
दोज़ख़ में एक बहुत बड़ा सांप है जिसका नाम शदीद है। हर रोज वह सत्तर मरतबा लरज़ता है और उसके जिस्म से ज़हर टपकता है। अल्लाह तआला उस से इरशाद फरमाता है कि ऐ शदीद तू क्या चाहता है? शदीद अर्ज करता है कि ऐ हमारे रब कातेलीने इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को मेरे हवाले कर दे ताकि मैं उन पर अपना जहर डालूं। अल्लाह तआला फरमाता है कि ऐ शदीद ठहर कातेलीने इमाम को मैं तेरे ही हवाले करूंगा, तू जिस तरह चाहे उन्हें अज़ाब दे।
तरजुमा : अल्लामा बैहकी व अबू नईम व इने असाकिर व दैलमी हज़रत अबू हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं। फरमाते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु का कातिल दोज़ख़ के अन्दर एक आग के सन्दूक के अन्दर रखा जाएगा। दुनिया के आधे लोगों पर जो अज़ाब अलग-अलग होगा, वह उस पर तन्हा होगा। जहन्नम की जंजीरों से उसके दोनों हाथ और दोनों पैर बं ने रहेंगे, वह जहन्नम में उलटा लटकाया जाएगा। और उस तरह-तरह के अज़ाब होंगे। और वह जहन्नम में हमेशा-हमेशा रखा जाएगा।