
इमाम हुसैन व दीगर शुहदाए करबला की शहादत से उसकी प्यास नहीं बुझी। यज़ीद ने फिर से बीस हज़ार फौज पैदल और सवार मिला कर मुस्लिम बिन उक्बा की सरकरदगी में मदीना मुनव्बरा की जानिब रवाना कर दी। यह कह कर अगर अहले मदीना ख़ामोशी से मेरी बैअत कबूल कर लें तो बेहतर है। वरना बिला ख़ौफ़ व ख़तर अहले मदीना को कत्ल कर देना और उनका माल व अस्बाब लूट लेना और किसी तरह की रिआयत न करना। यज़ीदी फौजें पूरी जाह व जलाल के साथ मदीना मुनव्वरा पर हमला आवर हुई।
अहले मदीना यज़ीद की फौजों की ताब न ला सके और अल-अमां अल-अमां पुकारने लगे। मदीना मुनव्वरा पर गलबा पाते ही ऐलान कर दिया कि कत्ले आम शुरू कर दो, और मदीने की औरतों को मैंने तुम पर हलाल कर दिया।
इतना ही ऐलान करना था कि बस यज़ीदी फौजें, अहले मदीना पर टूट पड़ी और अहले मदीना का माल लूटना शुरू कर दिया। इमाम जहरी की रिवायत के मुताबिक 97 सरदाराने कुरैश और सात सौ हाफिजे कुरआन, सत्तरह सौ मुहाजिरीन व अन्सार और दस हजार अहले मदीना कत्ल कर दिए गये जिसमें बच्चे और औरतें भी शामिल हैं।
यज़ीद की फौजों ने मदीना मुनव्वरा की मुकद्दस ख्वातीन के साथ बिल-जब इस्मतदरी की, मदीना में जिना मुबाह कर दिया गया जिसका नतीजा यह हुआ कि एक हज़ार औरतों के पेट से नाजाइज़ बच्चे पैदा
हाफिज़ इने कसीर कहते हैं कि :
कहा जाता है कि उन्हीं दिनों में एक हज़ार औरतें ज़िना से हामिला हुई।
यज़ीद के हुक्म के मुताबिक तीन दिन तक शहर मदीना में जिना को मुबाह किए रखा। शहर के बाशिन्दों का क़त्ले आम किया गया। गज़ब यह कि वहशी फौजों ने घरों में घुस-घुस कर औरतों की इस्मतदरी की। मस्जिदे नबवी शरीफ़ के अन्दर यज़ीदियों ने घोड़े बांधे कई रोज़ तक मस्जिदे नबवी शरीफ घोड़ों के पेशाब और लीद से आलूदा रही।
यजीदियों के कमीना पन की मिसाल शायद ही तारीखे आलम में मिल सके कि जब मदीने में लौटते हुए हज़रत सैय्यदना अबू सईद खुद्री रजिं अल्लाहु अन्हु के मकान के करीब पहुंचे तो उनके मकान में दाखिल हो गये।
और उनके यहां जब कुछ न पाया तो आपकी दाढ़ी शरीफ के बाल नोच डाले और उन्हीं बालों को लेकर चले गये। (करबला के बाद स. 75)