
कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना का नेतृत्व करने वाले थे, हालाकी इसे सेना कहना मुनासिब नहीं होगा मगर कर्बला मे हुसैन वालों पर हमले हुवे, इस एतबार से इसे जंग कहा गया । अब्बास अलमदार जिनके हाथो में हुसैनी अलम यानि झण्डा था । अब्बास उस शेर का नाम है, जिससे दुश्मन थर थर कांपते थे, जो हुसैन इब्ने अली के चहेते भाई थे I हज़रत अब्बास बेइंतिहा खूबसूरत थे, इसलिए उनको कमर-ए-बनी हाशिम (हाशिमी कबीले का चाँद) भी कहा जाता है I इमाम हुसैन की माँ हज़रत फ़ातिमा रदीअल्लाहू अन्हुम के बाद हज़रत अली से जब लोगो ने निकाह करने कहा तब आपने अपने भाई हज़रत अक़ील से कहा की में किसी ऐसे खानदान की लड़की से ही शादी कर सकता हूँ जिसका नाम अरब के बड़े बहादुरों में शुमार होता हो, ताकि बहादुर और जंग-आज़मा(युद्ध में निपुण) औलाद पैदा हो I हज़रत अक़ील ने कहा की उम-उल-बनीन-ए-कलाबिया से शादी कीजिए. उनके बाप दादा से ज़्यादा बहादुर सारे अरब में नहीं है । हज़रत अली ने तब जनाबे उम-उल-बनीन से शादी की और उनसे चार बेटे पैदा हुए । हज़रत अब्बास उनमें सबसे बड़े थे. वह इमाम हुसैन को बेहद चाहते थे । हज़रत अब्बास के हाथों में ही इस्लामी सेना का अलम(ध्वज) था. इसीलिए उन्हें अलमदार-ए-हुसैनी कहा जाता है । उनकी बहादुरी सारे अरब में मशहूर थी. कर्बला मे जब उन्होने मासूम अली असगर के सूखे होठो को देखा और सकीना को प्यास से तड़पते देखा, तो वो बेचैन हो उठे, और तब उन्होंने भाई हुसैन से कहा ‘मौला हुसैन मुझे मश्कीज़ा दो जंग करने से पहले मै बच्चो के लिए पानी लेकर आता हूँ और फिर इस यज़ीदी लश्कर की जम कर खबर लेता हूँ I हुसैन ने कहा ‘ भाई अब्बास तुम्हें मै कैसे इजाज़त दे सकता हूँ तुम तो हुसैन की ताकत हो अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हुसैन की कमर टूट जाएगी । अब्बास ने कहा मौला सकीना की प्यास मुझसे देखे नहीं जाती । अगर उन्होने हमला किया भी तो ये अब्बास उन्हे खत्म करने के लिए अकेला ही काफी है, और फिर इस तरह भाई हुसैन से इजाज़त लेकर अब्बास नहरे फुरात की तरफ बढ़ने लगे उनके एक हाथ में अलम था तो दूसरे हाथ में मश्क़ वे इस तरह आगे बढे जैसे की नदी की तरफ जाने के लिए रास्ता बना रहे हों । हज़रत अब्बास को यूं आगे बढ़ता देख यजीद की सेना इस तरह डर कर भागीं जैसे की शेर को देख कर भेड़ बकरियां और हिरण भागते हैं I हज़रत अब्बास अपने घोड़े पर नहरे फुरात तक पहुँच गए, यहाँ तक की उनके घोड़े के अगले दो पैर पानी के अंदर थे । अब्बास ने मश्क़ में पानी भरा और चुल्लू में पानी लिया और सोचा चलो अपनी प्यास बुझा ले मगर फिर ख्याल आया 4 साल की बच्ची सकीना प्यासी है, अली असगर प्यासा है, भाई हुसैन के गले से नीचे पानी नहीं गया है तो फिर भला वो किस तरह पानी पी ले और आपने चुल्लू का पानी वापस दरिया में डाल दिया और पानी नहीं पिया । उन्होने घोड़े से कहा तू भी तो प्यासा है, पानी पी ले, मगर घोड़े ने भी पानी नहीं पिया । ये थी मोहब्बत इंसान तो इंसान जानवर तक को भी पानी पीना गवारा न था । सुभान अल्लाह । हज़रत अब्बास ने पानी का मश्क अपने बाये कंधे पर रखा I जब वापस लौटने लगे तो इब्ने ज़ियाद चिल्लाया अगर अब्बास ने और हुसैनी सेना ने पानी पी लिया तो फिर तुम सबको मरने से कोई नहीं बचा सकता वो लोग तुम सभी को किसी गाजर मुली की तरह से कट देंगे I सब मिल कर एक साथ अब्बास पर हमला कर दो जिसे सुनकर भागी हुई फ़ौजें फिर से जमा हों गईं और हज़रत अब्बास पर चारो तरफ से तीरों की बारिश कर दी जिसके बावजूद अब्बास पानी लेकर बढ़ते रहे और यज़ीदियो को गाजर मूली की तरह काटते रहे । फ़ौजों को खदेड़ते हुए वे आगे बढ़ते रहे तभी पीछे से एक ज़ालिम ने हमला करके उनका बांया बाज़ू काट दिया । आपने मश्क अपने दाहिने कंधे में रखा और एक हाथ से लड़ते हुवा आगे बढ़ने लगे अभी वह कुछ क़दम आगे बढे ही थे कि पीछे से वार करके उनका दूसरा बाज़ू भी काट दिया गया । हज़रत अब्बास ने मश्क़ अपने दांतों में दबा लिया. और आगे बढ़ते गए, इसी बीच एक ज़ालिम ने मश्क़ पर तीर मार कर सारा पानी ज़मीन पर बहा दिया और इस तरह जालिमो ने प्यासे बच्चों तक पानी पहुँचने नहीं दिया और तभी बहोत से ज़ालिम यज़ीदी सिपाहियों ने हज़रत अब्बास को चारो तरफ से घेर लिया और उनके सर पर गुर्ज़ (गदा) मारकर उन्हें शहीद कर दिया । (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजेउन)

हज़रत अब्बास को इसी वजह से सक्का-ए-सकीना(सकीना के लिए पानी का इंतज़ाम करने करने वाले) के नाम से भी याद किया जाता है I जहाँ कही भी आज मुहर्रम के दौरान जुलूस निकलता हैं, उसमे जो अलम होता है वह हज़रत अब्बास की ही निशानी हैं.