
हुर्रह इब्ने मुनकिद
इस बदबख्त ने हज़रत अली अकबर रज़ि अल्लाहु अन्हु के सीने में नेज़ह मारा था। जब मुख्तार के सामने पेश हुआ तो मुख्तार ने उस मलऊन के कान और नाक काट लिए और उसकी आंखें निकाल लीं। उसके बाद उस शैतान की गर्दन मार दी गई और मलऊन को आग में जला दिया गया।
ज़्याद इब्ने रिफाह
इसी मरदूद ने हज़रत अब्बास अलमदार रज़ि अल्लाहु अन्हु की आंख पर तीर मारा था। मुख्तार ने उस मरदूद की दोनों आंखें फोड़ दी और गर्दन मार दी।
सद इब्ने मूद
इसी ने हज़रत कासिम रज़ि अल्लाहु अन्हु को शहीद किया था। जब गिरफ्तार करके मुख्तार के रू-ब-रू पेश किया गया तो मुख्तार ने गुस्से में आकर हुक्म दिया कि इस मलऊन को उलटा लटका दिया जाए और उसके एक-एक आज़ा काट दिए जाएं। चुनांचे जल्लाद ने ऐसा ही किया
इसी मलऊन ने हज़रत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा के सर से चादर उतार दी थी। मुख्तार ने उस के दोनों हाथ कटवा दिए और उसे कत्ल करा दिया।
बशीर इब्ने लूत
इसी लईन ने हज़रत सैय्यदा उम्मे कुल्सूम रज़ि अल्लाहु अन्हा का मक्नआ उतारा था और बद ज़बानी की थी। मुख्तार ने उसकी ज़बान काट दी और कत्ल करा दिया।
इब्ने ज़्याद का अंजाम
यह वही बदबख़्त है जिस पर रहती दुनिया हमेशा लानत भेजती रहेगी। यह पहले बसरा का गवर्नर था बाद में बसरा कूफा दोनों का गवर्नर बना दिया गया। इसी नाबकार के हुक्म से हज़रत सैय्यदना इमाम मुस्लिम रज़ि अल्लाहु अन्हु और उनके दोनों बच्चों की शहादत हुई। और सरकारे इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु और आपके अहले बैत पर पानी बन्द किया गया और अहले हरम को तमाम तक्लीफें पहुंचाई गईं।
मुख्तार ने इब्ने ज़्याद खबीस के मुकाबले पर हज़रत इब्राहीम मालिक उश्तुर को तीस हज़ार फौज देकर भेजा। मूसल से पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर इने ज़्याद और हज़रत इब्राहीम मालिक उश्तुर की फौजों का मुकाबला हुआ। हज़रत इब्राहीम की फौज गालिब आई इने ज़्याद की फौज भागने लगी। हज़रत इब्राहीम ने हुक्म दिया कि जो हाथ आ जाए उसे ज़िन्दा न छोड़ा जाए। चुनांचे उस लड़ाई में बहुत सारे यजीदी कत्ल कर दिए गये और 67 हिज. की ठीक दसवीं मुहर्रम को इने ज़्याद मलऊन को दरियाए फुरात के किनारे हज़रत इब्राहीम की फौज ने कत्ल किया। हज़रत इब्राहीम ने इने ज़्याद का सर मुख़्तार के पास कूफा भेज दिया।
जब मुख्तार के दरबार में इन्ने ज़्याद का सर पहुंचा मुख़्तार ने सज्द-ए-शुक्र अदा किया। फिर मुख़्तार ने अहले कूफा को जमा किया और इने ज़्याद का सर उसी जगह रखवाया जहां इमाम पाक का सरे पाक उसने रखवाया था।
. मुख़्तार ने अहले कूफा को मुखातब करके कहा देख लो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के खूने नाहक ने इने ज़्याद को न छोड़ा आज उस नामुराद का सर कितनी जिल्लत के साथ यहां रखा हुआ है। छ: साल हुए आज वही तारीख है, वही जगह है। इतने में एक ख्वार ज़हरीला काला सांप नमूदार हुआ। लोग उसके खौफ से भागने लगे। वह तमाम सरों में घूमा और इब्ने ज़्याद के सर के पास आया और उसकी नाक में घुस गया और थोड़ी देर के बाद उसके मुंह से निकला इसी तरह तीन बार सांप आता और जाता रहा। फिर वह सांप गायब (तिर्मिज़ी जिल्द 2. स. 794, सवानेह करबला, स. 142)