा ज़ियारतगाह अवाम व ख्वास है।

आज शाम का शहर सुबह से शाम तक हज़रत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा के नाम से गूंज रहा है। बेशुमार ज़ाइरीन की आम्दो रफ्त का मरकज़ बना हुआ है।
आप मज़ारे मुक़द्दस पर बुलन्द कंगूरों के साथ एक परचम लहरा रहा है और यह ऐलान कर रहा है कि यह रसूले अखिरुज्जमां सललल्लाहु अलैहि व सल्लम की उस नवासी का मरकद है जिसने कूफा और शाम को फतह किया। और आज तक लोगों के दिलों पर उनकी हुकूमत बाकी है। उस शहज़ादी के सामने सतवते शाही के सर झुकते हैं और इलम व इरफान के बड़े से बड़े उलमा व मुहद्देसीन जब्बा साई करते हैं। और अवाम व ख्वास सभी के दामन मुरादों से भरते जाते हैं। उठा कर एक कदम भी कोई ज़ालिम चल नहीं सकता हर एक मज़लूम के रस्ते की जिम्मेदार है जैनब सफर करती हुई बैअत कि जिसने पैर काटे हैं वह जंगे करबला की आखिरी तल्वार है जैनब