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!!हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु अन्हु) की शहादत!!
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♥️हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) यजीदी लश्कर से निकलकर हुसैनी लश्कर मे आ मिले, इस तरह उन्होंने अपने आप को आग से बचा कर जन्नत खरीद ली थी, आप बहुत बड़े बहादुर और दिलेर थे इब्ने सअद के लश्कर के आप सिपहसलार थे इब्ने सअद ने जब उन्हें हुसैनी लश्कर मे मिलते हुए देखा तो वह बहुत घबराया और सफवान से कहने लगा तु जा और हुर्र को समझाकर वापस फेर वरना सर तन से जुदा कर ला,
*चुनांचे : सफवान ने हुर्र से आकर कहा की तुम मर्दाना आकील होकर यजीद जैसे अजीम हाकीम की रिफाकत छोड़कर हुसैन के तरफ क्यों चले आये?? चलो वापस चलो,
*हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) ने फरमाया अब मै वापस नही जा सकता,
सफवान ने पुछा कयो??
तो फरमाया :-
“क्यों छोड़ के दीन फौज मे गुमराह को आऊं..!!
हाकीम को हसाऊं, मुहम्मद को रूलाऊं..!!
क्या हाकीमे दुनिया का तो एहसास करूं मै..!!
और जोहरा के रोने का न कुछ पास करूं मै..!!
*ऐ सफवान! यजीद नपाक है और हुसैन पाक है और रैहाने मुस्तफा है,
सफवान ने गुस्से मे आकर हुर्र के नेजा मारा, हजरत हुर्र ने नेजा तोड़ डाला और फिर उसे एक नेजा मारा जो उसके सीने के पार हो गया और वह जहन्नम सिधार गया,
यह सुरते हाल देखकर सफवान के भाई दौड़ा हजरत हुर्र ने उसे भी मार डाला और फिर खुद वहां से फिरकर हजरत इमाम के पास आकर अर्ज की : “हुजुर अब तो आप मुझसे राजी है”
फरमाया : मै तुझसे राजी हुं, तु अजाद है, जैसा की तेरी मां ने तेरा नाम रखा है।,
हजरत हुर्र यह खुशखबरी सुनकर फिर मैदान मे आये, जिस तरफ किया कुश्तो ने पुश्त लगा दिये एक यजीदी ने आकर आपके घोड़े को जख्मी कर दिया, आप पैदल ही लड़ने लगे, इमाम ने दुसरा घोड़ा भेज दिया, हजरत हुर्र उसपर सवार हो गये लेकीन उन जालीमों ने एक दम हल्ला बोल दिया, हजरत हुर्र एक बार और खिदमत इमाम मे हाजीर होने का इरादा किया की गैब से आवाज आयी अब न जाओ हुर्र तुम्हारी मुन्तजिर है, हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) ने वही से अर्ज की,
या इब्ने रसूलल्लाह! यह गुलाम आपके नानाजान! के पास जा रहा है कुछ फरमाये तो कह दुं, इमाम ने रो रोकर फरमाया हम भी तुम्हारे पीछे आ रहे है, उसके बाद हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) जलीमो के मुतावतीर हमलो से निढ़ाल होकर गीर पड़े और इमाम को अवाज दी,
हजरत इमाम अवाज सुनकर और हुर्र को उठाकर लशकर मे से ले आये, जानु मुबारक पर उनका सिर रखकर चेहरे का गर्द व गुबार साफ करने लगे हजरत हुर्र ने अपनी आंखे खोली और अपना सिर इमाम के जानु पर देखकर मुस्कुराए और जन्नत को सिधारे..!!
●इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन●
(तजकीरा, सफा-75, सिर्रूश शहादतैन, सफा-22, )
♥️हजरत हुर्र (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) अपने नाम के मुताबीक वाकई जहन्नम से आजादी हासील करके जन्नत के मलिक बन गये और यह दर्स दे गये की दुनिया चंद रोजा है, एक दिन आखिर मरना है फिर क्यों न ऐसी मौत मरा जाये जिससे अल्लाह व रसुल खुश हो, और आकीबत दुरूस्त हो जाये,
फिर आज अगर कोई कहलाये हुसैनी और न नमाज पढ़े न दाढ़ी रखे, भांग पिये, चरस पिये, और बुजुर्गो की तौहीन करे, गोया कहलाये हुसैनी और काम याजीदीयों के करे तो उसके मुतअल्लिक क्यों न कहा जाये की यह हुसैनी लश्कर से हटकर यजीदी लश्कर मे जा मिला….!!