
एक दिन कैदखाने में सैय्यद सज्जाद ने अपनी फूफी सैय्यदा ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा को बैठ कर नमाज़ पढ़ते हुए देखा तो आप करीब आ गये और ख़ामोशी से बैठ गये। हजरत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा जब नमाज़ पढ़ चुकीं तो सैय्यद सज्जाद ने कहा फूफी आज तक हमने आपको कभी बैठ कर नमाज पढ़ते नहीं देखा आज क्या बात है कि आप बैठ कर नमाज़ पढ़ रही हैं?
हज़रत सैय्यदा जैनब ने कहा कि बेटा सैय्यद सज्जाद क्या बताऊं जब से हम कैदखाने में आए हैं यज़ीद जितना खाना भिजवाता है वह हमारे बच्चों के लिए नाकाफी होता है। इसलिए हम अपना सारा खाना बच्चों को खिला देते हैं। बेटा चालीरा दिन हो गया एक भी लुक्मा मेरे हलक से नीचे नहीं उतरा।
जब तक जिस्म में ताक़त थी हम खड़े हो कर नमाज़ पढ़ते थे मगर अब ताक़त जवाब दे चली है तो हम बैठ कर नमाज़ पढ़ते हैं। गर्ज कि यह काफिला एक अरसे तक दमिश्क के कैदखाने में मुकैय्यद था। एक रोज़ यज़ीद ने हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन रज़ि अल्लाहु अन्हु को तलब किया और कहा कि आप मुझ से कुछ फरमाइश करें।
मरवान भी यज़ीद के दरबार में मौजूद था मरवान ने यज़ीद को मश्वरा दिया कि जितना जल्द हो सके अहले बैत को मदीना वापस भेज दो, शाम में उनकी मौजूदगी हुकूमत के लिए बहुत बड़ा खतरा है। मुसलमानों को मालूम हो गया है कि यह अहले बैत हैं हम उन्हें अभी तक चोर, डाकू और बागी समझ रहे थे। करबला के सही हालात से लोग बाख़बर हो गये हैं।
यज़ीद को यह इत्तिला मिल रही थी कि मुल्क में बेचैनी बढ़ती जा रही है। अब उसके पास अले हरम को आज़ाद करने के अलावा और कोई चारा न था।