
!!_करामात!!
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♥️मुहर्रम की 10वीं को हजरत इमाम आली मकाम ने जो खेमे के गिर्द खंदक खुदवा रखी थी, वह लकड़ीयों से भरवाकर उसमे आग रौशन कर दी ताकी हरम शबखुं (छापा मारना) वजैरह से महफुज रहे और दुशमन खेमे तक न पहुंच सके, एक यजीदी बे दीन ने आग रौशन देखकर कहा : ऐ हुसैन! दौजख से पहले तुने अपने आप को आग मे डाल दिया है! (मआज अल्लाह!)
हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) ने फरमाया : ऐ दुश्मने खुदा! तुने झुठ कहा फिर आपने काबे की तरफ मुंह करके फरमाया :- “ऐ अल्लाह! इसे आग की तरफ खिंच!, यह दुआ करते ही उस बे दीन के घोड़े का पांव एक सुराख मे फंस गया घोड़ा गिरा लगाम हांथ से छुटी पांव लगाम मे उलझा, घोड़ा उसे लेकर भागा, हत्ताकी उसे खंदक की आग मे लाकर गिरा दिया और खुद चला गया, हजरत इमाम ने सज्दा-ए-शुक्र अदा किया और सिर उठाकर बा-आवाजे बुलंद फरमाया :- “इलाही हम तेरे रसुल की आल है हमारा इंसाफ जालीमों से लेना” इतने मे एक और बेदीन ने हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) को मुखातीब करके कहा : ऐ हुसैन! नहरे फुरात कैसे मौजे मार रही है मगर उससे तुझे एक कतरा भी नसीब न होगा, युं ही प्यासा कत्ल किया जायेगा, इमाम यह सुनकर आजुर्दा (सताया हुआ) हुए और आबदीदा होकर दुआ फरमायी: इलाही! इसे प्यासा मार!, यकाकत उसके घोड़े ने शोखी करके उसे गिराया वह उठकर घोड़ा पकड़ने दौड़ता फिरा, प्यास गालीब हुआ प्यास-प्यास पुकारता रहा मगर हलक से पानी न उतरा आखिर इसी प्यास की हालत मे मर गया…!!
(तजकीरा, सफा-68, )
♥️सबक : हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु तआला अन्हु) खुदा के महबुब थे, खुदा आपकी सुनता था मगर शहादत चुंकी आपके नाम मे लिखी जा चुकी थी और अल्लह व रसुल की यही मर्जी थी, आप राजी बरजाए हक थे आपने बड़े सब्र के साथ जामे शहादत पिया….